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रमज़ान से पहले क्षमा माँगने के संदेशों का क्या हुक्म हैॽ

प्रश्न: 272580

मैं रमज़ान का महीना शुरू होने से पहले क्षमा मांगने के लिए व्हाट्सएप पर वायरल होने वाले संदेशों का हुक्म जानना चाहता हूँ।

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

 सभी नेक कार्य चाहे वे अल्लाह सर्वशक्तिमान की विशुद्ध उपासना के कार्यों में से हों, जैसे कि नमाज़ और रोज़ा वगैरह, अथवा लोगों के साथ उपकार व भलाई करने के अध्याय से हों, वे सब के सब हर समय अपेक्षित हैं।

जबकि फज़ीलत वाले (प्रतिष्ठित) समयों में उनका आग्रह करना सुनिश्चित हो जाता है, और इन समयों को केवल इसी लिए प्रतिष्ठित क़रार दिया गया है ताकि उनमें सभी प्रकार के अच्छे, नेक कार्यों द्वारा एक दूसरे से  प्रतिस्पर्धा किया जाए।

जिन अच्छे कार्यों पर प्रोत्साहित करना और एक दूसरे को उनकी वसीयत करना धर्मसंगत है, उनमें : क्षमा करना और शत्रुता को समाप्त करना है।

नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से प्रमाणित है कि आप ने फरमायाः "जब तुम में से कोई व्यक्ति रोज़ा रखे, तो वह अशलील कार्य न करे और न अज्ञानता से काम ले। अगर कोई व्यक्ति उससे गाली-गलौज करे (अपशब्द कहे), या उससे लड़ाई-झगड़ा करे, तो उसे कहना चाहिए : मैं रोज़े से हूँ, मैं रोज़े से हूँ।'' इसे बुखारी (1894) और मुस्लिम (1151) ने रिवायत किया है।

 इसमें: इस बात का आग्रह है विवादों (लड़ाई-झगड़े) में हठ, प्रतिद्वंद्वी से बदला लेना और अपने स्वार्थ के लिए प्रतिशोध लेना छोड़ दिया जाए, तथा दुर्व्यवहार का उत्तर उसी के समान दुर्व्यवहार से न दिया जाए।

चूँकि मुसलमान इन मौसमों में अधिक से अधिक अच्छे कार्य करने के लिए तत्पर होता है, और उसे भय होता है कि द्वेष व कपट उसके अच्छे कार्यों के अल्लाह तक पहुँचने में रुकावट न बन जाएँ : तो वह लोगों से माफी के लिए अनुरोध करता है।

मुस्लिम (हदीस संख्या : 2565)  ने अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “लोगों के कार्य हर शुक्रवार (यानी सप्ताह) में दो बारः सोमवार और गुरुवार को पेश किए जाते हैं, तो वह (अल्लाह) हर मोमिन (आस्तिक) बंदे को क्षमा कर देता है सिवाय उस बंदे के जिसके और उसके भाई के बीच द्वेष हो। चुनांचे कहा जाता हैः इन दोनों को छोड़ दो यहाँ तक दि वे दोनों सुलह-समझौता कर लें।''

शैख़ इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह ने कहा:

''इसमें कोई संदेह नहीं कि लोगों के बीच विवाद और द्वंद्व भलाई को रोकना का कारण है, इसका प्रमाण यह है किः नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम रमजान में एक रात अपने साथियों की ओर निकले ताकि उन्हें लैलतुल-क़द्र के बारे में बताएँ, तो सहाबा में से दो व्यक्ति आपस में झगड़ने लगे। तो उस साल उसका ज्ञान उठा लिया गया . . . इसलिए मनुष्य को चाहिए कि वह इस बात का प्रयास करे कि उसके दिल में किसी मुसलमान के प्रति द्वेष न रहे।''

छत्तीसवें ''अल्लिक़ाउश-शहरी'' (मासिक बैठक) से उद्धरण समाप्त हुआ।

अतः जो व्यक्ति सहिष्णुता की भावना फैलाता है, क्षमा करने और अन्याय को चुकाने के लिए अनुरोध करता है, और अपने आपको लोगों के अधिकारों से भार-मुक्त करने का प्रयास करता है और लोगों से ऐसा करने का आग्रह करता है, चाहे वह रमज़ान में हो या उसके अलावा दिनों में, तो इसमें कोई संदेह नहीं है कि वह नेकी (धार्मिकता) और भलाई पर है।

सारांश यह कि :

इस प्रतिष्ठित समय में क्षमा मांगने और अन्याय से बाहर निकलने का औचित्य : स्पष्ट है।

और हमें – इन शा अल्लाह – इन मौसमों में इन बातों का उल्लेख करने, या दूसरों को इनकी याद दिलाने और उनसे ऐसा करने के लिए आग्रह करने में, कोई हर्ज और आपत्ति की बात प्रतीत नहीं होती है।

 और अल्लाह ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

स्रोत

साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर

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