मैं जानना चाहता हूँ कि क्या रजब की पहली रात को कोई निर्धारित दुआ पढ़ना सुन्नत से प्रमाणित है?
और वह दुआ यह है :
''अल्लाहुम्मा बारिक लना फी रजब व शाबान व बल्लिग़ना रमज़ान'' (ऐ अल्लाह! रजब और शाबान में हमें बर्कत दे, और हमें रमज़ान तक पहुँचा) अल्लाह सर्वशक्तिमान से प्रार्थना करता हूँ कि हमें प्रमाणित सुन्नत पर अमल करने पर सुदृढ़ रखे।
हदीस: (ऐ अल्लाह! रजब और शाबान में हमें बर्कत दे, और हमें रमज़ान तक पहुँचा) ज़ईफ है, सही नहीं है।
प्रश्न: 202017
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
सर्व प्रथम :
रजब के महीने की फज़ीलत में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से कोई हदीस सही नहीं है। प्रश्न संख्या (75394), (171509) का उततर देखें।
तथा शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह फरमाते हैं :
''रजब की फज़ीलत (विशेषता) में कोई हदीस नहीं आई है, तथा रजब का महीना अपने पूर्व महीने जुमादल-आखिरा से उत्कृष्ट नहीं है सिवाय इसके कि वह हराम महीने में से है। अन्यथा उसमें कोई धर्मसंगत रोज़ा, या धर्मसंगत नमाज़ या धर्मसंगत उम्रा नहीं है और न तो कोई अन्य चीज़ है, वह अपने अलावा अन्य महीनों के समान है।’’ सारांशित रूप से संपन्न हुआ।
''लिक़ाउल बाबिल मफतूह'' (174/26) मक्तबा शामिला की नंबरिंग के साथ।
दूसरा :
अब्दुल्लाह बिन इमाम अहमद ने ''ज़वाइदुल मुसनद'' (हदीस संख्या : 2346) में और तब्रानी ने ‘‘अल-औसत’’ (3939) में, बैहक़ी ने ‘‘शोअबुल ईमान’’ (3534) में और अबू नुऐम ने ‘‘अल-हिल्या’’ (6/269) में ज़ाइदा बिन अबिर्रक़ाद के तरीक़ से रिवायत किया है कि उन्हों ने कहा : हमसे हदीस उल्लेख किया ज़ियाद अन-नुमैरी ने, उन्हों ने अनस बिन मालिक से रिवायत किया कि उन्हों ने कहा : जब रजब का महीना दाखिल होता तो अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम कहा करते थे :
''अल्लाहुम्मा बारिक लना फी रजब व शाबान व बल्लिग़ना रमज़ान''
(ऐ अल्लाह! तू रजब और शाबान में हमें बर्कत दे, और हमें रमज़ान तक पहुँचा)
यह एक कमज़ोर इसनाद है, ज़ियाद नुमैरी ज़ईफ है, उसे यह्या बिन मुईन ने ज़ईफ कहा है। तथा अबू हातिम का कहना है कि: उससे हुज्जत (दलील) नहीं पकड़ी जायेगी। तथा इब्ने हिब्बान ने उसे अज़्ज़ोअफा (यानी ज़ईफ व कमज़ोर रावियों की सूचि) में उल्लेख किया है और कहा है कि उससे हुज्जत पकड़ना जायज़ नहीं है। ‘‘मीज़ानुल एतिदाल’’ (2/91).
तथा ज़ाइदा बिन अबिर्रक़ाद उनसे अधिक कमज़ोर हैं। अबू हातिम ने कहा : वह ज़ियाद अन-नुमैरी के माध्यम से अनस से मरफूअ मुनकर हदीसें रिवायत करते हैं, और हम नहीं जानते कि यह उनकी ओर से हैं या ज़ियाद की ओर से। तथा बुखारी ने कहा : वह मुनकरूल हदीस हैं। तथा नसाई ने कहा : वह मुनकरूल हदीस हैं। तथा अल-कुना में फरमाया : वह सिक़ा (भरोसेमंद) नहीं हैं। तथा इब्ने हिब्बान ने कहा : वह मशहूर लोगों से मुनकर हदीसें रिवायत करते हैं, उनकी सूचना (हदीस) से दलील नहीं पकड़ी जायेगी और न तो उसे लिख जायेगा सिवाय इसके कि वह एतिबार (उस हदीस के दूसर तरीक़ो के बारे में खोज करने) के लिए हो। तथा इब्ने अदी ने कहा : अल-मक़दमी वगैरह ने उनसे इफराद (आहाद) हदीसें रिवायत की हैं, और उनकी कुछ हदीसों में मुनकर पाया जाता है।
''तहज़ीबुत तहज़़ीब'' (3/3305-306)
इस हदीस को इमाम नववी ने ''अल-अज़कार'' (पृष्ठ 189) में और इब्ने रजब ने ''लताइफुल मआरिफ'' (पृष्ठ 121) में ज़ईफ क़रार दिया है और इसी तरह अल्बानी ने ''ज़ईफुल जामे'' (4395) में ज़ईफ कहा है। तथा अल-हैसमी कहते हैं:
‘‘इसे बज़्ज़ार ने रिवायत किया है, और इसमें ज़ाइदा बिन अबिर्रक़ाद है, जिसके बारे में बुखारी ने मुनकरूल हदीस कहा है, जबकि मुहद्देसीन के एक समूह ने उसे मजहूल कहा है।'' ''मजमऊज़्ज़वाइद'' (2/165).
फिर यह हदीस – ज़ईफ होने के साथ – इसमें यह बात नहीं है कि यह दुआ रजब की पहली रात को पढ़ी जायेगी, बल्कि यह उसमें बर्कत के लिए एक सामान्य दुआ है, और यह रजब के महीने में और रजब के महीने से पहले भी सही है।
तीसरा :
जहाँ तक मुसलमान के अपने पालनहार से यह प्रश्न करने की बात है कि वह उसे रमज़ान तक पहुँचाए, तो इसमें कोई हरज (आपत्ति) की बात नहीं है।
हाफिज़ इब्ने रजब रहिमहुल्लाह कहते हैं :
''मुअल्ला बिन अल-फज़्ल कहते हैं : वे (पुनीत पूर्वज) अल्लाह तआला से छह महीने यह दुआ करते थे कि उन्हें रमज़ान तक पहुँचाए, और छह महीने तक यह दुआ करते थे कि उनसे क़बूल करे। तथा यह्या बिन अबी कसीर कहते हैं : उनकी दुआओं में से यह भी था कि : ''अल्लाह हुम्मा सल्लिम्नी इला रमज़ान, व सल्लिम ली रमज़ान व-तसल्लमहु मिन्नी मुतक़ब्बला'' (ऐ अल्लाह तू मुझे रमज़ान तक सुरक्षित रख, और रमज़ान को मेरे लिए सुरक्षित रख और उसे मुझसे स्वीकर कर ले)।'' लताइफुल मआरिफ (पृष्ठ 148) से अंत हुआ।
तथा शैख अब्दुल करीम अल-खुज़ैर हफिज़हुल्लाह से प्रश्न किया गया :
हदीसः (अल्लाहुम्मा बारिक लना फी रजब व शाबान व बल्लिग़ना रमज़ान) की प्रामाणिकता क्या है?
तो उन्हों ने उत्तर दिया :
''यह हदीस प्रमाणित नहीं है, लेकिन यदि मुसलमान यह दुआ करता है कि अल्लाह अज़्ज़ा व जल्ल उसे रमज़ान तक पहुँचाए, तथा उसे उसका रोज़ा रखने और क़ियाम करने की तौफीक़ दे, और उसे लैलतुल क़द्र पाने की तौफीक़ दे। अर्थात वह सामान्य दुआएं करे तो इन शा अल्लाह इसमें कोई आपत्ति की बात नहीं है।’’
शैख की साइटः
http://khudheir.com/text/298
से अंत हुआ।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।
स्रोत:
साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर
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