क्या क़ुरआन करीम में सूरतुल आराफ़ में वर्णित लिबास (पोशाक) शर्मगाह को ढँकने की पोशाक है या श्रृंगार और सौंदर्य की पोशाक हैॽ
क़ुरआन करीम में वर्णित “लिबास” शर्मगाह को ढँकने एवं श्रृंगार के लिए है
प्रश्न: 310812
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
अल्लाह तआला ने फरमाया :
يَابَنِي آدَمَ قَدْ أَنْزَلْنَا عَلَيْكُمْ لِبَاسًا يُوَارِي سَوْآتِكُمْ وَرِيشًا وَلِبَاسُ التَّقْوَى ذَلِكَ خَيْرٌ ذَلِكَ مِنْ آيَاتِ اللَّهِ لَعَلَّهُمْ يَذَّكَّرُونَ * يَابَنِي آدَمَ لَا يَفْتِنَنَّكُمُ الشَّيْطَانُ كَمَا أَخْرَجَ أَبَوَيْكُمْ مِنَ الْجَنَّةِ يَنْزِعُ عَنْهُمَا لِبَاسَهُمَا لِيُرِيَهُمَا سَوْآتِهِمَا إِنَّهُ يَرَاكُمْ هُوَ وَقَبِيلُهُ مِنْ حَيْثُ لَا تَرَوْنَهُمْ إِنَّا جَعَلْنَا الشَّيَاطِينَ أَوْلِيَاءَ لِلَّذِينَ لَا يُؤْمِنُونَ [سورة الأعراف : 26 – 27].
“ऐ आदम की संतान! हमने तुम्हारे लिए ऐसा वस्त्र उतारा है, जो तुम्हारी शर्मगाहों को छुपाता है और शोभा का साधन है। और तक़्वा (धर्मपरायणता) का वस्त्र सबसे उत्तम है। यह अल्लाह की निशानियों में से है, ताकि वे लोग नसीहत ग्रहण करें। ऐ आदम की संतान! कहीं शैतान तुम्हें फितने (बहकावे) में न डाल दे, जिस प्रकार उसने तुम्हारे माँ-बाप को जन्नत से निकलवाया था; जब उसने उन दोनों का वस्त्र उतरवाया था, ताकि उनको उनकी शर्मगाहें दिखा दें। निःसंदेह वह और उसका गिरोह तुम्हें ऐसे तौर पर देखता है, जहाँ से तुम उन्हें नहीं देखते। निःसंदेह हमने शैतानों को उन लोगों का मित्र बना दिया है, जो ईमान नहीं लाते।” (सूरतुल आराफ़ : 26-27).
इस आयत में वर्णित वस्त्र शर्मगाह (गुप्तांगों) को ढँकने और उस शानदार कपड़े को शामिल है जो सौंदर्य और श्रृंगार के लिए उपयोग किए जाते हैं।
इस आयत में, अल्लाह सर्वशक्तिमान फरमाता है : “ऐ आदम की संतान, हमने तुम्हारे लिए अपने महान उपकार से वस्त्र उतारा है, जो तुम्हारी शर्मगाहों को ढँकता है, और एक अन्य शानदार वस्त्र है जिससे तुम आपस में सजते-संवरते हो।
और अल्लाह से भय का वस्त्र : तुम्हारे लिए उसके अलावा से बेहतर है, क्योंकि यह तुम्हें अल्लाह की यातना से बचाता है।
यह जो हमने आदम की संतान को दिया है – चाहे वह किसी भी तरह का हो – अल्लहा की निशानियों में से है, जो उसकी शक्ति, अनुग्रह और दया का साक्षी है, ताकि वे सीख ग्रहण करे, फिर वे उसकी अवहेलनाओ (पापों) से दूर रहें।
वसीयत तथा जिन्हें वसीयत की गई है उनके महत्व के कारण आदम की संतान के लिए बुलावे और पुकार को दोहराया गया।
भावार्थ यह है कि : ऐ आदम की संतान, शैतान तुम्हें अपनी फुसफुसाहट के द्वारा बदसूरत को सजाकर और अच्छे को बदसूरत बनाकर, फ़ितना (प्रलोभन) और दुर्भाग्य में न गिरा दे। तो तुम जन्नत से वंचित हो जाओ और जहन्नम में प्रवेश करना पड़े – इसलिए उसकी फुसफुसाहट द्वारा लुभाए जाने से सावधान रहो, अन्यथा दंडित किया जाओगे ..
जिस तरह कि उसने तुम्हारे माता-पिता आदम और हव्वा को लुभाय (बहकाया)। चुनाँचे उसने उन्हें जन्नत से बाहर निकलवा दिया; इस कारण कि उन दोनों ने उसका अनुसरण किया, जबकि वह उन दोनों के कपड़े उतरवाना कारण बना, ताकि उन दोनों को उनकी शर्मगाहें दिखा दें।
शर्मगाहों को प्रकट करना : मनुष्यता की बर्बादी, और मानवता के मानक का उल्लंघन है।
إِنَّهُ يَرَاكُمْ هُوَ وَقَبِيلُهُ مِنْ حَيْثُ لَا تَرَوْنَهُمْ “निःसंदेह वह और उसका समूह तुम्हें ऐसे तौर पर देखता है, जहाँ से तुम उन्हें नहीं देखते।” (सूरतुल आराफ़ : 27). क़बील : समूह को कहते हैं। और इब्लीस के क़बील से अभिप्राय : जिन्नों में से उसके सैनिक हैं।
यह वाक्य शैतान के लुभाने और बहकावे में आने से निषेध के कारण का स्पष्टीकरण, तथा उससे चेतावनी की पुष्टि है। क्योंकि यदि दुश्मन आप तक इस तौर पर पहुँच सकता है जहाँ से आप उसे नहीं देखते हैं, तो आपके लिए योग्य है कि उससे बहुत अधिक सावधान रहें। क्योंकि शैतान आदम की संतान के अंदर खून की तरह दौड़ता है। अतः उसकी गुप्त चाल और उसके जत्थों के छल से सावधान रहो, ताकि ऐसा न हो कि उनके जाल में फँस जाओ।
إِنَّا جَعَلْنَا الشَّيَاطِينَ أَوْلِيَاءَ لِلَّذِينَ لَا يُؤْمِنُونَ “निःसंदेह हमने शैतानों को उन लोगों का मित्र बना दिया है, जो ईमान नहीं लाते।” (सूरतुल आराफ़ : 27) : हमने शैतान को उन लोगों के लिए अगुआ एवं राहनुमा बना दिया है जो अल्लाह और उसके रसूल पर विश्वास नहीं करते, जो उन्हें, उनके अपनी बुद्धियों को बर्बाद करने और अपने पालनहार की प्रकृति को भ्रष्ट करने पर अडिग होने के कारण बहकाता है।” “अत-तफ़सीर अल-वसीत” (3/1402) से उद्धरण समाप्त हुआ।
अल्लामा अस-सा’दी अपनी तफ़सीर (पृष्ठ : 285) में कहते हैं : “जब अल्लाह ने आदम और उनकी पत्नी तथा उनकी संतान को पृथ्वी पर उतार दिया, तो उन्हें उसमें उनके निवास की स्थिति के बारे में बताया और यह कि उसने उनके लिए उसमें ऐसा जीवन बनाया है जिसके बाद मृत्यु आएगी, जो परीक्षण और विपत्ति से भरा है। वे निरंतर उसी में रहेंगे, वह उनकी ओर अपने रसूलों को भेजेगा, उनपर अपनी किताबें उतारेगा, यहाँ तक कि उनकी मृत्यु आ जाएगी। तो वे उसी में दफन किए जाएँगे। फिर जब वे अपनी अवधि पूरी कर लेंगे, तो अल्लाह उन्हें पुनर्जीवित करेगा और उन्हें इस दुनिया से निकाल कर उस घर में ले जाएगा, जो कि वास्तव में असली घर है और वही सार्वकालिक निवास का घर है।
फिर अल्लाह ने उन लोगों पर अपने इस उपकार का उल्लेख किया है कि उसने उन्हें आवश्यक वस्त्र तथा वह वस्त्र उपलब्ध कराया जो सुंदरता के उद्देश्य के लिए होता है।
यही बात अन्य सभी चीजों पर लागू होती है, जैसे कि भोजन, पेय, सवारियाँ, पत्नियाँ इत्यादि। अल्लाह ने अपने बंदों के लिए इनमें से आवश्यक व अनिवार्य चीज़ों तथा उनके पूरकों को आसान बनाया है। तथा उनके लिए यह स्पष्ट कर दिया है कि स्वयं वही चीज़ अभिप्रेत नहीं है। बल्कि अल्लाह ने उसे अपनी उपासना और आज्ञापालन पर उनके लिए सहायता के तोर पर उतारा है। इसीलिए उसने फरमाया : وَلِبَاسُ التَّقْوَى ذَلِكَ خَيْرٌ “तक़्वा का वस्त्र सबसे बेहतर है।” (सूरतुल आराफ़ : 26) अर्थात वह शारीरिक वस्त्र से बेहतर है। क्योंकि तक़्वा का वस्त्र बंदे के साथ निरंतर रहता है, वह न सड़ता-गलता है और न नष्ट होता है और वह हृदय और आत्मा का सौंदर्य है।
रही बात बाहरी पोशाक की, तो यह अधिक से अधिक किसी समय में बाहरी शर्मगाह को छिपाता है, या इनसान के लिए सुंदरता का कारण होता है और इससे बढ़कर इसका और कोई लाभ नहीं है।
साथ ही, यदि मान लिया जाए कि यह पोशाक मौजूद नहीं है, तो उसकी बाहरी शर्मगाह उजागर हो जाएगी, जिसका ज़रूरत की अवस्था में उजागर करना उसे नुकसान नहीं पहुँचाएगा। लेकिन अगर मान लिया जाए कि तक़्वा का वस्त्र नहीं है, तो उसकी आंतरिक शर्मगाह उजागर हो जाएगी और उसे रुसवाई और फ़ज़ीहत का सामना करना पड़ेगा।
अल्लाह तआला का फरमान : ذَلِكَ مِنْ آيَاتِ اللَّهِ لَعَلَّهُمْ يَذَّكَّرُونَ “यह अल्लाह की निशानियों में से है, ताकि वे लोग नसीहत ग्रहण करें।” (सूरतुल आराफ़ : 26) अर्थात् : यह वस्त्र जिसका तुमसे उल्लेख किया गया है, उन चीज़ों में से है जिनसे तुम याद करते हो कि तुम्हारे लिए क्या लाभकारी है और क्या हानिकारक है और उस बाहरी (प्रत्यक्ष) वस्त्र से अपने आंतरिक (को ढँकने) पर मदद लेते हो।
तथा अल्लाह सर्वशक्तिमान, आदम की संतान को सावधान करते हुए कि शैतान कहीं उनके साथ भी वैसा ही न करे जो उनके पिता के साथ किया था, फरमाता है : يَا بَنِي آدَمَ لا يَفْتِنَنَّكُمُ الشَّيْطَانُ “ऐ आदम की संतान, शैतान तुम्हें फितने (बहकावे) में न डाल दे।” (सूरतुल आराफ़ : 27) अर्थात् ऐसा न हो कि वह तुम्हारे लिए अल्लाह की अवज्ञा को शोभित करके तुम्हें उसकी ओर बुलाए और उसके लिए प्रेरित करे और फिर तुम बहकावे में आकर उसका अनुसरण कर लो। كَمَا أَخْرَجَ أَبَوَيْكُمْ مِنَ الْجَنَّةِ “जिस तरह उसने तुम्हारे बाप को जन्नत से निकलवाया।” (सूरतुल आराफ़ : 27) और उन्हें ऊँचे स्थान से उतारकर उससे बहुत नीचे स्थान पर पहुँचा दिया। अतः वह तुम्हारे साथ भी वही कुछ करना चाहता है और वह अपने प्रयासों को तब तक नहीं छोड़ेगा जब तक कि वह तुम्हें बहका न दे, यदि वह सक्षम है। इसलिए तुम उससे बचाव और सावधानी को अपने दिल में रखो, और अपने और उसके बीच युद्ध के लिए बकतरबंद रहो, और उन जगहों से असावधान न रहो, जहाँ से वह तुमपर हमलावर होता है।
क्योंकि वह लगातार तुम्हारा निरीक्षण करता रहता है। إِنَّهُ يَرَاكُمْ هُوَ وَقَبِيلُهُ “वह और जिन के शैतानों में से उसका समूह तुम्हें उस स्थान से देखते हैं مِنْ حَيْثُ لا تَرَوْنَهُمْ إِنَّا جَعَلْنَا الشَّيَاطِينَ أَوْلِيَاءَ لِلَّذِينَ لا يُؤْمِنُونَ जहाँ से तुम उन्हें नहीं देख सकते। हमने शैतानों को उन लोगों का दोस्त बना दिया, जो ईमान नहीं लाते।” (सूरतुल आराफ़ : 27) चुनाँचे ईमान का न होना ही आदमी और शैतान के बीच दोस्ती स्थापित करने का कारण है।
अल्लाह तआला ने फरमाया :
إِنَّهُ لَيْسَ لَهُ سُلْطَانٌ عَلَى الَّذِينَ آمَنُوا وَعَلَى رَبِّهِمْ يَتَوَكَّلُونَ * إِنَّمَا سُلْطَانُهُ عَلَى الَّذِينَ يَتَوَلَّوْنَهُ وَالَّذِينَ هُمْ بِهِ مُشْرِكُونَ [سورة النحل : 99-100]
“उसका उन लोगों पर कोई ज़ोर नहीं चलता जो ईमान लाए और अपने पालनहार पर भरोसा रखते हैं। उसका ज़ोर तो केवल उन्हीं लोगों पर चलता है जो उसे अपना मित्र बनाते हैं और उसके (आज्ञापलन के) कारण अल्लाह के साथ शिर्क करते हैं।” (सूरतुन नह्ल : 99-100)
और अल्लाह ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।
स्रोत:
साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर