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क्या वह रोज़े की हालत में अपनी सहेली का चुंबन कर सकती है?

प्रश्न: 221453

मैं एक लड़की हूँ और मैं यह पूछना चाहती हूँ कि क्या रमज़ान के दिन में सहेली के गाल में चुंबन करना हराम (निषिद्ध) है?

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

उत्तर:

हर प्रकार की प्रशंसा
और गुणगान केवल
अल्लाह के लिए
योग्य है।

लड़की के लिए रोज़े
की अवस्था में
अपनी सहेली के
गाल में चुंबन
करने में कोई आपत्ति
की बात नहीं है,
जबकि
इस चुंबन का मक़सद
महब्बत और स्नेह
का प्रदर्शन करना
है, उसका उद्देश्य
वासना नहीं है।

शैख इब्ने उसैमीन
रहिमहुल्लाह ने
फरमाया
:

”रोज़ेदार के लिए
चुंबन के तीन प्रकार
हैं :

प्रथम :

उसके साथ क़तई तौर
पर वासना न सम्मिलिति
हो, उदाहरण के
तौर पर इन्सान
का अपने छोटे बच्चों
को चुंबन करना,
या यात्रा
से आने वाले को
चुंबन करना, या इसके
समान चीज़ें, तो यह
प्रभावित नहीं
करेगा और रोज़े
के एतिबार से उसका
कोई हुक्म नहीं
है।

दूसरा :

वह वासना को भड़काता
हो, [जैसे
कि आदमी अपनी बीवी
को चुंबन करे], लेकिन वह इस
बात से निश्चिंत
हो कि वीर्य पतन
[अर्थात
वीर्य के उत्सर्जन] के द्वारा
उसका रोज़ा भ्रष्ट
नहीं होगा, तो इमाम
अहमद बिन हंबल
का मत यह है कि उसके
हक़ में चुंबन करना
मकरूह (अनेच्छिक)
है।

तीसरा :

उसे वीर्य के उत्सर्जन
से रोज़े के खराब
होने का डर हो।तो यह चुंबन हराम
है यदि उसे वीर्य
पतन का गुमान है,
इस तौर
पर कि वह युवा हो,
उसकी
वासना शक्तिशाली
हो, अपनी पत्नी
से सख्त प्यार
करनेवाला हो,
तो इस
में कोई संदेह
नहीं कि यदि ऐसा
व्यक्ति इस हालत
में अपनी पत्नी
को चुंबन करेगा
तो उसे खतरा है।
तो इस तरह के आदमी
के बारे में कहा
जायेगा कि : उसके
ऊपर चुंबन करना
हराम है ; क्योंकि
वह अपने रोज़े
को खराब होने के
लिए प्रस्तुत कर
रहा है।

जहाँ तक प्रथम
प्रकार की बात
है तो उसके जायज़
होने में कोई संदेह
नहीं है ;
क्योंकि
मूल सिद्धांत हलाल
होना है यहाँ तक
कि उसके निषिद्ध
होने की दलील साबित
हो जाए। जहाँ तक
तीसरे प्रकार की
बात है तो उसके
हराम होने में
कोई संदेह नहीं
है।

जहाँ तक दूसरे
प्रकार की बात
है और वह यह कि चुंबन
करने पर उसकी वासना
भड़क उठेगी, किंतु
उसे अपने ऊपर भय
नहीं है, तो सही
यह है कि उसके लिए
चुंबन करना मकरूह
(अनेच्छिक) नहीं
है और यह कि उसमें
कोई हरज
(आपत्ति) की बात
नहीं है क्योंकि
‘‘नबी सल्लल्लाहु
अलैहि व सल्लम
रोज़े की हालत में
चुंबन करते थे।’’
इसे
बुखारी (हदीस
संख्याः 1927) और मुस्लिम
(हदीस संख्याः
1106) ने रिवायत किया
है।

अतः सही यह है कि
रोज़ेदार के हक़
में चुंबन के केवल
दो प्रकार
(क़िस्म) हैं : एक
क़िस्म जायज़ है,
औद दूसरी
क़िस्म हराम है,
हराम
क़िस्म यह है कि
जब उसे अपने रोज़े
के ख़राब होने
का भय हो, और जायज़
होने के दो रूप
हैं :

पहला रूप :चुंबन उसकी
वासना को बिलकुल
न भड़काता हो।

दूसरा रूप : चुंबन
उसकी वासना को
भड़काता हो,
लेकिन
उसे अपने ऊपर रोज़े
के खराब होने का
डर न हो।

जहाँ तक चुंबन
के अलावा संभोग
के अन्य कारणों
जैसे आलिंगन आदि
की बात है तो उसका
हुक्म चुंबन का
ही हुक्म है, कोई
फर्क़ नहीं है।”

‘‘अश-शर्हुल
मुम्ते’’
( 6/426,429) से संक्षेप के
साथ अंत हुआ।

और अल्लाह तआला
ही सबसे अधिक ज्ञान
रखता है।

स्रोत

साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर

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