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इस्लाम और मुसलमान

प्रश्न: 20756

इस्लाम धर्म और मुस्लिम धर्म के बीच क्या अंतर है, या वे दोनों एक ही चीज़ हैं ॽ

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

हर प्रकार
की प्रशंसा और
गुणगान केवल अल्लाह
के लिए योग्य है।

इस्लाम : तौहीद
(एकेश्वरवाद)
को मानते हुए,
आज्ञकारिता के
साथ उसकी ताबेदारी
करते हुए तथा शिर्क
(बहुदेववाद) और
शिर्क करने वालों
से विमुखता प्रकट
करते हुए अपने
आपको एकमात्र अल्लाह
के सामने समर्पित
कर दिया जाये।
और यही वह दीन है
जिसे अल्लाह तआला
ने अपने बंदों
के लिए पसंद फरमाया
है, जैसाकि
अल्लाह तआला ने
फरमाया :

إِنَّ
الدِّينَ عِنْدَ اللَّهِ الإِسْلامُ
[آل عمران :
19].

निःसन्देह
अल्लाह के निकट
धर्म इस्लाम ही
है। (सूरत-आल इम्रानः
19)

तथा फरमायाः

وَمَن
يَبْتَغِ غَيْرَ الإِسْلاَمِ دِيناً فَلَن يُقْبَلَ مِنْهُ وَهُوَ فِي الآخِرَةِ
مِنَ الْخَاسِرِينَ
[آل عمران : 85].

“और जो व्यक्ति
इस्लाम के सिवा
कोई अन्य धर्म
ढूंढ़े गा, तो वह
(धर्म) उस से स्वीकार
नहीं किया जायेगा,
और आखिरत में वह
घाटा उठाने वालों
में से होगा।” (सूरत आल-इम्रान
: 85)

तथा उसमें
प्रवेश करने वाले
को मुस्लिम कहा
जाता है,
क्योंकि जब उसने
इस्लाम को स्वीकार
कर लिया तो वास्तव
में उसने अपने
आप को समर्पित
कर दिया और अल्लाह
सर्वशक्तिमान
और उसके पैगंबर
सल्लल्लाहु अलैहि
व सल्लम की ओर जो
भी अहकाम,
प्रावधान और नियम
आये हैं उन सब का
पालन करने वाला
हो गया। अल्लाह
तआला ने फरमाया
:

وَمَنْ
يَرْغَبُ عَنْ مِلَّةِ إِبْرَاهِيمَ إِلَّا مَنْ سَفِهَ نَفْسَهُ وَلَقَدِ
اصْطَفَيْنَاهُ فِي الدُّنْيَا وَإِنَّهُ فِي الْآخِرَةِ لَمِنَ الصَّالِحِينَ

[البقرة
:130-131].

“और इब्राहीम
के धर्म से वही
मुँह मोड़ेगा जो
मूर्ख होगा,
हम ने तो उन्हें
दुनिया में भी
चुनित बनाया था
और आखि़रत में
भी वह सदाचारियों
में से हैं। जब
उन के पालनहार
ने उन से कहा कि
आज्ञाकारी हो जाओ,
तो उन्हों
ने कहा कि मैं अल्लाह
रब्बुल-आलमीन का
आज्ञाकारी हो गया।” (सूरतुल बक़रह
: 130-131)

तथा फरमाया
:

بَلَى
مَنْ أَسْلَمَ وَجْهَهُ لِلّهِ وَهُوَ مُحْسِنٌ فَلَهُ أَجْرُهُ عِندَ رَبِّهِ
وَلاَ خَوْفٌ عَلَيْهِمْ وَلاَ هُمْ يَحْزَنُونَ
[سورة البقرة :112].

“सुनो ! जिसने अपने
चेहरे को अल्लाह
के सामने झुका
दिया (आज्ञापालन
किया) और वह नेकी
करने वाला (भी) है,
तो उस के लिए उसके
रब के पास अज्र
(पुण्य) है, और उन
पर न कोई डर होगा
और न वो लोग शोक
ग्रस्त हों गे।” (सूरतुल बक़रा
: 112)

स्रोत

शैख मुहम्मद सालेह अल-मुनज्जिद

at email

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