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काफ़िर को ज़कात देना

प्रश्न: 21384

क्या गैर मुस्लिमों को ज़कात देना जायज़ है?

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

काफिरों को धन और फल की ज़कात और ज़कातुल फित्र से देना जायज़ नहीं है, भले ही वे ग़रीब, या मुसाफ़िर या क़र्ज़दार ही क्यों न हों। और अगर कोई उन्हें ज़कात देता है, तो वह ज़कात के रूप में पर्याप्त नहीं होगी।

उनके ग़रीबों को सामान्य दान – जो अनिवार्य न हो – से देना जायज़ है और उनकी दिलजोई के लिए उनके साथ उपहार और अनुदान का आदान-प्रदान किया जा सकता है, बशर्ते कि उनकी ओर से कोई ज़्यादती (अत्याचार) न हो, जो उनके साथ ऐसा करने से रोकता हो।

क्योंकि सर्वशक्तिमान अल्लाह का फरमान है :

لَّا يَنۡهَىٰكُمُ ٱللَّهُ عَنِ ٱلَّذِينَ لَمۡ يُقَٰتِلُوكُمۡ فِي ٱلدِّينِ وَلَمۡ يُخۡرِجُوكُم مِّن دِيَٰرِكُمۡ أَن تَبَرُّوهُمۡ وَتُقۡسِطُوٓاْ إِلَيۡهِمۡۚ إِنَّ ٱللَّهَ يُحِبُّ ٱلۡمُقۡسِطِينَ

الممتحنة: 8

“अल्लाह तुम्हें इससे नहीं रोकता कि तुम उन लोगों से अच्छा व्यवहार करो और उनके साथ न्याय करो, जिन्होंने तुमसे धर्म के विषय में युद्ध नहीं किया और न तुम्हें तुम्हारे घरों से निकाला। निश्चय अल्लाह न्याय करने वालों से प्रेम करता है।” (सूरतुल-मुमतहिनह : 8]

और अल्लाह ही तौफ़ीक़ (सामर्थ्य) प्रदान करने वाला है। तथा अल्लाह हमारे नबी मुहम्मद और उनके परिवार और साथियों पर दया एवं शांति अवतरित करे।

“फ़तावा अल-लजनह अद-दाईमह” (10/30)

ज़कात का एक उपयोग (ख़र्च करने की जगह) ऐसा है जिससे काफिरों को देना जायज है, और वह उन लोगों की श्रेणी है जिनके दिलों को परचाया जाता है। अतः उन काफ़िरों को ज़कात से देना जायज़ है जिनका उनकी क़ौम में हुक्म माना जाता है (जो प्रभावी लोग हैं), अगर उन्हें देने से यह आशा हो कि वे मुसलमान हो जाएँगे, फिर उनके मातहत लोग भी मुसलमान हो सकते हैं। और अल्लाह ही समार्थ्य प्रदान करने वाला है।

स्रोत

शैख मुहम्मद सालेह अल-मुनज्जिद

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