0 / 0

रजब के महीने में रोज़ा रखना

प्रश्न: 75394

क्या रजब के महीने में रोज़ा रखने के बारे में कोई निर्धारित विशेषता वर्णित है?

उत्तर का पाठ

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

सर्व प्रथम :

रजब का महीना उन हराम (सम्मानित) महीनों में से एक है जिनके बारे में अल्लाह तआला का कथन है :

﴿عِدَّةَ الشُّهُورِ عِندَ اللّهِ اثْنَا عَشَرَ شَهْراً فِي كِتَابِ اللّهِ يَوْمَ خَلَقَ السَّمَاوَات وَالأَرْضَ مِنْهَا أَرْبَعَةٌ حُرُمٌ ذَلِكَ الدِّينُ الْقَيِّمُ فَلاَ تَظْلِمُواْ فِيهِنَّ أَنفُسَكُمْ ﴾ [سورة التوبة :36]

‘‘निःसंदेह अल्लाह के निकट महीनों की संख्या अल्लाह की किताब में बारह है उसी दिन से जब से उस ने आकाश और धरती को पैदा किया है, उन में से चार हुर्मत व अदब (सम्मान) वाले हैं। यही शुद्ध धर्म है, अतः तुम इन महीनों में अपनी जानों पर अत्याचार न करो।’’ (सूरतुत-तौबाः 9/36)

हराम (सम्मानित) महीने : रजब, ज़ुल-क़ादा, ज़ुलहिज्जा और मुहर्रम हैं।

तथा बुखारी (हदीस संख्या : 4662) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 1679) ने अबू बक्रह रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णन किया है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : ‘‘साल बारह महीनों का होता है, उनमें से चार हराम महीने हैं, तीन लगातार : ज़ुल-क़ादा, ज़ुलहिज्जा और मुहर्रम, और मुज़र का रजब जो जुमादा और शाबान के बीच में आता है।’’

इन महीनों को हराम (सम्मानित) दो कारणों से कहा गया है :

1- उनके अंदर लड़ाई करना निषिद्ध है सिवाय इसके कि दुश्मन ही इसकी शुरूआत करे।

2- क्योंकि उनके अंदर निषिद्ध चीज़ों के सम्मान (मर्यादा) को भंग करना उनके अलावा महीनों से अधिक गंभीर है।

इसीलिए अल्लाह तआला ने हमें इन महीनों में अवज्ञाओं के करने से मना किया है, चुनाँचे फरमाया : ‘‘इनके अंदर अपनी जानों पर अत्याचार न करो।’’ (सूरतुत तौबा : 36) हालाँकि अवज्ञा (पाप) करना इन महीनों में और इनके अलावा महीनों में भी हराम और निषिद्ध है, परंतु इन महीनों में उसका निषेध अधिक सख्त है।

अल्लामा अस-सअदी रहिमहुल्लाह ने (पृष्ठ 373) फरमाया :

‘‘अतः तुम इनके अंदर अपने प्राणों पर अत्याचार न करो।’’ इसमें इस बात की संभावना है कि सर्वनाम बारह महीनों की ओर लौटता है, और अल्लाह तआला ने वर्णन किया है कि उसने इन महीनों को बंदों के लिए समय की मात्रा के निर्धारण के लिए बनाया है, और यह कि उसे अल्लाह की आज्ञाकारिता से आबाद किया जाए, और इस उपकार पर अल्लाह के प्रति आभार प्रकट किया जाए और उसे बन्दों के हितों के लिए अर्पित कर दिया जाए। अतः तुम इनके अंदर अपने ऊपर अत्याचार करने से बचो।

और यह भी संभव है कि सर्वनाम चार हराम महीनों की ओर लौटे, और यह उन्हें विशेष रूप से इन महीनों के अंदर अत्याचार करने से मना किया गया है, हालाँकि अत्याचार करना हर समय निषिद्ध है। क्योंकि उनके अंदर अत्याचार करना उनके अलावा महीनों में अत्याचार करने से अधिक सख्त और अधिक गंभीर है।’’ अंत हुआ।

दूसरा :

जहाँ तक रजब के महीने के रोज़े का संबंध है, तो विशेष रूप से उसके रोज़े की फज़ीलत में या उसमें से कुछ दिनों के रोज़े के बारे में कोई सहीह हदीस साबित नहीं है।

अतः कुछ लोग जो इस महीने के कुछ दिनों को विशिष्ट कर रोज़ा रखते हैं, यह आस्था रखते हुए कि उसकी दूसरे पर कोई फज़ीलत है : इसका शरीअत में कोई आधार नहीं है।

परंतु नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से ऐसी चीज़ वर्णित जो हराम महीनों में रोज़े के मुस्तहब होने को दर्शाती है (और रजब का महीना हराम महीनों में से है।) नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : ‘‘हराम महीनों में से कुछ दिनों का रोज़ा रखो और (कुछ) छोड़ दो।’’ इसे अबू दाऊद (हदीस संख्या : 2428) ने रिवायत किया है और अल्बानी ने ज़ईफ अबू दाऊद में इसे ज़ईफ क़रार दिया है।

तो यह हदीस – यदि वह ससहीह है – तो हराम महीनों में रोज़े के मुस्तहब होने पर दलालत करती है। अतः जिस आदमी ने इसके आधार पर रजब के महीने में रोज़ा रखा, और वह इसके अलावा हराम महीनों का भी रोज़ा रखता था, तो कोई हरज (आपत्ति) की बात नहीं है। लेकिन जहाँ तक रजब के महीने में विशिष्ट रूप से रोज़ा रखने की बात है तो ऐसा सही नहीं है।

शैखुल इस्लाम इब्ने तौमिय्या रहिमहुल्लाह ने ‘‘मजमूउल फतावा’’ (25/290) में फरमाया :

‘‘रही बात विशिष्ट रूप से रजब के महीने का रोज़ा रखने की, तो इसकी सारी हदीसें ज़ईफ़ बल्कि मनगढ़त हैं, धर्मज्ञानी इनमें से किसी भी चीज़ पर भरोसा नहीं करते हैं, और यह उस ज़ईफ में से नहीं है जो फज़ाइल में वर्णन की जाती हैं, बल्कि उनमें से अधिकांश हदीसें मनगढ़त और झूठी हदीसों में से हैं . . .

तथा मुसनद वगैरह में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से एक हदीस है कि आप ने हराम महीनों का रोज़ा रखने का हुक्म दिया : और वे रजब, ज़ुल-क़ादा, ज़ुल-हिज्जा और मुहर्रम हैं। तो यह सभी चारों महीनों का रोज़ा रखने के बारे में है, न कि जो रब के रोज़े को विशिष्ट कर लेता है।’’ संक्षेप के साथ समाप्त हुआ।

तथा इब्नुल क़ैयिम रहिमहुल्लाह ने फरमाया :

‘‘रजब के रोज़े और उसकी कुछ रातों में नमाज़ पढ़ने के वर्णन में हर हदीस झूठी और गढ़ी हुई है।’’ ‘‘अल-मनारुल मुनीफ’’ (पृष्ठ 96) से समाप्त हुआ।

हाफिज़ इब्ने हजर ने ‘‘तबईनुल अजब’’ (पृष्ठ 11) में फरमाया :

‘‘रजब के महीने की विशेषता, या उसके रोज़े या उसके कुछ निर्धारित रोज़े, या उसकी किसी विशिष्ट रात का क़ियाम करने के बारे में कोई सहीह हदीस वर्णित नहीं है जो दलील पकड़ने के योग्य हो।’’ अंत हुआ।

शैख सैयिद साबिक़ रहिमहुल्लाह ने ‘‘फिक़्हुस्सुन्नह’’ (1/383) में फरमाया :

‘‘रजब के महीने के रोज़े की उसके अलावा अन्य महीनों पर कोई अतिरिक्त विशेषता नहीं है, सिवाय इतनी बात केकि वह हराम (सम्मानित) महीनों में से है। तथा सहीह सुन्नत (हदीस) में कोई ऐसी चीज़ वर्णित नहीं है कि विशेष रूप से रोज़े की कोई विशेषता है। और इस संबंध में जो कुछ भी वर्णित है वह इस लायक़ नहीं है कि उससे दलील पकड़ी जाए’’ अंत हुआ।

तथा शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह से सत्ताईसवीं रजब के दिन रोज़ा रखने और उसकी रात को क़ियाम करने के बारे में पूछा गया तो उन्हों ने उत्तर दिया :

‘‘सत्ताईसवीं रजब के दिन रोज़ा रखना और उसकी रात को क़ियाम करना और उसे विशिष्ट कर लेना, बिदअत है और हर बिदअत पथ-भ्रष्टता है।’’ अंत हुआ।

‘‘मजमूअ फतावा इब्ने उसैमीन’’ (20/440).

स्रोत

साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर

at email

डाक सेवा की सदस्यता लें

साइट की नवीन समाचार और आवधिक अपडेट प्राप्त करने के लिए मेलिंग सूची में शामिल हों

phone

इस्लाम प्रश्न और उत्तर एप्लिकेशन

सामग्री का तेज एवं इंटरनेट के बिना ब्राउज़ करने की क्षमता

download iosdownload android