ईद के शुरू होने से एक या दो दिन पहले ईद की बधाई देने का क्या हुक्म हैॽ
ईद के आने से पहले ईद की बधाई देने का हुक्म
प्रश्न: 192665
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
ईद की बधाई देना अनुमेय कामों में से है। यह कुछ सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम से वर्णित है।
इब्ने क़ुदामह रहिमहुल्लाह ने फरमाया :
“इब्ने अक़ील ने ईद की बधाई देने के बारे में कुछ हदीसों का उल्लेख किया है, जिनमें से एक यह है कि मुहम्मद बिन ज़ियाद ने कहा : मैं अबू उमामह अल-बाहिली और उनके अलावा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के कुछ अन्य सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम के साथ था। चुनाँचे जब वे ईद (की नमाज़) से वापस लौटते थे, तो वे एक दूसरे से कहते : तक़ब्बलल्लाहु मिन्ना व मिन्क” (अल्लाह हमसे और तुमसे – नेक कार्य – क़बूल फरमाए)। अहमद ने कहा : अबू उमामह की हदीस की इस्नाद “जैयिद” (अच्छी) है।”
“अल-मुग़्नी” (2/130) से उद्धरण समाप्त हुआ।
सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम के कृत्य और उनसे उद्धृत बातों से यही प्रतीत होता है कि : ईद की बधाई ईद की नमाज़ के बाद देना चाहिए। इसलिए यदि कोई व्यक्ति इसी पर निर्भर करता है, तो यह अच्छा है। क्योंकि इसमें नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के सहाबा (साथियों) का अनुसरण पाया जाता है। लेकिन अगर वह अपने साथी (दोस्त) से पहल करते हुए, ईद की नमाज़ से पहले उसकी बधाई देता है : तो प्रत्यक्ष यही होता है कि, इन शा अल्लाह, इसमें कोई आपत्ति की बात नहीं है। क्योंकि ईद की बधाई देना, आदतों (परंपराओं) के अंतर्गत आता है और परंपराओं के अध्याय में, मामले में विस्तार (व्यापकता) पाया जाता है और उसके लिए लोगों के बीच प्रचलित रिवाज (प्रथा) की ओर लौटना चाहिए।
शिरवानी शाफेई रहिमहुल्लाह ने कहा : “उनके शब्द “ईद के दिन” से यह समझा जाता है कि तशरीक़ के दिनों में और ईदुल-फ़ित्र के दिन के बाद लोगों को बधाई देना अपेक्षित नहीं है। लेकिन इन दिनों में बधाई देना लोगों की आदत (प्रथा) बन गई है (आम तौर पर लोग इन दिनों में ईद की बधाई देते हैं) और ऐसा करने में कोई बाधा (शरई रुकावट) नहीं है। क्योंकि इसका उद्देश्य दोस्ती की भावनाओं को पैदा करना और खुशी व्यक्त करना है। तथा उनके शब्द “ईद के दिन” से यह भी समझा जाता है कि : बधाई देने का समय फज्र से शुरू होता है, न कि ईद की रात (चाँद की रात) से। जैसा कि कुछ हाशियों में इसका उल्लेख किया गया है।” उद्धरण समाप्त हुआ।
यह भी कहा जा सकता है कि : ऐसा करने में भी कोई शरई रुकावट नहीं है अगर यह रिवाज बन गया है; क्योंकि जैसाकि ऊपर उल्लेख किया गया है कि उसका उद्देश्य दोस्ती की भावनाओं को उजागर करना और खुशी व्यक्त करना है। इसका समर्थन इस तथ्य से होता है कि ईद की रात को तकबीर कहना अनुशंसित है।”
“हवाशी अश-शिरवानी अला तोहफ़तिल-मुहताज” (2/57) से उद्धरण समाप्त हुआ।
और अल्लाह ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।
स्रोत:
साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर