ईदुल-फ़ित्र के दिन की सुबह, जब हम ईदगाह पहुँचे, तो हमने पाया कि इमाम नमाज़ पढ़ चुका था और ख़ुत्बा का समापन करने वाला था। इसलिए हमने इमाम के ख़ुत्बा देने के दौरान ही ईद की दो रकअत नमाज़ अदा कर ली। क्या यह नमाज़ सही (मान्य) है या नहींॽ
ईदैन (दोनों ईद) की नमाज़ की क़ज़ा
प्रश्न: 27026
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
ईदैन (अर्थात ईदुल फ़ित्र एवं ईदुल अज़्हा) की नमाज़ फ़र्ज़-किफ़ायह (एक सामुदायिक दायित्व) है; यदि पर्याप्त लोग इसे अदा कर लेते हैं, तो शेष लोग पाप से मुक्त हो जाएँगे। प्रश्न में वर्णित स्वरुप में : फ़र्ज़ की अदायगी उन लोगों के द्वारा हो गई, जिन्होंने पहले नमाज़ पढ़ी थी – जिन्हें इमाम खुत्बा दे रहा था -, लेकिन जिसकी नमाज़ छूट गई थी और वह उसे क़ज़ा करना चाहे, तो उसके लिए ऐसा करना मुस्तहब है। इसलिए वह उसे उसके तरीक़े पर पढ़ेगा, लेकिन उसके बाद खुत्बा नहीं देगा। यही इमाम मालिक, शाफ़ेई, अहमद, नखई और अन्य विद्वानों का दृष्टिकोण है।
इसके बारे में मूल सिद्धांत पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का यह फ़रमान है : “जब तुम नमाज़ के लिए आओ, तो तुम शांति और स्थिरता के साथ चलते हुए आओ। फिर जो कुछ पाओ, उसे पढ़ लो और जो तुमसे छूट जाए, उसे पूरा कर लो।”
तथा अनस रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि अगर इमाम के साथ उनकी ईद की नमाज़ छूट जाती, तो वह अपने परिवार को और गुलामों को इकट्ठा करते, फिर उनके मौला (मुक्त कि हुए दास) अब्दुल्लाह बिन अबी उत्बा खड़े होते और उन्हें दो रकअत ईद की नमाज़ पढ़ाते, जिनमें वे अतिरिक्त तकबीरें (भी) कहते थे।
जो व्यक्ति ईद के दिन इस हाल में ईदगाह पहुँचता है कि इमाम ख़ुतबा दे रहा होता है, उसे ख़ुत्बा सुनना चाहिए, फिर उसके बाद नमाज़ क़जा करनी चाहिए, ताकि वह (खुत्बा और नमाज़) दोनों लाभ हासिल कर सके।
और अल्लाह ही तौफ़ीक़ (सामर्थ्य) प्रदान करने वाला है।
स्रोत:
अल-लज्नह अद्-दाईमह लिल-बुहूस अल-इलमिय्यह वल-इफ़्ता” (8/306).