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मैं आलस्य से कैसे छुटकारा पाऊँ और विश्वविद्यालय में उत्कृष्टता प्राप्त करूँॽ

प्रश्न: 223789

मैं एक युवा हूँ और विश्वविद्यालय में प्रवेश की शुरुआत में हूँ। लेकिन मैं आलसी, सुस्त और अव्यवस्थित हूँ और मुझे समय की परवाह नहीं रहती है। मैं अपने विभाग में पहला रैंक प्राप्त करना चाहता हूँ। इसका कारण यह है कि दूसरे वर्ष में एक विशेषज्ञता है जिसमें प्रत्येक विभाग में पहला रैंक प्राप्त करने वाले को स्वीकार किया जाता है और मैं, वास्तव में, इस विशेषज्ञता में शामिल होना चाहता हूँ। इसलिए मुझे आशा है कि आप कुछ उपाय (क़दम) बताएँगे जो इसे प्राप्त करने में मेरी मदद करेंगेॽ

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

मेरे सम्मानित भाई,

आलस्य मनुष्य को दुनिया और आख़िरत में सफलता और कामयाबी से रोकने वाली सबसे बड़ी बाधाओं में से एक है, तथा यह सबसे घातक बीमारियों में से एक है जो आत्मा को पीड़ित करती है, संकल्प को कमज़ोर करती है और लाभदायक कार्यों को करने लिए क़दम उठाने से रोकती है। इसीलिए नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उससे बहुत अधिक शरण माँगा करते थे।

आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा से वर्णित है कि : नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम कहा करते थे : “अल्लाहुम्मा इन्नी अऊज़ो बिका मिनल क-सलि वल हरम, वल-मासमि वल-मग़रम, व-फ़ित्नतिल क़ब्रि व-अज़ाबिल-क़ब्र, व-फ़ित्नतिन्नारि व-अज़ाबिन्नार, व-मिन शर्रे फ़ित्नतिल ग़िना, व-अऊज़ो बिका मिन फ़ित्नतिल फ़क़्र, व-अऊज़ो बिका मिन-फ़ित्नतिल मसीहिद्-दज्जाल…” (ऐ अल्लाह! मैं तेरी पनाह में आता हूँ आलस्य, बुढ़ापा, पाप और क़र्ज़ से। तथा क़ब्र के फित्ने और क़ब्र के अज़ाब से, तथा आग के फ़ित्ने और आग के अज़ाब से और मालदारी के फ़ित्ने की बुराई से। और मैं तेरी शरण में आता हूँ ग़रीबी के फ़ित्ने से। तथा मैं तेरी पनाह में आता हूँ मसीह दज्जाल के फ़ित्ने से…) इस हदीस को बुख़ारी (हदीस संख्या : 6368) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 589) ने रिवायत किया है।

अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्होंने कहा : अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अबू तलहा रज़ियल्लाहु अन्हु से कहा : “अपने यहाँ के लड़कों में से कोई लड़का तलाश कर लाओ जो मेरी सेवा किया करे। चुनाँचे अबू तलहा मुझे अपनी सवारी पर अपने पीछे बैठाकर लाए। तो मैं रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की, जब भी आप कहीँ पड़ाव करते, सेवा किया करता था। तो मैं आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को अक्सर यह दुआ पढ़ते हुए सुनता था : “अल्लाहुम्मा इन्नी अऊज़ो बिका मिनल हम्मि वल-ह-ज़नि, वल-अज्ज़ि वल क-सलि, वल-बुख़्लि वल-जुब्नि, व-ज़-ल-इद्दैनि, व-ग़ल्बतिर्रिजालि” (ऐ अल्लाह! मैं चिंता और दुःख, विवशता (बे-बसी), आलस्य, कंजूसी, कायरता, ऋण (क़र्ज़) के बोझ और लोगों के आधिपत्य से तेरी शरण लेता हूँ।” इसे बुखारी (हदीस संख्या : 5425) ने रिवायत किया है।

अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्होंने कहा : अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम जब शाम करते, तो यह दुआ पढ़ा करते थे :

“अम्सैना व अम्सल-मुल्कु लिल्लाह, वल-हम्दुलिल्लाह, ला इलाहा इल-लल्लाहु वह्दहू ला शरीका लहू, लहुल-मूल्कु व-लहुल-हम्द, व-हुवा अला कुल्लि शैइन क़दीर. रब्बि अस-अलुका ख़ैरा हाज़िहिल-लैलह, व-अऊजु बिका मिन शर्रि हाज़िहिल-लैलह, व-शर्रि मा बा’दहा। अल्लाहुम्मा इन्नी अऊज़ु बिका मिनल क-सलि व-सूइल-किबर, अल्लाहुम्मा इन्नी अऊज़ु बिका मिन अज़ाबिन फ़िन्नारि व-अज़ाबिन फ़िल-क़ब्र” (हमने शाम की और अल्लाह के राज्य ने शाम की और सारी प्रशंसा अल्लाह के लिए है। अल्लाह के सिवा कोई सच्चा पूज्य नहीं, वह अकेला है, उसका कोई साझी नहीं। उसी का राज्य है और सारी प्रशंसा उसी के लिए है और वह हर चीज़ पर सर्वशक्तिमान है। ऐ अल्लाह! मैं तुझसे इस रात की भलाई माँगता हूँ तथा मैं तेरी शरण चाहता हूँ इस रात की बुराई से और इसके बाद की बुराई से। ऐ अल्लाह! मैं तुझसे पनाह माँगता हूँ आलस्य (सुस्ती) और बुढ़ापे की बुराई से। ऐ अल्लाह! मैं जहन्नम के अज़ाब और क़ब्र की यातना से तेरी शरण लेता हूँ।) इसे मुस्लिम (हदीस संख्या : 2723) ने रिवायत किया है।

मेरे प्यारे भाई, हम आपको इस गंभीर बीमारी से बचने के लिए निम्न बातों का पालन करने की सलाह देते हैं :

प्रथम :

आपके लिए यह विश्वास रखना अनिवार्य है कि यह मामला सर्वथा अल्लाह सर्वशक्तिमान के हाथ में है। इसलिए आपको उसी का सहारा लेना चाहिए और अधिक से अधिक दुआ करना चाहिए और आग्रह के साथ दुआ करना चाहिए, विशेष रूप से दुआ की स्वीकृति के समयों में। और इन समयों को जानने के लिए प्रश्न संख्या : (22438 ) देखें।

दूसरी बात:

आपको अक्सर अपने आपको यह याद दिलाना चाहिए कि विश्वविद्यालय में अध्ययन की अवधि एक छोटी अवधि है जो शीघ्र ही समाप्त हो जाएगी और उसकी थकान और आराम तथा उदासी और खुशी सब चली जाएगी, तथा उसके परिणामों और उसमें कार्य करने के प्रभावों के अलावा कुछ भी शेष नहीं रहेगा। इसलिए आपको हमेशा अपने लिए मेहनती (व्यक्ति) के आनंद और उसकी आत्म-संतुष्टि की कल्पना करनी चाहिए जब वह वर्ष के अंत में अपनी गतिविधि के परिणामों के साथ अपने घर लौटता है, तथा आलसी व्यक्ति की उदासी और उसकी टूटे हुए दिल के साथ उदास अपने परिवार में वापसी की कल्पना करें।

परिणामों की कल्पना करना, गतिविधि और कार्य के लिए तथा सुस्ती और आलस्य छोड़ने के लिए सबसे बड़ी प्रेरणाओं में से है। और इसी हिकमत के कारण हम किताब और सुन्नत में देखते हैं कि जन्नत में सदाचारियों की स्थितियों और उनके घरों तथा जहन्नम में अवज्ञाकारियों की स्थितियों और घरों के बारे में बात करने वाले ग्रंथों (नुसूस) की बहुतायत है।

तीसरी :

आपको वर्तमान क्षण में नहीं डूबना चाहिए, अन्यथा आपकी आशा लंबे समय तक बढ़ जाएगी। इसलिए इस क्षण में अपनी स्थिति को न देखें और यह सोचें कि मामले में विस्तार है और आप कल, परसों, या परीक्षा के निकट अध्ययन कर लेंगे; क्योंकि यह लंबी आशा दुनिया और आख़िरत के कामों में आलस्य व शिथिलता और विलंब (टालमटोल) का कारण है।

इब्ने ह़जर रहिमहुल्लाह ने कहा :

“लंबी आशा से आज्ञाकारिता से आलस्य व शिथिलता तथा पश्चाताप में विलंब (टालमटोल) उत्पन्न होता है।”

“फ़त्ह़ुल-बारी” (11/237) से उद्धरण समाप्त हुआ।

इसलिए जब आपको अध्ययन करने का उपयुक्त समय मिले है, तो हमेशा यह सोचें कि हो सकता है कि यह समय दोबारा न मिले। क्योंकि आपपर ऐसे कामों और बाधाओं का हमला हो सकता है, जिनके साथ आप अध्ययन नहीं कर सकते। इसलिए आपको अध्ययन के लिए हर उपयुक्त अवसर का लाभ उठाना चाहिए।

चौथी :

आप उन लोगों के साथ ज़्यादा बैठने और उनकी संगत में रहने से बचें, जो बहुत अधिक हास्य और खेल करते हैं। बल्कि सदाचारी छात्रों में से संजीदा और परिश्रमी लोगों की संगत को लाज़िम पकड़ें। परिश्रम करने वाले लोगों की संगत में रहना आपको, अल्लाह सर्वशक्तिमान की इच्छा से, कई पहलुओं से लाभ पहुँचाएगा; जैसे कि आप उनके परिश्रम में उनकी समानता अपनाएँगे, तथा आप उनसे अध्ययन के तरीकों और उसमें उनके अनुभव का लाभ उठाएँगे,  इसी तरह आप उनके ज्ञान और उपलब्धि से भी लाभान्वित होंगे।

पाँचवी :

कभी-कभी आलस्य और सुस्ती कुछ बीमारियों और रोगों का संकेत होती है। इसलिए आप इसकी पुष्टि के लिए एक व्यापक चिकित्सा विश्लेषण कर सकते हैं।

छठी :

अपने शरीर को साफ-सुथरा रखें, और नियमित रूप से स्नान करते रहें और सुगंध (इत्र) का उपयोग करें। क्योंकि यह नफ़्स (आत्मा) को चुस्त एवं फ़ुर्तीला रखता है।

इब्नुल-क़ैयिम रहिमहुल्लाह ने कहा :

“चूँकि अच्छी महक आत्मा का पोषण है, और आत्मा शक्तियों की सवारी है, और शक्तियाँ सुगंध से बढ़ जाती हैं और वह मस्तिष्क, हृदय और सभी आंतरिक अंगों को लाभ देती है, हृदय को आनंदित करती है, नफ़्स को हर्षित करती है और आत्मा को प्रसन्न कर देती है। और वह आत्मा के लिए सबसे सच्ची (अच्छी) चीज़ है और वह उसके लिए सबसे उपयुक्त है, तथा उसके और अच्छी आत्मा के बीच घनिष्ठ संबंध है। इसलिए वह सबसे अच्छे व्यक्ति नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के निकट दुनिया की दो प्रियतम चीज़ों में से एक थी।

और “सहीह अल-बुख़ारी” में है कि : “आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम इत्र (सुगंध) को लौटाते नहीं थे।”

तथा “सहीह मुस्लिम” में आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से वर्णित है कि : “जिसको ‘रैह़ान’ (अर्थात सुगंध, हर सुगंधित पौधे को रैहान कहते हैं) प्रस्तुत किया जाए, तो वह उसे वापस न फेरे। क्योंकि उसकी महक अच्छी है और उसका भार हल्का (कम कृतज्ञता वाला) है …” ज़ादुल-मआद” (4/256) से उद्धरण समाप्त हुआ।

सातवीं बात :

नियमित रूप से व्यायाम करें। क्योंकि आलस्य को दूर करने में इसका लाभ, अल्लाह की इच्छा से, प्रमाणित और मुजर्रब (आज़माया हुआ) है।

आठवीं बात :

हम आपको सलाह देते हैं कि इस विषय का ख़ुलासा करने वाली पुस्तकों का अध्ययन करें, जिनमें खालिद अबू शादी द्वारा लिखित पुस्तक “अल-हर्ब अलल-क-सल” (आलस्य के खिलाफ युद्ध), मुहम्मद मूसा अश-शरीफ़ द्वारा लिखित “अज-ज़ुस-सिक़ात” (विश्वसनीय लोगों की विवशता) अद्-दुवैश द्वारा लिखित “अल-हौर बा’दल-कौर” (वृद्धि के बाद कमी) तथा नासिर अल-उमर की पुस्तक “अल-फ़ुतूर” (उदासीनता) शामिल हैं।

इसी तरह आप नियमित रूप से विद्वानों और सदाचारी लोगों की जीवनी पढ़ें, क्योंकि वह समय के मूल्य की याद दिलाएगी और उसमें आपको कठिन परिश्रम का अच्छा आदर्श मिलेगा। उसके उदाहरणों से अवगत होने के लिए अब्दुल फत्ताह अबू ग़ुद्दह रहिमहुल्लाह की पुस्तक “क़ीमतुज़्ज़मन इन्दल उ-लमा” (विद्वानों के निकट समय का मूल्य) पढ़ें।

अधिक लाभ के लिए, हम आपको प्रश्न संख्या :   (38594 ) पढ़ने की सलाह देते हैं।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

स्रोत

साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर

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