मैं जुनूनी बाध्यकारी विकार (मनोग्रसित-बाध्यता विकार) से ग्रस्त थी और तंत्रिका संबंधी दवाएँ ले रही थी। इसलिए मैं रमज़ान का रोज़ा नहीं रख सकी और डॉक्टर ने मुझे रोज़ा तोड़ने की अनुमति दी। मैंने इस पहले रमज़ान की क़ज़ा नहीं की; क्योंकि मैं माध्यमिक प्रमाणपत्र परीक्षा दे रही थी, तथा मुझे नहीं पता था कि इसपर एक अलग शरई हुक्म निष्कर्षित होता है। दूसरा रमज़ान आया और मैंने उसका सामान्य रूप से रोज़ा रखा। उसके बाद मैंने पहले रमज़ान की क़ज़ा का इरादा किया। लेकिन मैं जब भी रोज़ा रखना चाहती थी, तो मेरा रक्तचाप बहुत कम हो जाता था और मुझे थकावट महसूस होती थी। मैं क़ज़ा नहीं कर सकी यहाँ तक कि तीसरा रमज़ान आ गया। उसमें मैंने पाँच दिन के रोज़े रखे, जिसके कारण मुझे बहुत कष्ट का सामना हुआ, मेरा रक्तचाप 80/30 या उससे कम हो जाता था। मैं अपने बिस्तर से नहीं उठ पाती थी। इन दिनों के रोज़े के कारण, मुझे एक महीने या उससे अधिक समय तक रक्तचाप में कमी (या अवसाद) का सामना रहा। मुझे डर है कि मैं आने वाले रमज़ान का (भी) रोज़ा नहीं रख पाऊँगी। मेरे पास गरीबों को खिलाने के लिए पैसे नहीं हैं, तथा मेरे पास इलाज के लिए डॉक्टर के पास जाने या इस समस्या के कारण का पता लगाने के लिए पैसे नहीं हैं। मेरी इस स्थिति पर निष्कर्षित होने वाला शरई हुक्म क्या हैॽ
उसने रमज़ान में रोज़ा तोड़ दिया और अब वह न क़ज़ा करने में और न खाना खिलाने में सक्षम है
प्रश्न: 219539
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
प्रमुख विद्वानों ने इस बात पर सहमति व्यक्त की है कि जिसने रमज़ान के कुछ दिनों का रोज़ा तोड़ दिया, उसके लिए अगले रमज़ान के आने से पहले उन दिनों की क़ज़ा करना अनिवार्य है। उन्होंने इस बात पर उस हदीस से दलील पकड़ी है, जिसे बुखारी (हदीस संख्याः 1849) और मुस्लिम (हदीस संख्याः 1146) ने आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायत किया है कि उन्होंने कहा : “मेरे ऊपर रमज़ान का रोज़ा होता था, जिसे मैं केवल शाबान ही में क़ज़ा पर पाती थी। यह अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सेवा में व्यस्त होने के कारण होता था।”
हाफिज़ इब्ने हजर रहिमहुल्लाह फरमाते हैं :
“उनके शाबान के महीने में रोज़े की क़ज़ा करने की उत्सुकता से यह पता चलता है कि (छूटे हुए रोज़ों की) क़ज़ा को दूसरा रमज़ान प्रवेश करने तक विलंब करना जायज़ नहीं है।”
"फत्हुल बारी" (4/191) से उद्धरण समाप्त हुआ।
अगर उसने अगले रमज़ान के शुरू होने तक रोज़े की क़ज़ा करने में देरी की है, तो यह देरी या तो किसी उज़्र (बहाने) की वजह से होगी या बिना किसी उज़्र के होगी। जिस व्यक्ति ने किसी उज़्र की वजह से देरी की है, उसपर कोई पाप नहीं है और उसे छूटे हुए रोज़ों की क़ज़ा करने के अलावा और कुछ नहीं करना है। परंतु जिस व्यक्ति ने बिना किसी उज़्र के देरी की है, तो उसने इसमें देरी करके पाप किया है, और उसपर निश्चित रूप से क़ज़ा करना अनिवार्य है। लेकिन क्या उसके लिए छूटे हुए रोज़ों की क़ज़ा के साथ-साथ गरीबों को खाना खिसाना भी अनिवार्य है या नहींॽ इसके विषय में विद्वानों के बीच मतभेद है, लेकिन प्रबल मत यह है कि उसके लिए गरीबों को खाना खिलाना अनिवार्य नहीं है। प्रश्न संख्या : (26865) में इसका उल्लेख किया जा चुका है।
इसके आधार पर, आपके लिए उन दिनों की क़ज़ा करना अनिवार्य है, जिनके आपने पिछले वर्षों में रमज़ान में रोज़े नहीं रखे थे, यह उस स्थिति है जब आप रोज़ा रखने में सक्षम हैं। यदि आपके लिए गर्मियों में रोज़ा रखना संभव नहीं है, लेकिन सर्दियों में यह संभव है, तो आप सर्दियों में उन दिनों के रोज़े रखेंगी जो आपपर बाक़ी हैं।
यदि आप बीमारी के कारण रोज़ा रखने में असमर्थ है, और यह बीमारी आपके साथ इस तरह जारी रहती है कि – एक विश्वसनीय डॉक्टर के अनुसार – आपके लिए भविष्य में रोज़ा रखना संभव नहीं है, तो ऐसी स्थिति में आपके लिए रोज़ा रखना अनिवार्य नहीं है। लेकिन आपको हर उस दिन के बदले में एक गरीब व्यक्ति को खाना खिलाना होगा जिसका आपने रोज़ा तोड़ दिया था। अगर आपके पास पैसे नहीं हैं, तो आपकी ओर से फिद्या देना (गरीबों को खाना खिलाना) समाप्त हो जाएगा, और आपको कुछ भी करने की ज़रूरत नहीं है। क्योंकि सर्वशक्तिमान अल्लाह किसी प्राणी पर उसकी क्षमता से अधिक बोझ नहीं डालता है।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।
स्रोत:
साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर