यदि मुसलमान पापी था, वह व्यभिचार, चोरी और जुवाबाज़ी करता था तो उसकी सज़ा क्या है ? यदि मान लिया जाये कि वह बाद में यह चाहे कि उसे उसके किए हुए हर पाप पर सज़ा दी जाये तो उसे क्या करना चाहिए ? क्या यह संभव है कि वह जाये और कहे कि मेरा हाथ काट दो, मेरे गुनाहों के कारण मेरा सिर काट दो ?
व्यभिचार और चोरी करने वाला कैसे तौबा करे ?
प्रश्न: 23485
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
सर्व प्रथम:
व्यभिचार (ज़िना) एक महा पाप है। अल्लाह सर्वशक्तिमान ने फरमाया:
وَلا تَقْرَبُوا الزِّنَى إِنَّهُ كَانَ فَاحِشَةً وَسَاءَ سَبِيلاً
الإسراء : 32
“और ज़िना (बदकारी) के निकट भी न जाओ, निःसन्देह यह बहुत ही घृणित काम और बुरा रास्ता है।” (सूरतुल इस्रा: 32)
तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया: “व्यभिचार करने वाला व्यभिचार करते समय मोमिन नहीं होता है, वह शराब पीते समय मोमिन नहीं रहता है, वह चोरी करते समय मोमिन नहीं होता है, तथा वह कोई चीज़ नहीं छीनता है जिसके बारे में लोग उसकी ओर अपनी निगाहें उठाते हैं, मगर उसके छीनते समय वह मोमिन नहीं होता है।’’इसे बुखारी (हदीस संख्या: 2474) और मुस्लिम (हदीस संख्या: 57) ने रिवायत किया है।
व्यभिचार बड़े गुनाहों में से है और उसके करने वाले को कष्टदायक सज़ा की धमकी दी गई है। महान हदीस -मेराज की हदीस- में आया है जिसमें यह वर्णित है:
“. . .फिर हम चल पड़े और तंदूर (भट्ठी) के समान स्थान के पास आये। रावी (हदीस के वर्णन करने वाले) कहते हैं कि मेरा ख्याल है कि आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) फरमाते थे किः उसके अंदर शोर और आवाज़ें थीं। आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया: तो हम ने उसमें झाँक कर देखा तो उसमें नंगे मर्दों और औरतों को पाया, और उन पर उनके नीचे से शोले आ रहे थे। जब वह शोले उनके ऊपर आते तो वे शोर मचाते थे। आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया: मैं ने उन दोनों से कहा: ये कौन लोग हैं ? . . . आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने कहा: उन दोनों ने मुझसे कहा: सुनो, हम आप को बताते हैं . . . जहाँ तक उन नंगे मर्दों और औरतों का संबंध है जो तंदूर की भांति स्थान में थे तो वे व्यभिचार करने वाले पुरूष और व्यभिचार करने वाली महिलाएं हैं।’’इसे बुखारी ने “अध्याय: व्यभिचार करने वालों का पाप, हदीस संख्या (7047) के अंतर्गत रिवायत किया है।
अल्लाह तआला ने व्यभिचार करने वालों को दुनिया में कई कठोर दंड दिये हैं, और उस कुकर्म पर हद्द को अनिवार्य कर दिया है। अल्लाह तआला ने अविवाहित (कुँवारे) व्यभिचारी के विषय में वर्णन करते हुए फरमाया:
الزَّانِيَةُ وَالزَّانِي فَاجْلِدُوا كُلَّ وَاحِدٍ مِنْهُمَا مِائَةَ جَلْدَةٍ وَلا تَأْخُذْكُمْ بِهِمَا رَأْفَةٌ فِي دِينِ اللَّهِ إِنْ كُنْتُمْ تُؤْمِنُونَ بِاللَّهِ وَالْيَوْمِ الْآخِرِ وَلْيَشْهَدْ عَذَابَهُمَا طَائِفَةٌ مِنَ الْمُؤْمِنِينَ
النور : 2
“ज़िना (व्यभिचार) करने वाली औरत और ज़िना (व्यभिचार) करने वाले मर्द इन दोनों में से हर एक को सौ (सौ) कोडे़ मारो और तुम्हें अल्लाह के धर्म के विषय में उन दोनों पर दया (तरस) नहीं खाना चाहिए यदि तुम अल्लाह और परलोक के दिन पर विश्वास रखते हो। तथा उन दोनों की सज़ा पर मोमिनों की एक जमाअत उपस्थित हो।” (सूरतुन्नूर: 2)
रहा वह व्यक्ति जिसका पहले विवाह हो चुका है तो उसका हद्द (धार्मिक दंड) क़त्ल निर्धारित किया है। चुनांचे उस हदीस में आया है जिसे इमाम मुस्ल्मि ने अपनी सहीह (हदीस संख्या: 3199) में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से रिवायत किया है कि आप ने फरमाया: “शादीशुदा का शादीशुदा के साथ (व्यभिचार की सज़ा) सौ कोड़े लगाना और संगसार करना (पत्थर मार-मार कर हत्या कर देना) है।’’
दूसरा:
इसी प्रकार चोरी भी बड़े गुनाहों में से है:
अल्लाह तआला ने फरमाया:
والسارق والسارقة فاقطعوا أيديهما جزاءً بما كسبا نكالاً من الله
المائدة : 38
‘‘और चोर, चाहे मर्द हो या औरत, तुम उनके करतूत की सज़ा में उनका (दाहिना) हाथ काट डालो ये (उनकी सज़ा) अल्लाह की तरफ़ से है और अल्लाह (तो) बड़ा ज़बरदस्त हिक्मत वाला है।” (सूरतुल माइदा: 38)
तथा इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा से वर्णित है कि अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने यौमुन्नह्र (10, ज़ुलहिज्जा) को भाषण देते हुए फरमाया: “ऐ लोगो, यह कौन सा दिन है ? लोगों ने उत्तर दिया: एक हराम (अर्थात् हुर्मत) वाला दिन है। आप ने फरमायाः यह कौन सा शहर है ? लोगों ने कहा: एक हराम (अर्थतात् हुर्मत व सम्मान वाला) नगर है। आप ने फरमाया: तो यह कौन सा महीना है ? लोगों ने कहा: एक हराम (हुर्मत व सम्मान वाला) महीना है। फिर आप ने फरमाया: तो तुम्हारे खून (जान), तुम्हारे धन (माल) और तुम्हारे सतीत्व (इज़्ज़त व आबरू) तुम्हारे ऊपर उसी तरह हराम हैं जिस तरह कि तुम्हारे इस महीने में तुम्हारे इसे नगर में तुम्हारे इस दिन की हुर्मत है।” – आपने इस बात को कई बार दोहराया- फिर आप ने अपना सिर उठाया और फरमाया: “ऐ अल्लाह, क्या मैं ने (दीन को) पहुँचा दिया ?ऐ अल्लाह, क्या मैं ने (इस्लाम के) संदेश को पहुँचा दिया ?” इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा कहते हैं: उस अस्तित्व की सौगंध जिसके हाथ में मेरी जान है यह आपकी अपनी उम्मत के प्रति वसीयत है। अतः, जो व्यक्ति उपस्थित है वह उस व्यक्ति को (इस्लाम का संदेश) पहुँचा दे जो उपस्थित नहीं है। इसे बुखारी (हदीस संख्या: 1652) ने रिवायत किया है।
चोरी का धार्मिक दंड (हद्द) दाहिने हाथ को काट देना है, जैसाकि क़ुरआन की आयत में इसका उल्लेख हो चुका है।
तीसरा:
हम सवाल करने वाले व्यक्ति को अपने गुनाहों पर तौबा व इस्तिग़फार (पश्चाताप और क्षमा याचना) करने की वसीयत करते हैं:
अल्लाह तआला का फरमान है:
وإني لغفار لِمَنْ تَابَ وَآمَنَ وَعَمِلَ صَالِحاً ثُمَّ اهْتَدَى
سورة طه : 82
‘‘और निःसंदेह मैं उस व्यक्ति को माफी प्रदान करने वाला हूँ जो तौबा कर ले, ईमान ले आये और नेक काम करे फिर हिदायत को अपनाये।” (सूरत ताहा: 82)
तथा अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्हों ने कहा : मैं ने अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को फरमाते हुए सुना : अल्लाह तआला ने फरमाया : ऐ आदम के बेटे, जब तक तू मुझे पुकारेगा और मुझसे उम्मीद (आशा) रखे गा, मैं तुझे माफ कर दूँगा जो कुछ भी तू ने किया होगा और मुझे कोई परवाह नहीं है। ऐ आदम के बेटे, यदि तेरे गुनाह आकाश की ऊँचाई तक पहुँच जायें फिर तू मुझसे माफी मांगे तो मैं तुझे माफ कर दूँगा और मुझे कोई परवाह नहीं है। ऐ आदम के बेटे, यदि तू मेरे पास धरती भर पाप लेकर आये फिर तू मुझसे इस हाल में मिले कि मेरे साथ किसी को साझी न ठहराता हो, तो मैं तुझे उसी के बराबर माफी प्रदान कर दूँगा।” इसे तिमिर्ज़ी (हदीस संख्या: 3540) ने रिवायत किया है और शैख अल्बानी ने सहीहुल जामि (हदीस संख्या: 4338) में हसन कहा है।
तथा अबू ज़र्र रज़ियल्लाहु अन्हु नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से रिवायत करते है जिसे आप ने अल्लाह सर्वशक्तिमान से रिवायत किया है कि उसने फरमया: . . . ऐ मेरे बन्दो, तुम रात दिन गलती करते हो और मैं सभी गुनाहों को क्षमा कर देता हूँ, अतः, तुम मुझसे क्षमा याचना करो मैं तुम्हें क्षमा कर दूँगा . . .” इसे मुस्लिम (हदीस संख्या: 2577) ने रिवायत किया है।
चौथा:
मनुष्य और उसके पालनहार के बीच का तौबा, उसके लिए का़ज़ी के पास अपने गुनाह को स्वीकार करने से बेहतर है ताकि उस पर हद क़ायम किया जाये। सहीह मुस्लिम (हदीस संख्या: 1695) में है कि जब “माइज़” रज़ियल्लाहु अन्हु ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आकर कहा कि “मुझे पवित्र कर दीजिए” तो आप ने फरमाया: तुम्हारा बुरा हो, वापस जाओ और अल्लाह से तौबा व इस्तिगफार करो।
हाफिज़ इब्ने हजर फरमाते हैं:
उनके मामले -अर्थात् माइज़ के मामले से जबकि उन्हों ने व्यभिचार का इक़रार किया- से यह बात निकलती है कि जो व्यक्ति उन्हीं के समान स्थिति वाला है, वह अल्लाह तआला से तौबा करे और अपने ऊपर पर्दा डाले रहे और किसी से उसका ज़िक्र न करे, जैसाकि अबू बक्र और उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा ने माइज़ को मश्वरा (सलाह) दिया था, और यह कि जो व्यक्ति उस से अवगत हो वह उसप पर पर्दा डाले रहे, उसे अपमानित न करे, और न ही उसके मामले को इमाम (हाकिम) के पास लेकर जाये, जैसाकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इस क़िस्से में फरमाया: “यदि तू ने उसे अपने कपड़े से छिपा दिया होता तो तेरे लिए बेहतर था।’’इसी बात को इमाम शाफेई ने सुदृढ़ रूप से वर्णन किया है, उन्हों ने कहा : मैं उस व्यक्ति के लिए जिसने कोई पाप किया और अल्लाह ने उसके ऊपर पर्दा डाल दिया, यह पसंद करता हूँ कि वह उसे अपने ऊपर पर्दा डाल कर रखे और तौबा कर ले। उन्हों ने अबू बक्र व उमर के साथ “माइज़” के क़िस्से से दलील पकड़ी है।
“फत्हुल बारी” (12 /124, 125)
स्रोत:
साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर