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कब्रों पर मस्जिदें निर्माण करने का हुक्म

प्रश्न: 26312

कुछ लोग कहते हैं कि कब्रों पर मस्जिदों का निर्माण करने में कोई हानि और आपत्ति की बात नहीं है, इस के लिए वे लोग अल्लाह तआला के इस कथन को दलील बनाते हैं :

 قَالَ الَّذِينَ غَلَبُوا عَلَى أَمْرِهِمْ لَنَتَّخِذَنَّ عَلَيْهِمْ مَسْجِدًا 

''प्रभावशाली लोगों ने कहा कि हम उन पर मस्जिद अवश्य बनाएंगे।'' (सूरतुल कहफः 21), तो क्या उनका यह कहना सही है? और इसका उत्तर कैसे दिया जाऐ गा?

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

नबियों और सदाचारी लोगों की क़ब्रों और उन के (जीवन से संबंधित) अवशेषों (समृतियों) पर मस्जिदें बनाना, उन तथ्यों में से है जिनसे इस्लामी शरीअत ने निषेध किया है, उस पर चेतावनी दी है और ऐसा करने वाले पर धिक्कार किया है, क्योंकि यह र्श्कि (अनेकेश्वरवाद) और पैगंबरों और सदाचारियों के बारे में अतिश्योक्ति के साधनों में से है। और वस्तुस्थिति शरीअत के लाए हुए इस प्रावधान की प्रामाणिकता की साक्षी है, तथा इस बात का प्रमाण है कि वह अल्लाह सर्वशक्तिमान की ओर से है, और इसी प्रकार इस तथ्य पर उज्जवल प्रमाण और क़तई हुज्जत है कि अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम, अल्लाह की ओर से जो कुछ लेकर आए हैं और जिसे उम्मत को पहुँचाया है, उसमें आप सच्चे हैं।

जो भी आदमी मुस्लिम देशों की स्थितियों, तथा क़ब्रों (समाधियों) पर मस्जिदें बनाने, उनका सम्मान करने, उन पर दरी-क़ालीन बिछाने, उन्हें सजाने और श्रृंगार करने, उनके लिए संरक्षक (मुजावर) नियुक्त करने के कारण होने वाले शिर्क और गुलू (अतिक्रम) में मननचिंतन करेगा, उसे निश्चित रूप से पता चल जायेगा कि यह शिर्क के साधानों में से है, और इस्लामी शरीअत की खूबियों और अच्छाइयों में से उससे रोकना और उसके निर्माण पर चेतावनी देनक और सतर्क करना है।

इस विषय में वर्णित प्रमाणों में से बुखारी (हदीस संख्या : 1330) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 529) से वर्णित आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा की हदीस है कि उन्हों ने कहा : अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया कि : “अल्लाह तआला यहूदियों और ईसाइयों पर धिककार (शाप) करे कि उन्होंने अपने नबियों की क़ब्रों को मस्जिदें बना डालीं।’’ आयशा रज़िअल्लाहु अन्हा कहती हैं कि : आप उन के कर्म से अपनी उम्मत को सचेत कर रहे थे। वह कहती हैं कि : यदि यही डर आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के क़ब्र के साथ न होता, तो आप की कब्र को प्रत्यक्ष रखा जाता, परंतु आपको भय था कि कहीं उसे मस्जिद न बना लिया जाए।’’

इसी प्रकार सहीहैन में आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा से साबित है कि उम्मे सलमा और उम्मे हबीबा ने अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से एक गिर्जाघर (चर्च) और उसमें मौजूद तस्वीरों का चर्चा किया जिसे उन दोनों ने हबश के देश में देखा था, तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : ‘‘वे लोग ऐसे थे कि जब उनमें कोई नेक आदमी मर जाता था तो वे उसकी क़ब्र पर एक मस्जिद बना लेते और उसके अंदर वे छवियाँ (तस्वीरें) बना लेते, वे लोग अल्लाह के निकट सबसे बुरे मनुष्य हैं।’’ इसे बुखारी (हदीस संख्या : 427) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 528) ने रिवायत किया है।

और सहीह मुस्लिम (हदीस संख्या : 532) में जुनदुब बिन अब्दुल्लाह रज़ि अल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्हों ने फरमाया : मैं ने रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को आप की मृत्यु से पांच दिन पहले फरमाते हुए सुना :

‘‘मैं अल्लाह के सामने इस बात से बेज़ारी प्रकट करता हूँ कि तुम में से कोई मेरा खलील (मित्र) है, क्योंकि अल्लाह तआला ने मुझे अपना खलील बनाया है जिस प्रकार कि इब्राहीम अलैहिस्सलाम को अपना खलील बनाया था, और यदि मैं अपनी उम्मत में से किसी को खलील बनाता तो अबू-बक्र रज़ियल्लाहु अन्हु को अपना खलील बनाता, सुनो! तुम से पहले जो लोग थे वे अपने नबियों और सालिहीन (सदाचारियों) की क़ब्रों को सज्दागाह (पूजा स्थल) बना लिया करते थे, अतः सावधान! तुम क़ब्रों को सज्दागाह (पूजा स्थल) न बनाना ; मैं तुम्हें इससे रोकता हूँ।''

इस अध्याय में और बहुत सारी हदीसें हैं, तथा चारों मतों के इमामों और उनके अलावा मुसलमान विद्वानों ने क़ब्रों पर मस्जिदें बनाने के निषेद्ध को स्पष्ट रूप से वर्णन किया है और उस पर चेतावनी दी है। ऐसा उन्हों ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सुन्नत का अनुसरण करते हुए, उम्मत की खैरख्वाही (शुभचिंतन) करते हुए तथा उसे उस चीज़ में पड़ने से सतर्क करते हुए जिसमें उससे पहले अतिवादी यहूदी और ईसाई और उनके समान इस उम्मत के पथभ्रष्ठ लोग पड़ चुके हैं।

कुछ लोगों ने इस अध्याय में असहाबुल-कहफ (गुफा वालों) की कहानी के बारे में अल्लाह तआला के कथनः

  قَالَ الَّذِينَ غَلَبُوا عَلَى أَمْرِهِمْ لَنَتَّخِذَنَّ عَلَيْهِمْ مَسْجِدًا  [الكهف: 21]

''प्रभावशाली लोगों ने कहा कि हम उन पर मस्जिद अवश्य बनाएंगे।'' (सूरतुल कहफः 21)

से दलील पकड़ी है।

तो इसके उत्तर में यह कहा जाए गा कि:

अल्लाह सुबहानहु व तआला ने उस युग के सरदारों और सत्ताधारी लोगों के बारे में सूचना दी है कि उन्हों ने यह बात कही थी। यह उनसे सहमति व प्रसन्नता या उनकी बात को प्रमाणित करने के तौर पर नहीं है। बल्कि उन की निन्दा और बुराई करने और उनके कृत्य से घृणा दिलाने के तौर पर है। इस की दलील यह है कि पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम, जिन पर यह आयत अवतरित हुई, और जो इस आयत की व्याख्या को सब से अधिक जानने वाले थे, अपनी उम्मत को क़ब्रों पर मस्जिदों का निर्माण करने से रोका है, और उन्हें इस काम से सचेत किया है, तथा ऐसा कार्य करने वाले की निन्दा की है और उसपर शाप किया है।

यदि यह जायज़ होता, तो अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम इस बारे में इतना सख्त रवैया न अपनाते और कड़े शब्दों में उसकी निंदा न करते यहाँ तक कि आप ने उसके करने वाले पर धिक्कार किया है और यह सूचना दी है कि वह अल्लाह के निकट सबसे बुरे लोगों में से है। इसके अंदर सत्य के खोजी के लिए पर्याप्ति और संतुष्टि है।

यदि मान लिया जाए कि हम से पहले लोगों के लिए क़ब्रों पर मस्जिदें बनाना जायज़ था, तब भी हमारे लिए इस बारे में उनका अनुसरण करना जायज नहीं है ; क्योंकि हमारी शरीअत अपने से पूर्ण शरीअतों को निरस्त करनेवाली है, और हमारे रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अंतिम रसूल हैं, और आप की शरीअत एक पूर्ण सार्वभौमिक शरीअत है, और आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हमें क़ब्रों पर मस्जिदें बनाने से मना किया है, अतः हमारे लिए आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के आदेश का विरोध करना जायज नहीं है, बल्कि हमारे लिए आप का अनुसरण करना तथा आप जो शरीअत लेकर आए हैं उसका पालन करना, और पिछली शरीअतों और अच्छी आदतों में से जो इसके विरूद्ध हैं उनको छोड़ देना अनिवार्य है। क्योंकि अल्लाह की शरीअत से बढ़ कर कोई शरीअत परिपूर्ण नहीं, और अल्लाह के पैगंबर सल्ललाहु अलैहि व सल्लम के मार्गदर्शन व तरीक़े बेहतर कोई मार्गदर्शन और तरीक़ा नहीं है।

अल्लाह तआला से ही प्रार्थना है कि वह हमें और सारे मुसलमानों को अपने दीन पर सुदृढ़ रहने, और अपने रसूल मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की शरीअत को कर्मों, कथनों, प्रोक्ष व प्रत्यक्ष, और सभी मामलों में मज़बूती से पकड़ने की तौफीक़ प्रदान करे, यहाँ तक कि हम अल्लाह सर्वशक्तिमान से जा मिलें। निःसन्देह वह सुनने वाला निकट है। तथा अल्लाह तआला अपने बन्दे व पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम, आपकी संतान और साथियों तथा परलोक के दिन तक आपके तरीक़े से मार्गदर्शन प्राप्त करनेवालों पर दया व शांति अवतरित फरे। अंत हुआ।

शैख इब्ने बाज़ रहिमहुल्लाह की किताब “मजमूओ फतावा व मका़लात मुतनौविआ” (1/434) से।

क़ब्रों वाली मस्जिदों में नमाज़ पढ़ने के हुक्म के बारे में जानने के लिए प्रश्न संख्या (26324) देखें।

स्रोत

शैख मुहम्मद सालेह अल-मुनज्जिद

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