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रमज़ान के प्रतिष्ठित महीने के लिए विशिष्ट ज़िक्र व अज़कार वर्णित नहीं हैं

प्रश्न: 221247

मैंने देखा है कि हमारे क्षेत्र के इमाम साहब प्रत्येक नमाज़ के बाद तीन बार ज़िक्र के यह वाक्य दोहराते हैं : ''अश्हदो अन् ला इलाहा इल्लल्लाहु, अस्तग़फिरुल्लाह, नस्अलुकल् जन्नता व नऊज़ो बिका मिनन् नार'' (अर्थात : मैं गवाही देता हूँ कि अल्लाह के सिवा कोई सत्य पूज्य नहीं है, मैं अल्लाह से माफी माँगता हूँ, हम तुझ से जन्नत (स्वर्ग) का सवाल करते हैं और जहन्नम (नरक) से पनाह माँगते हैं।) क्या यह सुन्नत से साबित है, क्या हम इसे दोहरा सकते हैं, तथा अन्य दुआएँ क्या हैं? मैं इन्हें जानना चाहता हूँ ताकि मैं उन्हें अभी से दोहराता रहूँ।

उत्तर का पाठ

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सुन्नत में रमज़ान के मुबारक महीने से संबंधित विशेष अज़कार या दुआएँ वर्णित नहीं हैं, सिवाय इसके जो आयशा रजियल्लाहु अन्हा से रमज़ान के अंतिम दहे में लैलतुल-क़द्र (सम्मान वाली रात) को तलाश करने के बारे में वर्णित हुआ है, वह कहती हैं : मैंने कहा : ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम! आपकी क्या राय है यदि मुझे पता चल जाए कि शबे-क़द्र कौन सी रात है तो मैं उसमें क्या पढ़ूँ? आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : (तुम पढ़ो : “अल्लाहुम्मा इन्नका अ़फुव्वुन तुहिब्बुल अ़फ्वा फाअफु अ़न्नी” (ऐ अल्लाह! निःसंदेह तू ही क्षमा करने वाला है, और तू क्षमा को पसंद करता है, अतः मुझे क्षमा (माफ़) कर दे।) इस हदीस की रिवायत तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 3513) ने की है और कहा है कि यह हदीस “हसन सहीह” है, तथा हदीस संख्या : (36832 ) भी देखें।

तथा इसके इलावा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सुन्नत में इस प्रतिष्ठित महीने से संबंधित निश्चित संख्या और निर्धारित अज्र व सवाब के साथ विशिष्ट अज़कार वर्णित नहीं हैं। मुसलमान के लिए मुस्तहब (ऐच्छिक) यह है कि वह हर समय अल्लाह का ज़िक्र करते रहे, जैसा कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम किया करते थे। तथा ज़िक्र और दुआ दोनों एक साथ करे ताकि इस महीने के दिनों और रातों से लाभान्वित हो, विशेषकर उन औक़ात में जिनमें दुआएँ स्वीकार होती हैं जैसे सेहरी के समय और जुमा के दिन नमाज़े अस्र के बाद इत्यादि। चुनाँचे सच्चाई व ईमानदारी के साथ अल्लाह से जन्नत का सवाल करेऔर जहन्नम से पनाह मांगने।

इमाम शातिबी रहिमहुल्लाह कहते हैं :

“बिद्अ़तः धर्म में अविष्कार कर लिए गए ऐसे तरीक़े को कहते हैं जो शरीअत के सदृश हो, जिस पर चलने का उद्देश्य अल्लाह सुब्हानहु व तआला की इबादत में अतिश्योक्ति करना हो… उन्हीं (बिद्अ़तों) में से विशिष्ट कैफियतों (तरीक़ों) और स्वरूपों की पाबंदी करना है, जैसे एक ही आवाज़ के साथ एकत्र होकरज़िक्र करना तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के जन्म दिन को ईद व खुशी का दिन बनाना, और इस जैसी चीज़ें। तथा उन्हीं में से एक विशिष्ट समय में विशिष्ट इबादतों की प्रतिबद्धता करना है जिसको शरीअत में विशिष्ट नहीं किया गया है।”

“अल-ऐतिसाम” (1/37-39) से समाप्त हुआ।

इस अवसर पर आपको इस बात से भी सावधान करना चाहेंगे कि बहुत से बलाग्स और सोशल नेटवर्किंग साइट्स और फोरम पर रमज़ान के महीने के प्रत्येक दिन के बारे में जो विशिष्ट दुआएँ तथा अज़कार प्रकाशित किए जाते हैं; वे सब के सब लोगों द्वारा अविष्कारित और गढ़े हुए हैं, जबकि यह सब की सब चयनित चीज़ें हैं जिन्हें कुछ लोगों ने पोस्ट कर दिया है, फिर उसे बहुत से लोगों ने इस प्रतिष्ठत महीने से संबंधित शरई इबादत समझ लिया है।

तथ्य यह है कि यह सुन्नत से साबित नहीं है और न ही इबादत के विषय में हदीस में वर्णित तरीक़े में से है।

इसलिए मुसलमानों को सुबह और शाम, नमाज़ों के बाद तथा अन्य धार्मिक अवसरों पर पढ़े जाने वाले अज़कार को पढ़ने का इच्छुक होना चाहिए, तथा क़ुरआन करीम की तिलावत, उसका अध्ययन और उसके अर्थों में मनन चिंतन करने में परिश्रम करना चाहिए। इस पर अल्लाह के हुक्म से उसे वह प्रतिफल मिलेगा जिसे वह चाहता है तथा वह सवाब हासिल होगा जिसे वह खोज रहा है।

और अल्लाह ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

स्रोत

साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर

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