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लैलतुल-क़द्र को देखना

प्रश्न: 21905

क्या लैलतुल-क़द्र को आँखों से देखा जा सकता है, अर्थात् क्या उसे नग्न मानव आँख से देखा जा सकता है? क्योंकि कुछ लोगों का कहना है कि अगर कोई व्यक्ति लैलतुल-क़द्र को देख सकता है तो वह आकाश में एक प्रकाश को देखता है। अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम ने उसे कैसे देखा था? एक व्यक्ति कैसे जान सकता है कि उसने लैलतुल-क़द्र को देखा है? क्या कोई व्यक्ति उसके अज्र व सवाब को पाएगा, अगरचे वह उस रात में थी जिसमें वह उसे नहीं देख सका है? कृपया इसे स्पष्ट करें और उसका प्रमाण उल्लेख करें।

उत्तर का पाठ

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

लैलतुल-क़द्र को वह व्यक्ति आँख से देख सकता है, जिसे अल्लाह तआला तौफीक़ प्रदान कर दे, इस प्रकार कि वह उसके संकेतों को देखे। सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम संकेतों के द्वारा उसकी पहचान करते थे। लेकिन उसे न देखने का मतलब यह नहीं है कि उस व्यक्ति को उसका लाभ (अज्र व सवाब) प्राप्त नहीं होगा जिसने विश्वास के साथ और अज्र व सवाब की उम्मीद में उसे इबादत में बिताया है। अतः मुसलमान को चाहिए कि रमज़ान की आखिरी दस रातों में इसे पाने का भरपूर प्रयास करे, जैसा कि पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अज्र व सवाब पाने की उम्मीद में ऐसा करने का आदेश दिया है। यदि ऐसा होता है कि कोई व्यक्ति इस रात को विश्वास के साथ और अज्र व सवाब की आशा में इबादत में बिताता है, तो उसे उसका अज्र व सवाब प्राप्त होगा, भले ही उसे इस बात का ज्ञान न हो (कि वह लैलतुल-कद्र थी)। नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया :

“जो व्यक्ति ईमान के साथ और अल्लाह के पास अज्र व सवाब (प्रतिफल) की आशा रखते हुए क़द्र की रात को इबादत में बिताएगा, उसके सारे पिछले पाप क्षमा कर दिए जाएंगे।” एक दूसरी रिवायत में है किः ''जो व्यक्ति लैलतुल-क़द्र को तलाश करते हुए उसे इबादत में बिताया, फिर वह (रात) उसे मिल गई, तो उसके पिछले और भविष्य के पापों को माफ कर दिया जाएगा।''

नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से ऐसी हदीस प्रमाणित है जिससे यह पता चलता है कि लैलतुल-क़द्र की निशानियों में से यह है कि उसकी सुबह सूरज बिना किसी किरण के उदया होता है। तथा उबैय बिन कअब रज़ियल्लाहु अन्हु क़सम खाकर कहते थे कि वह सत्ताईसवीं रात है और वह इसी निशानी से दलील पकड़ते थे। अधिक सही दृश्य (राजेह) यह है कि यह सभी अंतिम दस रातों में स्थानांरित होती रहती है, लेकिन उसकी विषम संख्या वाली रातें अधिक संभावित हैं, जबकि विषम संख्या वाली रातों में सत्ताईसवीं रात की सबसे अधिक संभावना है। लेकिन जो भी व्यक्ति पूरी अंतिम दस रातों के दौरान नमाज़, क़ुरआन के पाठ, दुआ और अन्य प्रकार के अच्छे कामों में भरपूर प्रयास करता है, वह निश्चित रूप से लैलतुल-क़द्र को पा लेगा और अल्लाह ने उसका क़ियाम करने वाले के लिए जिस प्रतिफल का वादा किया है उसे प्राप्त कर लेगा यदि उसने ऐसा ईमान के साथ और पुण्य की आशा में किया है।

और अल्लाह तआला ही तौफ़ीक़ प्रदान करनेवाला है, तथा अल्लाह तआला हमारे पैगंबर मुहम्मद और उनके परिवार और साथियों पर दया और शांति अवतरित करे।

स्रोत

शैख मुहम्मद सालेह अल-मुनज्जिद

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