सूरतुल-अंबिया की आयत संख्या : 34 में जो बात वर्णन की गई है कि : وما جعلنا لبشر من قبلك الخلد “और – ऐ रसूल – हमने आपसे पहले किसी मनुष्य को अमरत्व नहीं प्रदान किया”, तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सुन्नत (हदीस) में एक से अधिक बार उल्लेख किया गया है कि ईसा अलैहिस्सलाम को आकाश पर उठा लिया गया है, हम इन दोनों के बीच कैसे सामंजस्य बैठाएँॽ
क्या ईसा अलैहिस्सलाम का अस्तित्व अल्लाह के फरमान : (وما جعلنا لبشر من قبلك الخلد) ”और हमने आपसे पहले किसी मनुष्य को अमरत्व नहीं प्रदान किया” के साथ विरोधाभास रखता हैॽ
प्रश्न: 310720
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
सर्व प्रथम :
अल्लाह तआला फरमाता है :
وَمَا جَعَلْنَا لِبَشَرٍ مِنْ قَبْلَكِ الْخُلْدَ أَفَإِنْ مِتَّ فَهُمُ الْخَالِدُونَ كُلُّ نَفْسٍ ذَائِقَةُ الْمَوْتِ وَنَبْلُوكُمْ بِالشَّرِّ وَالْخَيْرِ فِتْنَةً وَإِلَيْنَا تُرْجَعُونَ [الأنبياء:35].
“और – ऐ रसूल – हमने आपसे पहले किसी मनुष्य को अमरत्व नहीं प्रदान किया, फिर क्या यदि आप मर जाएँ तो ये सदैव रहने वाले हैॽ हर जीव को मौत का मज़ा चखना है और हम तुम्हें, परीक्षण करने के लिए, बुराई और भलाई से पीड़ित करते हैं और तुम हमारी ही ओर लौटाए जाओगे।” (सूरतुल अंबिया : 34-35)
यह एक स्पष्ट सुदृढ़ आयत है। इस अर्थ को अल्लाह की किताब की कई आयतों में दर्शाया गया है। इब्ने कसीर रहिमहुल्लाह ने अल्लाह तआला के फरमान :
أَيْنَمَا تَكُونُوا يُدْرِكُكُمُ الْمَوْتُ وَلَوْ كُنْتُمْ فِي بُرُوجٍ مُشَيَّدَةٍ [سورة النساء :78]
“तुम जहाँ कहीं भी होगे, मृत्यु तुम्हें आकर रहेगी, चाहे तुम मज़बूत क़िलों में ही हो।” (सूरतुन-निसा :78) के बारे में कहा : “अर्थात् तुम निश्चित रूप से मृत्यु से ग्रस्त होने वाले हो, तुम में से कोई भी उससे नहीं बच सकता, जैसा कि अल्लाह सर्वशक्तिमान ने फरमाया :
كُلُّ مَنْ عَلَيْهَا فَانٍ وَيَبْقَى وَجْهُ رَبِّكَ ذُو الْجَلالِ وِالإكْرَامِ [الرَّحْمَنِ: 26، 27]
“प्रत्येक जो भी इस (धरती) पर है, नाशवान है। और तेरे पालनहार का प्रतापवान और उदार चेहरा शेष रहनेवाला है।” [सूरतुर-रहमान : 26-27]
तथा अल्लाह सर्वशक्तिमान ने फरमाया :
كُلُّ نَفْسٍ ذَائِقَةُ الْمَوْتِ [آلِ عِمْرَانَ: 185]
“प्रत्येक जीव मृत्यु का मज़ा चखनेवाला है।” [सूरत आल-इमरान : 185]
तथा अल्लाह सर्वशक्तिमान ने फरमाया :
وَمَا جَعَلْنَا لِبَشَرٍ مِنْ قَبْلِكَ الْخُلْدَ [الْأَنْبِيَاءِ: 34]
“और – ऐ पैगंबर – हमने आपसे पहले किसी मनुष्य को अमर रहने वाला नहीं बनाया।” (सूरतुल अंबिया : 34-35)
सारांक्ष यह कि : प्रत्येक व्यक्ति को अनिवार्य रूप से मृत्यु का सामना करना है, कोई भी चीज़ उसे मृत्यु से नहीं बचा सकती। इसलिए उसके लिए बराबर है, चाहे वह जिहाद करे या जिहाद न करे, उसके लिए एक निश्चित समय और एक विभाजित अवधि है (जिसे कोई टाल नहीं सकता)।”
“तफ्सीर इब्ने कसीर” (2/360) से उद्धरण समाप्त हुआ।
आयत का अर्थ यह है कि : “हमने आदम की संतान में से किसी को भी इस दुनिया में अमर (हमेशा रहने वाला) नहीं बनाया है, कि हम आपको ऐ मुहम्मद, इसमें अमर कर देंगे।
इसलिए क्या यदि आप मर जाएँ तो ये बहुदेववादी लोग आपके बाद इस दुनिया में सदैव रहने वाले हैंॽ
अर्थात : यदि आप मर जाएँ, तो क्या ये लोग हमेशा रहने वाले हैंॽ”
देखें : मक्की की “अल-हिदायह” (7/4754), “अत-तफ़सीर अल-बसीत” (15/69)।
अमरत्व का मतलब इस दुनिया में स्थायी (हमेशा के लिए) अस्तित्व है।
दूसरी बात :
ईसा अलैहिस्सलाम को भले ही अल्लाह ने अपनी ओर उठा लिया और उन्हें काफिरों में से उनके दुश्मनों से पवित्र कर दिया और वह अब आकाश में जीवित हैं; परंतु वह बिना किसी शक एवं संदेह के, क़ुरआन के मूल-पाठ के अनुसार, क़ियामत के दिन से पहले मर जाएँगे। जैसा कि अल्लाह सर्वशक्तिमान ने फरमाय :
وَإِنْ مِنْ أَهْلِ الْكِتَابِ إِلَّا لَيُؤْمِنَنَّ بِهِ قَبْلَ مَوْتِهِ وَيَوْمَ الْقِيَامَةِ يَكُونُ عَلَيْهِمْ شَهِيدًا [النساء:159] .
“किताब वालों में से कोई भी ऐसा न बचेगा, जो ईसा पर उनकी मृत्यु से पहले ईमान न ले आए। और वह क़ियामत के दिन उनपर गवाह होंगे।” (सूरतुन-निसा : 159)
इब्ने कसीर रहिमहुल्लाह ने अपनी तफसीर (2/454) में कहा : “फिर इब्ने जरीर ने कहा : इन कथनों में सही होने के सबसे अधिक योग्य पहला कथन है, वह यह है कि ईसा अलैहिस्सलाम के उतरने के बाद अह्ले किताब (पुस्तक वालों) में से कोई भी व्यक्ति नहीं बचेगा, परंतु वह उनकी मृत्यु से पहले अर्थात् ईसा अलैहिस्सलाम की मृत्यु से पहले उनपर ईमान ले आएगा।
इसमें कोई संदेह नहीं कि इब्ने जरीर रहिमहुल्लाह ने जो यह बात कही है, वही सही है। क्योंकि आयतों के संदर्भ से उसी तथ्य को उजागर करना उद्देश्य है। उन आयतों में यहूदियों के इस दावे को झूठा साबित किया गया है कि उन्होंने ईसा अलैहिस्सलाम को सूली पर चढ़ाकर मार डाला और अनभिज्ञ ईसाइयों में से कुछ लोगों ने उनकी इस बात को स्वीकार कर लिया। अतः अल्लाह ने सूचना दी है कि मामला ऐसा नहीं था। बल्कि वास्तविकता यह है कि (अल्लाह ने) उनके लिए ईसा अलैहिस्सलाम का एक सदृश प्रस्तुत कर दिया, तो उन्होंने उस सदृश को क़त्ल किया और उन्हें इसका पता नहीं चला। फिर अल्लाह ने उन्हें अपनी ओर उठा लिया और वह अभी जीवित हैं और वह क़ियामत के दिन से पहले नीचे उतरेंगे, जैसा कि मुतवातिर हदीसों से इसका पता चलता है – जिन्हें हम इन शा अल्लाह जल्द ही उल्लेख करेंगे -, फिर वह गुमराही के मसीह (दज्जाल) का वध करेंगे, सलीब (क्रॉस) को तोड़ेंगे, सुअर को क़त्ल करेंगे और जिज़्या को समाप्त कर देंगे अर्थात् : वह अन्य धर्मों के लोगों में से किसी से भी जिज़्या स्वीकार नहीं करेंगे। बल्कि, वह इस्लाम या तलवार के अलावा कुछ भी स्वीकार नहीं करेंगे।
अतः इस आयत में बताया गया है कि उस समय सभी अह्ले किताब उनपर ईमान ले आएँगे और उनमें से कोई भी उनको मानने से पीछे नहीं रहेगा। यही कारण है कि अल्लाह ने फरमाया :
وَإِنْ مِنْ أَهْلِ الْكِتَابِ إِلا لَيُؤْمِنَنَّ بِهِ قَبْلَ مَوْتِهِ
“किताब वालों में से कोई भी न होगा, परंतु उनकी मृत्यु से पहले उनपर ईमान ले आएगा।” अर्थात् : ईसा अलैहिस्सलाम की मृत्यु से पहले, जिनके बारे में यहूदियों और उनसे सहमति रखने वाले ईसाइयों ने दावा किया था कि वह क़त्ल कर दिए गए और सूली पर चढ़ा दिए गए।
وَيَوْمَ الْقِيَامَةِ يَكُونُ عَلَيْهِمْ شَهِيدًا
“और वह क़ियामत के दिन उनपर गवाह होंगे।”
अर्थात् : उनके उन कर्मों के (गवाह होंगे) जो उन्होंने अपने आकाश पर उठाए जाने से पहले तथा धरती पर उतरने के बाद उन्हें करते हुए देखा होगा।” उद्धरण समाप्त हुआ।
अंतिम समय में, ईसा अलैहिस्सलाम के उतरने की एक हिकमत है, जिसे विद्वानों ने उल्लेख किया है। इब्ने हजर ने कहा : “विद्वानों ने कहा : अन्य नबियों को छोड़कर ईसा अलैहिस्सलाम ही के उतरने की हिकमत, यहूदियों के इस दावे का खंडन करना है कि उन्होंने ईसा अलैहिस्सलाम को क़त्ल कर दिया था। इसलिए अल्लाह ने उनका झूठ स्पष्ट कर दिया, और यह कि (स्वयं) वही उन लोगों को क़त्ल करेंगे।
या वह अपनी मृत्यु के समय के क़रीब होने की वजह से उतरेंगे, ताकि पृथ्वी में दफन किए जाएँ। क्योंकि मिट्टी का कोई प्राणी उसके अलावा कहीं और नहीं मर सकता है।
यह भी कहा गया है : उन्होंने जब मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और उनकी उम्मत की विशेषता देखी तो अल्लाह से दुआ की कि उन्हें उनमें से बना दे। इसलिए अल्लहा ने उनकी दुआ स्वीकार कर ली और उन्हें बाक़ी रखा यहाँ तक कि वह अंतिम समय में इस्लाम के आदेश का नवीकरण करते हुए उतरेंगे। चुनाँचे वह दज्जाल के निकलने का समय होगा और वह उसे क़त्ल कर देंगे।” उद्धरण समाप्त हुआ। “फत्हुल-बारी” (6/493)
तथा अधिक लाभ के लिए, प्रश्न संख्या : (110592) और प्रश्न संख्या : (3221) का उत्तर देखें।
तीसरा :
जहाँ तक ईसा अलैहिस्सलाम के उतरने पर उनके धरती में जीवित रहने की अवधि का संबंध है : तो कुछ रिवायतो में है कि वह सात साल रहेंगे, और अन्य रिवायतों में है कि वह चालीस साल तक रहेंगे, फिर उनकी मृत्यु हो जाएगी और मुसलमान उनकी जनाज़ा की नमाज़ पढ़ेंगे। अब्दुल्लाह बिन अम्र रज़ियल्लाहु अन्हुमा की हदीस में है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “फिर अल्लाह ईसा बिन मर्यम को भेजेगा … फिर लोग सात साल तक इस तरह रहेंगे कि दो आदमियों के बीच कोई शत्रुता नहीं होगी। फिर अल्लाह शाम (लेवांत) की ओर से एक ठंडी हवा भेजेगा, जिसके कारण धरती पर एक भी ऐसा आदमी नहीं बचेगा जिसके दिल में ज़र्रा बराबर भलाई या ईमान होगा परंतु उसकी मृत्यु हो जाएगी।”
तथा अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु की पिछली हदीस में है कि : “फिर वह धरती पर चालीस साल तक रहेंगे, फिर उनकी मृत्यु हो जाएगी और मुसलमान उनकी जनाज़ा की नमाज़ पढ़ेंगे।”
ईसा अलैहिस्सलाम के उतरने के बाद, उनके धरती में जीवित रहने की अवधि के संबंध में रिवायतों में विभेद और उनके बीच सामंजस्य के बारे में विद्वानों के तरीकों की ओर प्रश्न संख्या : (262149) के उत्तर में पहले संकेत किया जा चुका है।
इस अवधि के बारे में जो भी बात हो, अंततः वह आवश्यक रूप से क़ियामत क़ायम होने से पहले मर जाएँगे, जैसा कि अल्लाह सर्वशक्तिमान ने फरमाया:
وَإِنْ مِنْ أَهْلِ الْكِتَابِ إِلَّا لَيُؤْمِنَنَّ بِهِ قَبْلَ مَوْتِهِ وَيَوْمَ الْقِيَامَةِ يَكُونُ عَلَيْهِمْ شَهِيدًا [النساء:159] .
“किताब वालों में से कोई भी ऐसा न बचेगा, जो ईसा पर उनकी मृत्यु से पहले ईमान न ले आए। और वह क़ियामत के दिन उनपर गवाह होंगे।” (सूरतुन-निसा : 159)
तथा उनकी मृत्यु का स्पष्ट रूप से उल्लेख अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु की हदीस में किया गया है : “फिर उनकी मृत्यु हो जाएगी और मुसलमान उनकी जनाज़ा की नमाज़ पढ़ेंगे।” इसे अहमद (हदीस संख्या : 9270) और अबू दाऊद (हदीस संख्या : 4237) ने रिवायत किया है।
जब क़ुरआन के मूलपाठ से यह सिद्ध हो गया कि : ईसा अलैहिस्सलाम क़ियामत के दिन से पहले मर जाएँगे और मुसलमानों के बीच इसके बारे में कोई मतभेद नहीं है; तो यह इस तयशुदा तथ्य के विरुद्ध नहीं है कि इस दुनिया में कोई भी व्यक्ति हमेशा के लिए जीवित नहीं रहेगा, बल्कि हर जीव मर जाएगा और केवल वह परम जीवंत (अल्लाह) बाक़ी रहेगा जिसे मौत नहीं आती। क्योंकि ईसा अलैहिस्सलाम के जीवित रहने की अवधि, उनके जन्म से लेकर यहाँ तक कि अल्लाह उन्हें मृत्यु देगा, भले ही लंबी और लोगों के जीवनों में सामान्य स्थिति से बाहर है; परंतु यह एक सीमित अवधि है, बल्कि यह दुनिया की पूरी आयु की तुलना में एक छोटी अवधि है। तो फिर शाश्वत अमरता के साथ इसकी क्या तुलना है। इसे तो अल्लाह ने इस सांसारिक घर में किसी के लिए भी नहीं लिखा है। बल्कि ऐसा केवल उस समय होगा जब अल्लाह उन्हें क़ियामत के दिन पुनर्जीवित करके उठाएगा।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।
स्रोत:
साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर