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मस्जिद में ठहरना पुण्य और प्रतिष्ठा का कार्य है, भले ही वह एतिकाफ़ न हो

प्रश्न: 221766

क्या यह सही है जिसका यह मानना है कि एतिकाफ़ केवल तीन मस्जिदों के लिए विशिष्ट है, और वह लैलतुल क़द्र को तलाश करना चाहता है, और उसकी कुछ मांगें हैं, वह गुमान करता है कि अंतिम दस रातों में मस्जिद में रात के समय ठहरना सर्वोच्च, सर्वशक्तिमान, बेनियाज़ अल्लाह से अपने उद्देश्य को प्राप्त करने का एक अवसर है। यह ज्ञात रहे कि वह नीच, अन्यायपूर्ण, बेरोज़गार और निर्धन है, वह यह आशा करता है कि यदि सच्ची दुआ प्रतिष्ठित समय और प्रतिष्ठित स्थान के अनुकूल हो गयी तो उसका  जीवन पूरी तरह से बदल जाएगाॽ

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

सर्व प्रथम :

जिस व्यक्ति की यह स्थिति है कि वह अत्याचारी और बेरोज़गार है उसके लिए उचित यह है कि वह सबसे पहले अल्लाह के समक्ष पश्चाताप करे, औऱ अपनी हालत को अन्याय और अवज्ञा से बदलकर, न्याय और आज्ञाकारिता को अपनाए।

दूसरा :

पहले से ही फत्वा संख्या : (81134) और (49006) में यह उल्लेख किया जा चुका है कि सभी मस्जिदों में एतिकाफ़ करना सही है, और यह केवल तीन ही मस्जिदों में सीमित नहीं है।

तीसरा:

रहा उस सवाल का जवाब जो आप ने पूछा है, तो जो आदमी उन लोगों की तक़्लीद (नकल) करनेवाला है जो केवल तीन मस्जिदों में एतिकाफ को सही कहते हैं, तो उसके लिए अंतिम दहे की रातों में मस्जिद में रहने में कोई हानि की बात नहीं है। क्योंकि यद्वपी यह – उसकी मान्यता के अनुसार – एतिकाफ नहीं है, परंतु उसका नमाज़, ज़िक्र, क़ुरआन के पाठ और नमाज़ की प्रतीक्षा के लिए मस्जिद में बैठना स्वयं अपने आप में एक पुण्य है। पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : ''जब वह नमाज़ पढ़ता है [अर्थात मस्जिद में] तो स्वर्गदूत निरंतर उस पर दया के लिए प्रार्थना करते रहते हैं जब तक वह अपनी नमाज़ की जगह में रहता है (वे कहते हैं): हे अल्लाह, उसे आशीर्वाद दे। ऐ अल्लाह, उसपर दया कर। और तुम में से कोई व्यक्ति जबतक नमाज़ का इंतज़ार कर रहा होता है वह निरंतर नमाज़ में होता है।'' इसे बुखारी (हदीस संख्याः 648) ने रिवायत किया है और ये शब्द उन्हीं के हैं, तथा मुस्लिम (हदीस संख्याः 649).

तथा बैहक़ी ने ''शोअबुल ईमान'' (हदीस संख्याः 2943) में अम्र बिन मैमून अल-औदी से रिवायत किया है कि उन्हों ने कहाः "हमें अल्लाह के पैबंगर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथियों ने सूचना दी है कि : (मस्जिदें धरती पर अल्लाह के घर हैं, और अल्लाह पर यह हक़ है कि वह उसमें अपनी ज़ियारत करनेवाले का सम्मान करे।) इसे अल्बानी ने ''सिलसिलतुल अहादीस अस्सहीहा'' (हदीस संख्याः 1169) में सहीह कहा है।

इसके साथ ही उसे यह लाभ भी प्राप्त होगा कि वह अल्लाह की उपासना के लिए पूर्णकालिक रूप से फ़ारिग हो जाएगा और उसे व्यस्त करनेवाली सांसारिक चीजों को छोड़ देगा।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

स्रोत

साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर

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