हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।
प्रथमः
क़ुर्बानी करने वाले के लिए अपनी क़ुर्बानी के सवाब में अपने जीवित एवं मृत रिश्तेदारों में से जिसे भी चाहे साझा करने की अनुमति है। उस हदीस के आधार पर जिसे मुस्लिम ने रिवायत किया है, जिसमें यह वर्णित हैः “अल्लाहुम्मा तक़ब्बल मिन मुहम्मद व आलि मुहम्मद” (ऐ अल्लाह, मुहम्मद और मुहम्मद के परिवार की ओर से स्वीकार कर), और “आलि मुहम्मद” का शब्द मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के परिवार में से जीवित और मृत दोनों को शामिल है। इसी तरह उसके लिए मृतकों की तरफ से व्यक्तिगत रूप से, या जीवित लोगों के अधीन करके भी क़ुर्बानी करना जायज़ है। इसका उल्लेख प्रश्न संख्याः (36596) के उत्तर और प्रश्न संख्याः (36706) के उत्तर में गुज़र चुका है।
दूसरा :
एक क़ुर्बानी का जानवर आदमी और उसके परिवार के सदस्यों, जैसे पत्नी, बच्चे और माता-पिता, की ओर से पर्याप्त है, यदि वे सभी एक ही घर में रहते हैं; क्योंकि इमाम मुस्लिम (हदीस संख्या : 3637) ने आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायत किया है किः “अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने सींगों वाला एक मेंढा लाने का आदेश दिया जो काले पैर, काले पेट और काली आँखों वाला हो। उसे आप के पास लाया गया ताकि आप उसकी क़ुर्बानी करें। तो आप ने आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा से फरमाया : “ऐ आयशा छुरी लाओ। फिर फरमायाः इसे पत्थर पर तेज़ करो।” चुनाँचे उन्हों ने ऐसा ही किया, फिर आप ने छुरी ले ली और मेंढे को पकड़कर लिटाया और उसे ज़ब्ह करने के लिए तैयार होने लगे फिर कहा : अल्लाह के नाम से ज़बह करता हूँ, ऐ अल्लाह मुहम्मद और मुहम्मद के परिवार की ओर से और मुहम्मद की उम्मत की ओर से स्वीकार कर।‘’ फिर आप ने उसकी क़ुर्बानी की।”
नववी रहिमहुल्लाह कहते हैं : “इस हदीस को उन लोगों ने प्रमाण बनाया है जिन्हों ने एक व्यक्ति के लिए अपनी ओर से और अपने घर के सदस्यों की तरफ से क़ुर्बानी करने और उन्हें अपने साथ सवाब में साझा करने को जायज़ क़रार दिया है। यही हमारा मत और विद्वानों की बहुमत (जम्हूर) का मत है।” नववी की “शर्ह मुस्लिम” से उद्धरण समाप्त हुआ।
इस आधार पर, पति के लिए धर्मसंगत यह है कि वह यह नीयत करे कि उसकी क़ुर्बानी अपनी ओर से और अपने घर के सदस्यों की तरफ से है, जैसाकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने किया। और यह उसके लिए उसकी ओर से और उन (सब) की ओर से पर्याप्त होगा और वे लोग उसके साथ सवाब में साझेदार होंगे। उसके लिए अपनी पत्नी की ओर से एक अलग क़ुर्बानी करने की जरूरत नहीं है।
अगर उसने अपनी क़ुर्बानी के द्वारा अपने परिवार वालों की नीयत नहीं की है, तो उनसे भी क़ुर्बानी करने का मुतालबा नहीं किया जाएगा, क्योंकि आदमी की क़ुर्बानी द्वारा घर के सदस्यों से उसका मुतालबा समाप्त हो गया, भले ही उन्हें एक ऐसे काम पर सवाब नहीं मिलेगा जिसे उन्हों ने नहीं किया है और उसके करने वाले ने उन्हें उसके सवाब में शामिल नहीं किया है।
अर-रमली रहिमहुल्लाह ने – क़ुर्बानी के विषय में – फरमाया : यह हमारे हक़ में एक मुअक्कदा सुन्नत है किफ़ायत के तौर पर, भले ही वह मिना में हो अगर घर के सदस्य अनेक हैं, अन्यथा यह एक व्यक्तिगत सुन्नत है। उसके किफ़ायत के तौर पर सुन्नत होने का अर्थ, जबकि वह उनमें से प्रत्येक के लिए सुन्नत है, यह है किः अगर कोई दूसरा उसे कर लेता है तो उसका मुतालबा समाप्त हो जाता है, यह नहीं कि न करने वाले को भी सवाब मिलता है, जैसा कि जनाज़ा (अंतिम संस्कार) की नमाज़ का मामला है। लेखक ने “शर्ह मुस्लिम” में कहा है किः यदि वह किसी और को सवाब में साझेदार कर लेता है, तो यह जायज़ है, और यही हमारा मत है। इसके बारे में मूल सिद्धांत यह है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपनी पत्नियों की ओर से मिना में गायों की क़ुर्बानी की। इसे बुखारी और मुस्लिम ने रिवायत किया है।”
“निहायतुल-मुहताज” (8/132) से समाप्त हुआ।
लेकिन अगर पत्नी के पास अपना निजी पैसा है, और वह उससे क़ुर्बानी करना चाहती हैः तो वह ऐसा कर सकती है। और अगर उसके बेटों में से कोई उसे क़ुर्बानी करने के लिए पैसे देता है, और वह उसे उनसे स्वीकार कर लेती हैः तो उसके लिए ऐसा करना भी जायज़ है।
अधिक जानकारी के लिए, प्रश्न संख्याः (45544) का उत्तर देखें।
और अल्लाह तआला ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान वाला है।