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वह अपने मुस्लिम भाई के लिए उसकी अनुपस्थिति में दुआ करता है, फिर उसे उसके बारे में बताता है

प्रश्न: 331219

अगर मैं उस व्यक्ति से, जिसके लिए मैं उसकी अनुपस्थिति में दुआ करता हूँ, यह बता दूँ कि मैं उसके लिए दुआ करता हूँ, तो क्या उससे अज्र व सवाब में कुछ कमी हो जाएगीॽ या उस व्यक्ति ने मुझसे पूछा कि क्या आप मेरे लिए दुआ करते हैं और मैंने हाँ कहा, तथा मैंने भी उससे इसी तरह दुआ करने के लिए कहा।

उत्तर का पाठ

पहला : शरीयत ने मुसलमान को अपने भाई के लिए ग़ायबाना दुआ करने के लिए प्रोत्साहित किया है।

इस्लामी शरीयत ने मुसलमानों को एक-दूसरे के लिए ग़ायबाना दुआ करने के लिए प्रोत्साहित किया है, जैसा कि अबुद्-दर्दा की हदीस में है कि उन्होंने कहा : अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “कोई मुसलमान बंदा अपने भाई के लिए उसकी अनुपस्थिति में दुआ करता है, तो फ़रिश्ता कहता है : और तुझे भी ऐसा ही प्राप्त हो।” इसे मुस्लिम (हदीस संख्या : 2732) ने रिवायत किया है।

क़ाज़ी अयाज़ रहिमहुल्लाह ने कहा :

“उसने जो दुआ की है उसी के समान उसके लिए प्रतिफल है। क्योंकि, भले ही उसने दूसरे के लिए दुआ की है, लेकिन वास्तव में उसने दो नेक काम किए हैं : उनमें से एक : अल्लाह सर्वशक्तिमान को याद करना उसके लिए निष्ठा दिखाते हुए तथा अपनी ज़बान और दिल से उसका आश्रय लेते हुए। दूसरा : अपने मुसलमान भाई के लिए भलाई को पसंद करना और उसके लिए दुआ करना। और यह एक मुसलमान के लिए अच्छा काम है, जिसपर उसे पुण्य मिलेगा। तथा उसके बारे में स्पष्टता के साथ बयान किया गया है कि वह दुआ क़बूल होती है, जैसा कि हदीस में स्पष्ट रूप से वर्णित है।”

“इकमालुल मो’लिम” (8/228) से उद्धरण समाप्त हुआ।

उक्त हदीस में इस विशेषता को इस चीज़ के साथ सशर्त किया गया है दुआ उस व्यक्ति की अनुपस्थिति में होनी चाहिए। लेकिन अगर मुसलमान ने अपने इस कार्य के बारे में सूचित कर दिया, तो क्या वह इस विशेषता और प्रतिफल को अमान्य कर देगाॽ

तो इस्लामी शरीयत का नियम यह है कि कार्यों का प्रतिफल कर्ता के उद्देश्यों और इरादो के अनुसार मिलता है, जैसा कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के इस फरमान में आया है : “सभी कार्यों का आधार नीयतों पर है और प्रत्येक व्यक्ति को वही कुछ मिलेगा, जिसकी उसने नीयत की।” इसे बुखारी (हदीस संख्या : 1) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 1907) ने रिवायत किया है।

जिसके लिए ग़ायबाना दुआ की है, उसे उसके लिए दुआ करने की सूचना देना

इसके आधार पर, भाई को दुआ के बारे में बताने के कई उद्देश्य हो सकते हैं :

यदि ऐसा करने से उसका उद्देश्य : उस व्यक्ति पर दया और उपकार को प्रकट करना है, जिसके लिए उसने दुआ की है, तो उपकार (एहसान) जताना एक बड़ा पाप है और यह उस कार्य को बर्बाद कर सकता है, जिसके द्वारा उसने अपने साथी पर एहसान जताया है।

शैख़ इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह ने कहा :

“इबादत समाप्त होने के बाद जो कुछ होता है, वह उसे कुछ भी प्रभावित नहीं करेगा, सिवाय इसके कि उसमें कोई आक्रामकता शामिल हो, जैसे कि किसी को दान देने के बाद एहसान जताना और दुख पहुँचाना। तो इस आक्रामकता का पाप, दान के प्रतिफल के बदले में होगा और वह उसे अमान्य कर देगा। क्योंकि अल्लाह तआला का फरमान है :

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لا تُبْطِلُوا صَدَقَاتِكُمْ بِالْمَنِّ وَالْأَذَى [سورة البقرة : 264]

“ऐ ईमान वालो! अपने सदक़ों को एहसान जताकर और दुख देकर नष्ट न करो।” (सूरतुल बक़रा : 264)

“अल-क़ौलुल मुफ़ीद” (2/162) से उद्धरण समाप्त हुआ।

तथा उसके बारे में सूचित करना अच्छे कामों में से भी हो सकता है, जिसपर सूचित करने वाले को अज्र व सवाब मिलेगा, जैसे कि वह किसी प्रश्न के जवाब में बताए कि वह ग़ायबाना दुआ करता है। तो उसका यह सूचित करना बातचीत में सत्यता अपनाने के अध्याय से होगा। या वह उस व्यक्ति के लिए अपने प्रेम को प्रकट करना चाहता है जिसके लिए उसने दुआ की है और उसके दिल को खुशी महसूस करवाना, तथा उनके बीच प्यार और स्नेह को बढ़ाना चाहता है, जैसा कि हदीस में आया है : “कहा गया : ऐ अल्लाह के रसूल! अल्लाह के निकट सबसे प्रिय व्यक्ति कौन हैॽ

आपने फरमाया : “जो लोगों को सबसे अधिक फायदा पहुँचाने वाला है। तथा अल्लाह के निकट सबसे प्यारा कार्य यह है कि आप किसी मोमिन पर ख़ुशी दाखिल कर दें … इसे इब्ने अबिद्-दुन्या ने “क़ज़ाउल ह़वाइज्र” (पृष्ठ 47) में रिवायत किया है, और शैख़ अलबानी ने इसे “अस-सिलसिला अस-सहीहा” (2/575) में हसन कहा है।

तथा इसी में से यह भी है जिसे ख़तीब अल-बग़दादी ने “तारीख बग़दाद” (4/325) में अपनी इस्नाद के साथ खत्ताब बिन बिश्र से रिवायत किया है कि उन्होंने कहा :

“मैं अबू अब्दुल्लाह अहमद बिन हंबल से सवाल करने लगा और वह मुझे जवाब देते और शाफ़ेई के बेटे की ओर मुड़ते और कहते : यह वही है जो अबू अब्दुल्लाह यानी शाफ़ेई ने हमें सिखाया है।

ख़त्ताब ने कहा : मैंने अबू अब्दुल्लाह अहमद बिन मुहम्मद बिन हंबल को अबू उसमान से उनके पिता के बारे में बात करते हुए सुना। अहमद ने कहा : अल्लाह अबू अब्दुल्लाह पर दया करे, मैं कभी कोई नमाज़ नहीं पढ़ता परंतु उसमें पाँच लोगों के लिए दुआ करता हूँ, वह उनमें से एक हैं।”

इस तरह के अच्छे उद्देश्यों के संबंध में कोई ऐसी चीज़ नहीं दिखाई देती है, जो इसे अस्वीकार करने का कारण हो। बल्कि ये अच्छे और नेक काम हैं, और ऐसा नहीं प्रत्यक्ष नहीं होता है कि ये ग़ायबाना दुआ के अज्र व सवाब को प्रभावित करेंगे, और न ही इस बात पर कोई प्रभाव पड़ेगा कि दुआ करने वाले के लिए (भी) उसी के समान होगा जो उसने अपने साथी के लिए दुआ की है।

लेकिन उसके लिए उस व्यक्ति से यह माँग करना उचित नहीं है कि वह भी उसके लिए उसी तरह की दुआ करे, या उसके लिए वैसे ही दुआ करे जिस तरह उसने उसकी अनुपस्थिति में उसके लिए दुआ की है। क्योंकि इसमें ऐसा प्रतीत होता है कि यह नेक काम पर दूसरे से बदला और पारिश्रमिक माँगना है।

दूसरा :

दूसरों से दुआ करने का अनुरोध करने के हुक्म के बारे में, प्रश्न संख्या : (163632) के उत्तर में विस्तार से चर्चा की जा चुकी है।

और अल्लाह ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

स्रोत

साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर

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