हम अल्बानी की सहीहुत् तर्गीब वत्-तर्हीब में मौजूद हदीस को कैसे समझें, जो कि एक हदीस क़ुदसी है, जिसमें अल्लाह तआला फरमाता है: “जिसे अल्लाह तआला ने स्वास्थ्या दिया है और हर पाँच साल पर अल्लाह के घर की ज़ियारत न करे तो वह महरूम (वंचित) है।” इस हदीस से हम क्या समझते हैं ?
हर पाँच साल पर हज्ज करने की हदीस की प्रामाणिकता और उसका अर्थ
प्रश्न: 20653
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
सर्व प्रथम :
हदीस के मूल शब्द निम्नलिखित हैं :
अबू सईद खुदरी रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : अल्लाह तआला ने फरमाया : ‘‘एक ऐसा बंदा जिसके शरीर को मैं ने स्वस्थ बनाया है और उसकी जीविका में विस्तार किया है, उसके ऊपर पाँच साल गुज़र जाएं और वह मेरे पास न आए तो वह बदनसीब (वंचित) है।” इसे अबू याला (2/304) और बैहक़ी (5/262) ने रिवायत किया है।
दूसरा :
हदीस पर टिप्पड़ी
कुछ विद्वानों ने इस हदीस पर टिप्पड़ी की है, चुनांचे कुछ लोग – जैसे कि इब्नुल अरबी मालिकी – इस बात की ओर किए गए हैं कि वह मौज़ू (मनगढ़ंत) है, जबकि दूसरे लोगों जैसे कि दारक़ुत्नी, उक़ैली और सुबकी ने इसे ज़ईफ क़रार दिया है, तथा इब्ने हिब्बान और शैख अल्बानी “सिलसिलतुस सहीहा” (हदीस संख्या : 1662) में इस बात की ओर गए हैं कि वह सही है।
तीसरा :
कुछ विद्वानों ने हदीस का अर्थ हज्ज या उम्रा लिया है, इसी आधार पर हैसमी ने अपनी किताब “मवारिदुज़ ज़म्आन” में इस हदीस पर यह सुर्खी लगाई है : “उस आदमी के बारे में अध्याय जिस पर पाँच साल बीत जाएं और वह मालदार होने के बावजूद हज्ज या उम्रा न करे”
“मवारिदुज़ ज़म्आन” (पृष्ठ : 239).
और कुछ लोगों ने उसका अर्थ केवल हज्ज लिया है, जैसाकि मुंज़िरी ने तर्गीब व तर्हीब में इस हदीस पर यह सुर्खी लगाई है : “उस आदमी के लिए धमकी जो हज्ज पर सक्षम होने के बावजूद हज्ज न करे” अंत हुआ।
तथा कुछ विद्वानों ने इस हदीस से सक्षम व्यक्ति पर हर पाँच साल में हज्ज के अनिवार्य होने पर दलील पकड़ी है, हालांकि यह एक कमज़ार कथन है, या तो हदीस के कमज़ोर होने और सही न होने के कारण, और या तो इसलिए कि इस हदीस का अर्थ इस्तिहबाब है अनिवार्य नहीं है।
सुबकी ने कहा :
विद्वानों की इस बात पर सर्वसहमति है कि हज्ज प्रति आज़ाद मुकल्लफ मुसलमान पर जीवन में केवल एक बार अनिवार्य है, सिवाय कुछ शाज़ (विरल) लोगों के जिसने यह कहा है कि : यह हर पाँच साल पर एक बार अनिवार्य है, और उसकी दलील यह हदीस है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया: “हर मुसलमान पर हर पाँच साल में अल्लाह के सम्मानित वा प्रतिष्ठति घर आना अनिवार्य है।” इसे इब्नुल अरबी ने वर्णन किया है, और कहा है कि : हम कहते हैं कि : इस हदीस को रिवायत करना ही हराम है तो इससे कोई हुक्म कैसे साबित किया जा सकता है।” उनकी बात समाप्त हुई।
तथा दारक़ुत्नी ने फरमाया : यह एक से अधिक तरीक़ों (सनदों) से वर्णित है, लेकिन उनमें से कुछ भी सही नहीं है।
“फतावा अस्सुबकी” (1/263).
हत्ताब ने कहा :
“कुछ शाज़ (विरल) लोंगों का कहना है कि : यह हर साल अनिरवार्य है, और कुछ लोगों से वर्णित है कि यह हर पाँच साल में अनिवार्य है, क्योंकि पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से वर्णित है कि आप ने फरमाया : “हर मुसलमान पर हर पाँच साल में अल्लाह के सम्मानित घर में आना अनिवार्य है।” इब्नुल अरबी ने कहा: इस हदीस को रिवायत करना ही हराम है तो इससे कोई हुक्म कैसे साबित किया जा सकता है ॽ अर्थात यह मनगढ़ंत है, नववी ने कहा : यह बात इजमा (सर्वसहमति) के विरुद्ध है, अतः इसके कहने वाले पर इससे पहले लोगों की सर्वसहमति हुज्जत है।” अंत हुआ।
और अगर इसके वर्णित होने को स्वीकार कर लिया जाए तो उसके इस अवधि में मुस्तहब और सुनिश्चित होने पर महमूल किया जायेगा।” अंत हुआ।
“मवाहिबुल जलील” (2/466).
स्रोत:
साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर