मेरे पास रमज़ान के महीने से संबंधित एक प्रश्न है। क्या हदीस : “जिसने ईमान के साथ और पुण्य की आशा रखते हुए रमज़ान का क़ियाम किया ..” का मतलब यह है कि रमज़ान में हर रात को क़ियाम (तरावीह) की नमाज़ अदा करना आवश्यक है, और अगर आपने तीस रातों में से एक रात के क़ियाम को छोड़ दिया, तो हदीस में वर्णित क्षमा का पुरस्कार आपसे छूट जाएगाॽ तथा रात में क़ियाम का न्यूनतम और अधिकतम सीमा क्या हैॽ
क्या रमज़ान के क़ियाम की फज़ीलत प्राप्त करने के लिए उसकी सभी रातों का क़ियाम करना ज़रूरी हैॽ
प्रश्न: 292107
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
सर्व प्रथम :
अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : ''जिसने ईमान (विश्वास) के साथ और पुण्य की आशा रखते हुए रमज़ान का क़ियाम किया, उसके पिछले पाप क्षमा कर दिए जाएँगे।” इसे बुखारी (हदीस संख्या : 2009) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 759) ने रिवायत किया है।
उक्त हदीस में रमज़ान के महीने को सामान्य (अप्रतिबंधित) रूप से उल्लेख करना, उसकी सभी रातों को शामिल है। इसलिए प्रत्यक्ष बात यही है कि उपर्युक्त अज्र व सवाब सभी रातों के क़ियाम से संबंधित है।
अल्लामा सनआनी रहिमहुल्लाह कहते हैं :
“संभव है कि इससे अभिप्राय उसकी सभी रातों का क़ियाम करना है और यह कि जिसने उसकी कुछ रातों का क़ियाम किया, उसे हदीस में उल्लिखित क्षमा प्राप्त नहीं होगी, और यही स्पष्ट है।” “सुबुलुस्सलाम” (4/182) से उद्धरण समाप्त हुआ।
शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह ने फरमाया :
“आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “जिसने रमज़ान का क़ियाम किया” इससे अभिप्राय : रमज़ान का महीना है और इसमें, शुरु से अंत तक, पूरा महीना शामिल है।”
“शर्ह बुलूग़ुल-मराम” (3/290) से उद्धरण समाप्त हुआ।
जो व्यक्ति कुछ रातों का क़ियाम नहीं कर सका, तो यदि यह किसी उज़्र की वजह से था जिसने उसे क़ियाम करने से रोक दिया, तो उसके लिए हदीस में उल्लिखित इस फ़ज़ीलत (प्रतिफ़ल) की आशा की जाती है।
अबू मूसा रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्होंने कहा : अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया : “जब बंदा बीमार होता है या सफ़र करता है, तो उसके लिए उन सभी कार्यों का अज्र व सवाब लिखा जाता है जिन्हें वह निवासी और स्वस्थ होने की अवस्था में किया करता था।” इसे बुख़ारी (हदीस संख्या : 2996) ने रिवायत किया है।
तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की पत्नी आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा से वर्णित है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “जिस आदमी की भी रात में कोई (स्वैच्छिक) नमाज़ (पढ़ने की आदत) होती है, जिसे वह नींद से अभिभूत होने की वजह से नहीं पढ़ पाता, तो उसके लिए उसकी नमाज़ का सवाब लिखा जाता है और उसकी नींद उसपर सदक़ा (दान) होती है।” इसे अबू दाऊद (हदीस संख्या : 1314) ने रिवायत किया है और अलबानी ने “इरवाउल-ग़लील” (2/204) में इसे सहीह कहा है।
लेकिन अगर उसने रमज़ान की कुछ रातों के क़ियाम को आलस्य के कारण छोड़ा है, तो हदीस का स्पष्ट अर्थ यह है कि वह उपर्युक्त फ़ज़ीलत को नहीं पाएगा।
दूसरा :
जहाँ तक रमज़ान के क़ियाम के लिए न्यूनतम और अधिकतम सीमा का संबंध है, तो शरीयत ने रमज़ान की रातों के क़ियाम के लिए रकअतों की कोई विशिष्ट संख्या निर्धारित नहीं की है।
शैखुल-इस्लाम इब्ने तैमिय्यह रहिमहुल्लाह ने फ़रमाया :
“स्वयं रमज़ान के क़ियाम के संबंध में : नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कोई विशिष्ट संख्या निर्धारित नहीं की है…
जो व्यक्ति यह गुमान करता है कि रमजान के क़ियाम के बारे में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की ओर सो कोई निर्धारित संख्या है, जिसमें वृद्धि या कमी नहीं हो सकती : तो वह गलती पर है …
कभी-कभी आदमी चाक-चौबंद होता है, तो उसके लिए इबादत को लंबी करना सबसे अच्छा है, और कभी-कभी वह चाक-चौबंद नहीं होता, तो उसके हक़ में इबादत को हल्की रखना बेहतर है।
अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की नमाज़ संतुलित होती थी। यदि आप क़ियाम को लंबा करते, तो रुकूअ और सज्दे भी लंबे करते थे और जब क़ियाम को हल्का रखते थे, तो रुकूअ और सज्दे को भी हल्के रखते थे। आप फर्ज़ नमाज़ों, क़ियामुल्लैल और ग्रहण की नमाज़ इत्यादि में ऐसा ही किया करते थे।”
“मजमूउल फ़तावा” (22/272 – 273) से उद्धरण समाप्त हुआ।
निष्कर्ष : यह कि क़ियामुल्लैल (रात में स्वैच्छिक नमाज़) की कोई अधिकतम सीमा नहीं है, इसलिए मुसलमान जितनी रकअतें चाहे पढ़ सकता है।
जहाँ तक कम से कम रकअत का संबंध है जो एक आदमी सामान्यत: रात के समय पढ़ता है : वह वित्र की रकअत है।
और मात्र उससे ही रमज़ान में रात के क़ियाम के प्राप्त होने का मामला : स्पष्ट रूप से विचाराधीन है (उसमें गहन विचार की आवश्यकता है)। क्योंकि शरीयत ने रमज़ान के महीने में एक विशेष क़ियाम पर ज़ोर दिया है, जिसकी वर्ष की अन्य रातों की तुलना में अधिक ताकीद की गई है। तथा इसी तरह अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की स्थिति और सदाचारी पूर्वजों की स्थिति थी। यहाँ तक कि उसमें मस्जिद में नियमित इमाम पर एकत्रित होना धर्मसंगत क़रार दिया गया है, जो उसके अलावा में धर्मसंगत नहीं किया गया है। तथा इस बात पर प्रोत्साहित किया गया है कि आदमी अपने इमाम के साथ सब्र करे यहाँ तक कि वह अपनी पूरी नमाज़ से फारिग़ हो जाए।
अबू ज़र्र रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्होंने कहा : अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “आदमी जब इमाम के साथ नमाज़ पढ़ता है यहाँ तक कि वह फारिग हो जाता है, तो उसके लिए रातभर क़ियाम करने का अज्र व सवाब लिखा जाता है।” इसे अबू दाऊद (हदीस संख्या : 1375) और तिरमिज़ी (हदीस संख्या : 806) ने रिवायत किया है और तिरमिज़ी ने कहा है कि : “यह एक हसन सहीह हदीस है।”
अधिक जानकारी के लिए, प्रश्न संख्या : (153247) का उत्तर देखें।
लेकिन अगर वह अकेले नमाज़ पढ़ रहा है, तो उसके लिए बेहतर यह है कि वह उसी तरह नमाज़ पढ़े जिस तरह नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ग्यारह रकअत विनम्रता व एकाग्रता के साथ नमाज़ पढ़ते थे, ताकि यह सुनिश्चित हो जाए कि उसने विश्वास के साथ और अज्र व सवाब की आशा रखते हुए नमाज़ पढ़ी है।
अबू सलमा बिन अब्दुर्रहमान से वर्णित है कि उन्होंने आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा से पूछा : रमज़ान में अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की नमाज़ कैसी थीॽ तो उन्होंने फरमाया : “नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम रमज़ान के महीने या किसी अन्य महीने में ग्यारह रकअत से अधिक नहीं पढ़ते थे। आप चार रकअतें पढ़ते तो उनकी ख़ूबसूरती और लंबाई के बारे में मत पूछिए। फिर आप चार रकअतें पढ़ते थे तो उनकी ख़ूबसूरती और लंबाई के बारे में मत पूछिए। फिर आप तीन रकअतें पढ़ते थे।'' इसे बुख़ारी (हदीस संख्या : 1147) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 738) ने उल्लेख किया है।
यदि वह इससे अधिक पढ़ता है, तो इसमें कोई हर्ज की बात नहीं है। अधिक जानकारी के लिए, प्रश्न संख्या : (9036) का उत्तर देखें।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।
स्रोत:
साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर
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