मैं एक काम काज वाला आदमी हूँ। रोज़ी की तलाश में मेरी यात्रा लगातार जारी रहती है। मैं फर्ज़ नमाज़ों को सदैव अपनी यात्रा के दौरान जमा (एकत्र) करके पढ़ता हूँ, और रमज़ान के महीने में रोज़ा तोड़ देता हूँ। क्या मेरे लिए ऐसा करने का अधिकार है या नहीं है ?
एक आदमी जीविका की खोज में बहुत यात्रा करता है तो क्या वह रमज़ान में रोज़ा तोड़ देगा ?
प्रश्न: 27027
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
आप के लिए अपनी यात्रा के दौरान चार रकअत वाली नमाज़ों को क़स्र (संछेप) करना,ज़ुह्र और अस्र की नमाज़ों को जमा (एकत्र) करके उन दोनों के समयों में से किसी एक के समय में,तथा मग्रिब और इशा की नमाज़ों को एकत्र (जमा) करके दोनों के समयों में से किसी एक के समय में पढ़ना जाइज़ है। इसी तरह आप के लिए रमज़ान के महीने में अपनी यात्रा के दौरान रोज़ा तोड़ देना जाइज़ है, और आप ने रमज़ान में जिन दिनों का रोज़ा तोड़ दिया है आप पर उन दिनों की कज़ा करना अनिवार्य है। क्योंकि अल्लाह तआला का फरमान है :
ومن كان مريضاً أو على سفر فعدة من أيام أخر[البقرة: ١٨٥]
"और जो बीमार हो या यात्रा पर हो, तो वह अन्य दिनों में (उसकी) गिन्ती को पूरा कर ले।" (सूरतुल बक़रा : 185)
और अल्लाह तआला ही तौफीक़ देने वाला (शक्ति का स्रोत) है।
स्रोत:
इफ्ता और वैज्ञानिक अनुसंधान की स्थायी समिति के फतावा (10/212) से।