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क्या दस्त आने के कारण रोज़ेदार के लिए रोज़ा तोड़ना जायज़ है?

प्रश्न: 221232

सुबह मुझे दस्त आने लगा और वह बंद नहीं हुआ। उसके बाद मुझे दर्द और पीड़ा का एहसास हुआ। मैं ने अपने शरीर का बहुत सारा पानी खो दिया और मुझे थकान और थकावट महसूस हुई। तो क्या मैं रोज़ा जारी रखूँ?

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

अल्लाह तआला ने उस बीमार व्यक्ति को जिसके ऊपर रोज़ा रखना कठिन है, रोज़ा तोड़ने की रूख्सत प्रदान की है और उसने जिन दिनों का रोज़ा तोड़ दिया है उनकी (बाद में) क़ज़ा करेगा। अल्लाह तआला ने फरमाया :

وَمَنْ كَانَ مَرِيضاً أَوْ عَلَى سَفَرٍ فَعِدَّةٌ مِنْ أَيَّامٍ أُخَرَ يُرِيدُ اللَّهُ بِكُمُ الْيُسْرَ وَلا يُرِيدُ بِكُمُ الْعُسْرَ [البقرة:185].

''और जो बीमार हो या यात्रा पर हो तो वह दूसरे दिनों में उसकी गिन्ती पूरी करे। अल्लाह तुम्हारे साथ आसानी चाहता है, तुम्हारे साथ सख्ती नहीं चाहता है।'' (सूरतुल बकरा : 185).

वह बीमारी जिसके कारण रोज़ेदार के लिए रोज़ा तोड़ने की अनुमति है, वह बीमारी है जिसके साथ रोज़ा रखना कठिन होता है, या बीमारी बढ़ जाती है या रोज़े के कारण उसका स्वस्थ होना विलंब हो जाता है। तथा अधिक लाभ के लिए फत्वा संख्या (12488) देखें।

शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह ने फरमाया :

‘‘बीमार की कई स्थितियाँ हैं :

प्रथम : वह रोज़े की वजह से प्रभावित न हो, जैसे थोड़ा ज़ुकाम, या मामूली सिर दर्द, या दाँत का दर्द, और इसके समान चीज़ें, तो इसके लिए रोज़ा तोड़ना जायज़ नहीं है …

दूसरी स्थिति : उसके ऊपर रोज़ा रखना कठिन हो लेकिन उसे नुक़सान न पहुँचाता हो। तो उसके लिए रोज़ा रखना मकरूह (अनेच्छिक) है, और उसके लिए रोज़ा तोड़ देना सुन्नत है।

तीसरी स्थिति : जब उसके ऊपर रोज़ा रखना कठिन हो और उसे नुकसान पहुँचाता हो, जैसे कि कोई अदमी गुर्दे की बीमारी या शुगर की बीमारी (मधुमेह), या इसी के समान अन्य बीमारी से पीड़ित हो, तो उसके ऊपर रोज़ा रखना हराम है।'' अंत हुआ। ''अश-शर्हुल मुम्ते'' (6/341).

इस आधार पर, यदि दस्त हल्की है इस प्रकार कि वह रोज़े को प्रभावित नहीं करतीऔर वह अधिक थकावट या कष्ट का कारण नहीं बनती है, तो रोज़ेदार के लिए रोज़ा तोड़ना जायज़ नहीं है, उसके ऊपर अनिवार्य है कि वह अपना रोज़ा मुकम्मल करे।

लेकिन अगर दस्त इतनी सख्त है कि रोज़ेदार को थकान और थकावट व परेशानी का एहसास होता है तो उसके लिए रोज़ा तोड़ना निश्चित हो जाता है। क्योंकि दस्त से पीड़ित व्यक्ति को इस बात की ज़रूरत होती है कि वह अपने शरीर को उस पानी और नमक की आपूर्ति करे जो उसने खो दिया है, अगर वह ऐसा न करे तो वास्तव में वह अपने आपको गंभीर थकान व परेशानी से पीड़ित कर रहा है।

यदि अगर दस्त इससे भी अधिक सख्त और गंभीर है कि यदि बीमार व्यक्ति इस दस्त को रोकने के लिए और शरीर को खोए हुए पानी और नमक की आपूर्ति करने के लिए दवाएँ नहीं लेता है तो उसके ऊपर नुक़सान पहुँचने की आशंका है, तो इस स्थिति में रोज़ा तोड़ना अनिवार्य हो जाता है और रोज़ा रखना हराम हो जाता है।

फिर उसके ऊपर अनिवार्य है कि रमज़ान के बाद इस दिन की जगह एक दिन की क़ज़ा करे।

उत्तर का सारांश यह है कि : जब दस्त थकावट और परेशानी की हद तक पहुँच गई है तो आप के लिए रोज़ा तोड़ना मुस्तहब है और इस कष्ट के साथ आपके लिए रोज़ा मुकम्मल करना अनेच्छिक है, और इस दिन की जगह आप एक दिन क़ज़ा करेंगे।

हम अल्लाह तआला से आपके लिए स्वास्थ्य का प्रश्न करते हैं।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

स्रोत

साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर

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