उस आदमी का क्या हुक्म है जिसने सफा से पहले मर्वा से (सई) शुरू किया ?
सफा से पहले मर्वा से शुरूआत करने वाले का हुक्म
प्रश्न: 209165
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
सफा और मर्वा के बीच सई करनेवाले पर अनिवार्य है कि वह उसी स्थान से शुरू करे जिससे अल्लाह ने शुरू किया है, और जिससे अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने शुरू किया है। चुनाँचे अल्लाह तआला का फरमान है :
إِنَّ الصَّفَا وَالْمَرْوَةَ مِنْ شَعَائِرِ اللَّهِ فَمَنْ حَجَّ الْبَيْتَ أَوِ اعْتَمَرَ فَلا جُنَاحَ عَلَيْهِ أَنْ يَطَّوَّفَ بِهِمَا وَمَنْ تَطَوَّعَ خَيْراً فَإِنَّ اللَّهَ شَاكِرٌ عَلِيمٌ [البقرة :158].
‘‘अवश्य सफ़ा और मर्वा अल्लाह की निशानियों में से हैं। इसलिए अल्लाह के घर का हज्ज तथा उम्रा करने वाले पर इनका तवाफ (परिक्रमा) कर लेने में कोई पाप नहीं और अपनी प्रसन्नता से पुण्य करने वालों का अल्लाह सम्मान करता है तथा उन्हें भली-भांति जानने वाला है।'' (सूरतुल बक़राः 158)
तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपनी सई सफा से शुरू की और फरमाया: (أبدأ بما بدأ الله به) ''जिस से अल्लाह ने शुरू किया है मैं भी उसी से शुरू करता हूँ।''
सबसे सही बात यह है कि उन दोनों के बीच तर्तीब (क्रमांकन) अनिवार्य है। अतः जिसने पहले मर्वा से शुरू किया : तो उसका पहला चक्कर शुमार नहीं किया जायेगा, उसके ऊपर अनिवार्य है कि वह एक दूसरे चक्कर की वृद्धि करे।
तथा शैख मुहम्मद अल-अमीन शंक़ीती ने फरमाया :
‘‘यह बात जान लो कि जमहूर विद्वान सई के अंदर तर्तीब की शर्त लगाते हैं, और वह यह कि वह सफा से शुरू करे, और मर्वा पर अंत करे। यदि उसने मर्वा से शुरू किया है : तो उस चक्कर को शुमार नहीं किया जायेगा। जिन लोगों ने तर्तीब की शर्त होने की बात कही है उनमें से : मालिक, शाफई, अहमद और उनके अनुयायी, हसन बसरी, औज़ाई, दाऊद और जमहूर उलमा (विद्वानों की बहुमत) हैं।
इस बारे में इमाम अबू हनीफा से मतभेद वर्णित है :
‘‘तबईनुल ह़क़ाइक़ शरह कंज़ुद-दक़ाइक़’’ के लेखक ने इमाम अबू हनीफा रहिमहुल्लाह के फिक़्ह में फरमाया : ‘‘यदि उसने मर्वा से शुरू किया तो पहले (चक्कर) का शुमार नहीं किया जायेगा क्योंकि उसने आदेश का उल्लंघन किया है।'' समाप्त हुआ।
तथा शैख शिहाबुद्दीन अहमद शिलबी ने उपर्युक्त ‘‘तबईनुल हकाइक़’’ के ऊपर अपने हाशिया में फरमाया : ‘‘उनका कथन (यदि उसने मर्वा से शुरू किया तो पहले (चक्कर) को शुमार नहीं किया जायेगा), और किर्मानी के मनासिक (हज्ज व उम्रा से संबंधित किताब) में है कि : हमारे निकट उसके अंदर तर्तीब शर्त नहीं है, यहाँ तक कि यदि उसने मर्वा से शुरू किया और सफा आया तो जायज़ है, और उसका शुमार किया जायेगा। लेकिन सुन्नत छोड़ देने की वजह से वह मक्रूह (नापसंदीदा) है। अतः उस चक्कर को लौटाना मुसतहब है।
सरूजी रहिमहुल्लाह ने ‘‘अल-गाया’’ में फरमाया : किर्मानी ने जो कुछ उल्लेख किया है उसका कोई आधार और बुनियाद नहीं है।
तथा राज़ी ने ‘‘अहकामुल क़ुरआन’’ में फरमाया : ‘‘यदि उसने सफा से पहले मर्वा से शुरू किया : तो हमारे असहाब की प्रसिद्ध रिवायत के अनुसार उसे शुमार नहीं किया जायेगा। तथा अबू हनीफा से वर्णित है कि : उसके लिए उचित यह है कि वह उस चक्कर को लौटाए, यदि उसने ऐसा नहीं किया तो उसके ऊपर कुछ भी नहीं है, और उन्हों ने उसे तहारत (पवित्रता, वुज़ू) के अंगों में तर्तीब छोड़ देने के समान क़रार दिया है।’’ समाप्त हुआ। अतः सरूजी का यह कथन कि : किर्मानी ने जो कुछ उल्लेख किया है उसका कोई आधार और बुनियाद नहीं है, क़ाबिल गौर है।
तर्तीब की शर्त लगाने में जमहूर का तर्क यह है कि : नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इसे किया और फरमाया : मैं उसी से शुरू करता हूँ जिससे अल्लाह ने शुरू किया है।’’ तथा नसाई की हदीस है कि : ‘‘तुम उसी से शुरू करो जिससे अल्लाह ने शुरू किया है।’’। इसके साथ साथ आपका यह फरमान भी है कि : ‘‘तुम अपने हज्ज के कार्यों को मुझसे सीख लो।’’ अतः हमारे लिए ज़रूरी है कि हम अपने हज्ज के कार्यो में से आप से उस चीज़ से शुरू करना भी ग्रहण करें जिससे अल्लाह ने शुरू किया है, तथा महान क़ुरआन पर अमल करते हुए उसे आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने भीकिया है।’’
‘‘अज़वाउल बयान’’ (5/250, 251) से समाप्त हुआ।
तथा स्थायी समिति के विद्वानों ने – उस व्यक्ति के जवाब में : जिसने सफा से पूर्व मर्वा से शुरू किया और उसमें एक आठवें चक्कर की वृद्धि कर दी – फरमाया :
‘‘यदि मामला ऐसे ही है जैसा कि आप ने उल्लेख किया है कि आप ने एक आठवाँ चक्कर भी किया जो सई के सात चक्करों को सही तरीक़े पर पूरा करनेवाला है : तो आपकी सई सही है ;क्योंकि पहला चक्कर जो आप ने मर्वा से शुरू कर सफा पर समाप्त किया है उसे व्यर्थ (समझा जायेगा) ; क्योंकि आप ने उसे धर्मसंगत तरीक़े पर नहीं किया है।’’
शैख अब्दुल अज़ीज़ बिन अब्दुल्लाह बिन बाज़, शैख अब्दुर्रज़्ज़ाक़ अफीफी, शैख अब्दुल्लाह बिन गुदैयान।
‘‘इफ्ता और वैज्ञानकि अनुसंधान की स्थायी समिति के फतावा’’ (11/259, 260) से समाप्त हुआ।
स्रोत:
साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर