कर्मों के गुण (विशेषतायें)
क्या हदीस में यह सिद्ध है कि हज्रे-अस्वद को चुंबन करने वाला बिना हिसाब-किताब के स्वर्ग में प्रवेश करेगाॽ
मैं एक हदीस की प्रामाणिकता के बारे में पूछना चाहता हूँ जो मैंने सुनी है, उसके शब्द ये हैं : (जिसने हज्रे अस्वद का चुंबन किया वह बिना किसी हिसाब के स्वर्ग में प्रवेश करेगा।'' मुझे इसकी सनद के बारे में ज्ञान नहीं है। इसलिए मैं हदीस की प्रामाणिकता का हुक्म चाहता हूँ। और अगर हदीस सही नहीं है, तो क्या कोई ऐसा शरर्इ प्रमाण है जो इस बात को दर्शाता है कि जिसने हज्रे अस्वद का चुंबन किया वह बिना हिसाब के स्वर्ग में प्रवेश करेगा या कि यह ऐसी चीज़ है जो मौजूद नहीं हैॽएक मुसलमान बुरे आचार से कैसे छुटकारा प्राप्त करे, तथा शिष्टाचार से कैसे सुसज्जित हो?
मेरा आचार और रवैया बहुत बुरा है। मैं अपनी माँ की अवज्ञा करती हूँ और सदैव उन्हें गुस्सा दिलाती हूँ। कभी-कभी मेरा आचार और रवैया अच्छा भी होता है, परन्तु अक्सर समय बुरा ही रहता है। अतः मैं अपने आचार और रवैये को कैसे सुधार सकती हूँ? वे कौन सी चीज़ें हैं जो माता-पिता के साथ अच्छा व्यवहार करने तथा शिष्टाचार को विकसित करने में सहयोग करती हैं? यदि मेरा आचार और रवैया बुरा है तो क्या मुझे दंडित किया जाएगा? अथवा अच्छा व्यवहार (शिष्टाचार) मात्र अच्छा है? (अर्थात ऐसा है जो केवल अच्छा है, लेकिन आवश्यक नहीं है) जब मैं अपने आचार को अच्छा बनाती हूँ तो मुझे दिखावा (रियाकारी) महसूस होता है (अर्थात् यह कि मैं दिखावा कर रही हूँ)। मुझे लगता है कि मैं आचार के बारे में छोटे शिर्क (अनेकेश्वरवाद) की दोषी हूँ। अतः मेरे लिए अच्छे व्यवहार और शिष्टाचार पर स्थिर रहना तथा उसमें अल्लाह के लिए इख़्लास़ (निष्ठा) अपनाना कैसे संभव है?जुमा की नमाज़ के लिए पहली घड़ी में कैसे जाए, जबकि मस्जिदें बंद होती हैंॽ
हमारे देश में, मस्जिदें के दरवाज़े प्रतिदिन अज़ान से एक चौथाई घंटा (पंद्रह मिनट) पहले खोले जाते हैं, जबकि जुमा के दिन सुबह 11:00 बजे से खोले जाते हैं। अतः जो व्यक्ति (जुमा के लिए) पहली घड़ी में जाना चाहता है, वह क्या करेगाॽपाँचों समय की नमाज़ों की पाबंदी करने ओर उन्हें आदेश के अनुसार अदा करने वाले की विशेषता
किताब ''कनज़ुल-आमाल'' की इन निम्नलिखित हदीसों की प्रामाणिकता क्या है, और क्या इन पर अमल किया जाएगाॽ 1- ''जो व्यक्ति क़यामत के दिन पांचों समय की नमाज़ों के साथ इस हाल में आएगा कि उसने उनके वुज़ू, उनके समय, उनके रुकूअ और सज्दे की रक्षा की होगा, उनमें कुछ भी कमी नहीं की होगी, तो वह इस स्थिति में आएगा कि उसके लिए अल्लाह के पास यह वादा होगा वह उसे दंडित नहीं करेगा। और जो व्यक्ति इस हाल में आया कि उसने उनमें कुछ कमी की होगी, तो उसके लिए अल्लाह के पास कोई वादा नहीं होगा; यदि वह चाहे तो उस पर दया करे, और यदि वह चाहे तो उसे दंडित करे।'' (इसे तबरानी ने मोजमुल-औसत में आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायत किया है). 2- ''जिसने पाँच समय की नमाज़ें पढ़ीं, और उन्हें पूरा किया और उन्हें स्थापित किया, तथा उन्हें उनके निर्धारित समय पर पढ़ा, तो वह क़यामत के दिन इस हाल में आएगा कि उसके लिए अल्लाह पर एक वादा होगा कि वह उसे दंडित नहीं करेगा। और जिसने नमाज़े नहीं पढ़ी और उन्हें स्थापित नहीं किया, तो वह क़यामत के दिन इस हाल में आएगा कि उसके लिए अल्लाह पर कोई वादा नहीं होगा; यदि वह चाहे तो उसे क्षमा कर दे, और यदि वह चाहे तो उसे दंडित करे।'' (इसे सईद बिन मनसूर ने अपनी सुनन में उबादा बिन सामित रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है)। 3- ''अल्लाह महिमावान ने फरमायाः ''मेरे बंदे के लिए मुझपर एक वादा है, अगर वह समय पर नमाज़ स्थापित करे, कि मैं उसे दंडित नहीं करूंगा और यह कि मैं उसे बिना किसी हिसाब के स्वर्ग में दाखिल करूंगा।" (इसे हाकिम ने अपनी तारीख़ में आयशा रज़ियल्लाह अन्हा से रिवायत किया है)।अगर अल्लाह ने किसी को अपनी पुस्तक याद करने की तौफ़ीक़ प्रदान की है, तो क्या इसका मतलब यह है कि अल्लाह ने उसके साथ भलाई का इरादा किया हैॽ
अगर अल्लाह किसी को अपनी पुस्तक (क़ुरआन) को याद करने में सक्षम बनाता है, तो क्या इसका मतलब यह है कि वह अवश्य उसका भला चाहता है, चाहे उसकी स्थिति कुछ भी होॽनबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के कथन : “क़ुरआन पढ़ो क्योंकि वह अपने पढ़ने वालों के लिए सिफ़ारिशी बनकर आएगा” का क्या अभिप्राय हैॽ
अबू उमामह अल-बाहिली रज़ियल्लाहु अन्हु की हदीस में, जिसे इमाम मुस्लिम ने रिवायत किया है, अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया है : “क़ुरआन पढ़ो, क्योंकि वह क़ियामत के दिन अपने पढ़ने वालों के लिए सिफ़ारिशी बनकर आएगा। दो प्रकाशमान् सूरतें : सूरतुल बक़रह और सूरत आल इमरान पढ़ो...” इसमें “पढ़ो” का क्या अर्थ है - क्या इसका मतलब उसे कंठस्थ करना है या मात्र पाठ करना हैॽजिस व्यक्ति ने क़ुरआन का कुछ हिस्सा याद किया फिर उसे भूल गया उसे क्या करना चाहिए?
यदि कोई व्यक्ति क़ुरआन से जो कुछ याद किया था उसे भूल गया फिर उसने पश्चाताप किया, तो क्या उसकी तौबा के स्वीकार होने के लिए उसके लिए उस हिस्से को दोहराना ज़रूरी है जिसे वह भूल गया है? और यदि उसके लिए दोहराना ज़रूरी है तो वह उन आयतों को कैसे दोहराए जिन्हें उसने यहाँ और वहाँ से बेतरतीब ढंग से याद किया था, और अब उनके स्थानों को वह याद नहीं रखता ह?जहाँ तक उन सूरतों का संबंध है जिन्हें उसने पूरे का पूरा याद किया है उसके बारे में उसे कोई समस्या नहीं है। और क्या उसे तुरंत देाहराना ज़रूरी है या कि उसे दीर्घकालिक तौर पर अवकाश के समय में दोहराने में कोई आपत्ति की बात नहीं है?जिसने कोई ज्ञान सिखाया फिर उसपर अमल किया गया, तो उसे क़ियामत के दिन तक हर उस व्यक्ति के समान प्रतिफल मिलेगा जिसने उसे उसके माध्यम से सीखा और उसपर अमल किया है
अगर हम किसी व्यक्ति को अज़कार सिखाएँ, फिर वह उन्हें किसी और को सिखाए और वह व्यक्ति उन्हें किसी और को सिखाए, और इसी तरह सिलसिला चलता रहे, तो क्या हमें सवाब मिलेगाॽ मुझे पता है कि आदमी को सीधे (डाइरेक्ट) किसी व्यक्ति को शिक्षा देने का सवाब मिलता है, लेकिन उस सिलसिला (श्रृंखला) के बाकी लोगों के बारे में क्या है जिसने उस व्यक्ति से सीखा है जिसे उसने सिखाया हैॽदैनिक, साप्ताहिक और मासिक नेकियाँ क्या हैंॽ
उपासना के दैनिक, साप्ताहिक और मासिक कार्य क्या हैंॽअल्लाह के महीने मुहर्रम की प्रतिष्ठा
मुहर्रम के महीने की फज़ीलत क्या है?गर्भ की फज़ीलत
मैं इस्लाम में गर्भ धारण करने की फज़ीलत जानना चाहता हूँ और महिला को गर्भ की अवधि के दौरान किन इबादतों के करने की सलाह देनी चाहिए, और क्या गर्भवती महिला की नमाज़ का अज्र व सवाब गैर-गर्भवती महिला की नमाज़ से बढ़कर है ॽजो व्यक्ति कोई पेड़ लगाता है, उसका प्रतिफल उसकी मृत्यु के बाद भी जारी रहता है
क्या जो व्यक्ति खजूर के पेड़, फसलें, या अन्य पौधे लगाता है, वह अपने मरने के बाद प्रतिफल पाएगा और उसके उत्तराधिकारियों को इस खजूर के पेड़ से लाभ होगाॽक्या गैर-मुस्लिम अनाथों का भरण-पोषण करना जायज है?
क्या गैर-मुस्लिम अनाथों का भरण-पोषण किया जा सकता है, जिनकी माताएँ ईसाई, हिंदू, बौद्ध वग़ैरह हैंॽज़रूरत और अकाल के समय दान करना नफली उम्रा करने से बेहतर है
मैं ने कुछ धर्म प्रचारकों को यह कहते हुए सुना है कि : पैसे के लिए मजबूर मुसलमानों पर दान करना जैसे कि वे लोग जो अकाल से पीड़ित हैं, रमज़ान के महीने में उम्रा करने से बेहतर है। इस बारे में आपकी क्या राय है?रमज़ान में क़ुरआन को याद करना बेहतर है या उसे पढ़नाॽ
रमज़ान के महीने के दौरान क़ुरआन को याद करना बेहतर है या उसका पाठ करनाॽरमज़ान के महीने में क़ुरआन ख़त्म करना मुसतहब है
आप से अनुरोध है कि मुझे इस बात से सूचित करें कि क्या मुसलमान पर रमज़ान के महीने के दौरान क़ुरआन ख़त्म करना अनिवार्य है ? यदि इसका जवाब हाँ में है तो कृपया इस बात की पुष्टि करने वाली हदीस उल्लेख करें।फ़ज़ायले-आमाल (कर्मो के गुण) लोगों के अधिकारों का कफ्फारा (परायश्चित) नहीं बन सकते
मैं ने सुना है कि अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया है : ''जिस ने ईमान के साथ पुण्य की आशा रखते हुए रमज़ान का रोज़ा रखा तो उसके पिछले (छोटे-छोटे) गुनाह क्षमा कर दिए जाएंगे।'' क्या इस हदीस के अंतर्गत वे पाप भी आते हैं जिन्हें आदमी ने अपने मुसलमान भाइयों के हक़ में जान बूझकर किए हैं, और वह उन पर बहुत लज्जित है. किन्तु वह उनके सामने उस चीज़ को स्वीकार नहीं कर सकता जो उसने उनके साथ किए हैं क्योंकि इस से बहुत समस्याएं पैदा होंगीं ?वह ज़ुल-हिज्जा के प्रारंभिक दस दिनों की फज़ीलत के बारे में प्रश्न कर रहा है
क्या ज़ुल-हिज्जा के महीने के प्रारंभिक दस दिनों को उसके अलावा शेष दिनों पर फज़ीलत (विशेषता) प्राप्त है? और वे कोन से अच्छे कार्य हैं जिन्हें इन दस दिनों में अधिक से अघिक करना मुस्तहब (वांछनीय) है?उसने दूसरे की तरफ से हज्ज किया तो क्या उसे हज्ज की फज़ीलतें प्राप्त होंगी ?
यदि मनुष्य किसी दूसरे की तरफ से हज्ज करे, तो क्या उसे वह अज्र व सवाब प्राप्त होगा जिसका नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपने इस कथन में उल्लेख किया है: "जिस व्यक्ति ने हज्ज किया और (उसके दौरान) संभोग (और कामुक वार्तालाप) तथा गुनाह और नाफरमानी (पाप एंव अवज्ञा) नहीं किया तो वह उस दिन के समान निर्दोष हो जाता है जिस दिन कि उसकी माँ ने उसे जना था।" ?आज़माइशों (परीक्षणों) की हिकमत
मैं अक्सर सुनता हूँ कि लोगों पर आज़माइश के आने के पीछे बड़ी हिकमतें निहित होती हैं। तो वे हिकमतें क्या हैंॽ