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जो व्यक्ति क़ुर्बानी को तश्रीक़ के दिनों तक विलंब करना चाहता है क्या उसके ऊपर अपने बाल और नाखून काटना निषिद्ध है?

प्रश्न: 175381

क्या जिस व्यक्ति ने अपनी क़ुर्बानी को तश्रीक़ के दिनों तक विलंब कर दिया है उसके ऊपर अपने बाल और नाखून में से कोई चीज़ काटना हराम (वर्जित) है यहाँ तक कि वह क़ुर्बानी कर ले, या कि यह केवल (ज़ुल-हिज्जा के) दस दिनों तक ही सीमित (प्रतिबंधित) है, अगरचे उसने अपनी क़ुर्बानी को विलंब कर दिया है?

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

जो आदमी क़ुर्बानी करना चाहता है, उसके ऊपर – राजेह कथन के अनुसार – अपने बाल या नाखून में से कुछ भी काटना हराम (वर्जित) है यहाँ तक कि वह क़ुर्बानी कर ले, चाहे वह पहले समय में ईद की नमाज़ के बाद क़ुर्बानी करे या उसके अंतिम समय में अर्थात ज़ुल-हिज्जा के महीने के तेरवें दिन सूरज डूबने से पहले क़ुर्बानी करे।

क्योंकि मुस्लिम ने अपनी सहीह (हदीस संख्या : 1977) में उम्मे सलमह रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायत किया है कि उन्हों ने कहा : अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : ''जिसके पास ज़बह करने के लिए क़ुर्बानी का जानवर है, तो जब ज़ुल-हिज्जा के महीने का चाँद निकल आए, तो वह अपने बाल और अपने नाखून में से कुछ भी न काटे यहाँ तक कि वह क़ुर्बानी कर ले।''

शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह ने फरमाया : ''जब ज़ुल-हिज्जा के दस दिन शुरू हो जाएं और आप अपनी तरफ से या अपने अलावा किसी अन्य की तरफ से अपने धन से क़ुर्बानी करना चाहते हैं, तो अपने बाल से कुछ भी न काटें ; न तो बगल से, न नाफ के नीचे (जघन) से, नमूंछ से और न ही सिर से यहाँ तक कि आप क़ुर्बानी कर लें। इसी तरह नाखून में से भी कुछ नहीं काटें गे ; न पैर के नाखून से, न हाथ के नाखून से, यहाँ तक कि आप क़ुर्बानी कर लें . . . यह क़ुर्बानी का सम्मान है, और इसलिए ताकि गैर-मोहरिम लोगों को भी (हज्ज के) प्रतीकों का वह सम्मान प्राप्त हो जाए जो मोहरिम लोगों को प्राप्त होता है ; क्योंकि इन्सान जब हज्ज या उम्रा करता है तो वह अपने सिर को नहीं मुँडाता है यहाँ तक कि हद्य् (क़ुर्बानी) का जानवर अपने स्थान को पहुँच जाए, तो अल्लाह सर्वशक्तिमान ने चाहा कि अपने उन बन्दों के लिए जिन्हों ने हज्ज और उम्रा नहीं किया है उन्हें भी हज्ज व उम्रा के प्रतीकों का एक हिस्सा प्राप्त हो जाए। और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

''शरह रियाज़ुस्सालेहीन'' (6/450)

स्रोत

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