क्या मेरे लिए अपने पति से रोज़े कि हालत में यह कहना जायज़ है कि मै आप से प्यार करती हूँ ? मेरे पति मुझसे कहते हैं कि मैं रोज़े कि हालत में उनसे कहूँ कि मैं आप से प्यार करती हूँ। मैं ने उनसे कहा कि ऐसा करना जायज़ नहीं है, जबकि उनका कहना है कि यह जायज़ है।
पति पत्नी के बीच रोज़े की हालत में हंसी-मज़ाक़ का हुक्म
प्रश्न: 20032
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
रोज़े की हालत में औरत के अपने पति से और मर्द के अपनी पत्नी से बातचीत द्वारा हंसी-मज़ाक़ और दिल्लगी करने में कोई हरज नहीं है इस शर्त के साथ कि वे दोनों अपने ऊपर वीर्य के पतन से निश्चिंत हों। यदि वे दोनों अपने ऊपर वीर्यपात से निश्चिंत न हों, जैसे कि कोई व्याक्ति अति कामवासना वाला हो और उसे डर हो कि यदि उसने अपनी पत्नी से हंसी-मज़ाक़ किया तो वीर्यपात होने के कारण उसका रोज़ा फासिद हो जायेगा ; तो उसके लिए ऐसा करना जायज़ नहीं है, क्योंकि वह अपने रोज़े को खराब होने के दाव पर लगा रहा है। और यही हुक्म उस समय भी है जब उसे मज़ी (चुंबन या कामुक वार्तालाप के कारण पेशाब की नाली से निकने वाला पानी) के निकलने का भय हो।(अश शर्हुल मुम्ते 6/390)
जो व्यक्ति अपने ऊपर वीर्यपात से निश्चिंत हो उसके लिए चुंबन और हंसी-मज़ाक़ की वैधता का प्रमाण वह हदीस है जिसे बुखारी (हदीस संख्या : 1927) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 1106) ने आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायत किया है कि उन्हों ने कहा : नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम रोज़े की हालत में चुंबन और आलिंगन करते थे और वह अपनी वासना पर सबसे अधिक नियंत्रण रखने वाले थे।'' तथा सहीह मुस्लिम (हदीस संख्या : 1108) में अम्र बिन सलमह से वर्णित है कि उन्हों ने अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से प्रश्न किया कि क्या रोज़ेदार आदमी चुंबन करेगा ? तो अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने – उम्मे सलमह की ओर संकेत करते हुए – फरमाया : ‘‘इनसे पूछो’’ तो उन्हों ने सूचना दी कि अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ऐसा करते थे।’’
शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह ने फरमाते हैं : ‘‘चुंबन के अलावा सहवास के जो कारण हैं जैसे चिमटना और आलिंगन इत्यादि तो हम कहेंगे कि उसका हुक्म चुंबन का ही है, इनके बीच कोई अंतर नहीं है।''
''अश-शर्हुल मुम्ते'' (6/434) से अंत हुआ।
इस आधार पर, आपका अपने पति से मात्र यह कहना कि आप उनसे प्यार करती हैं या उनका आपसे इसी तरह के शब्द कहने से, रोज़े को कोई नुक़सान नहीं पहुँचता है। और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।
स्रोत:
शैख मुहम्मद सालेह अल-मुनज्जिद