प्रार्थना (दुआ)
वह अपने मुस्लिम भाई के लिए उसकी अनुपस्थिति में दुआ करता है, फिर उसे उसके बारे में बताता है
अगर मैं उस व्यक्ति से, जिसके लिए मैं उसकी अनुपस्थिति में दुआ करता हूँ, यह बता दूँ कि मैं उसके लिए दुआ करता हूँ, तो क्या उससे अज्र व सवाब में कुछ कमी हो जाएगीॽ या उस व्यक्ति ने मुझसे पूछा कि क्या आप मेरे लिए दुआ करते हैं और मैंने हाँ कहा, तथा मैंने भी उससे इसी तरह दुआ करने के लिए कहा।टीवी पर नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और आपके दोनों साथियों की क़ब्रें देखने पर उनपर सलाम भेजने का हुक्म
क्या अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम तथा अबू बक्र और उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा पर सलाम भेजना सही (मान्य) है, यदि टीवी पर लाइव प्रसारण के दौरान कैमरा उनकी क़ब्रों पर आता हैॽअज़ान के अलावा अन्य स्थान पर 'वसीला' की दुआ करना
अज़ान के अलावा जगहों में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के लिए वसीला की दुआ करने का क्या हुक्म हैॽ क्योंकि मैं सज्दों में और यहाँ तक कि सफ़ा और मर्वा के पास दुआ में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के लिए वसीला की दुआ किया करता था। तथा क्या नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से प्रमाणित दुआओं के वाक्यों के क्रम को बदलना जायज़ हैॽशबे-क़द्र की दुआ में “करीम” शब्द की वृद्धि प्रमाणित नहीं है।
यह शैख़ अल्बानी रहिमहुल्लाह की “सहीह तिर्मिज़ी” से उद्धृत है : 3513 - हमसे क़ुतैबा ने बयान किया, उन्होंने कहा हमसे जाफर बिन सुलैमान ज़ुबई ने बयान किया, वह कहमस बिन हसन से रिवायत करते हैं, वह अब्दुल्लाह बिन बुरैदा से रिवायत करते हैं, वह आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायत करते हैं, वह कहती हैं कि : “मैंने कहा: ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम! आपकी क्या राय है यदि मुझे मालूम हो जाए कि कौन सी रात शबे-क़द्र है तो मैं उसमें क्या पढ़ूँॽ आपने फरमाया : “पढ़ो : अल्लाहुम्मा इन्नका अफुव्वुन करीमुन तुहिब्बुल-अ़फ्वा फा’फु अ़न्नी” (अर्थात : हे अल्लाह! तू बहुत क्षमावान एवं अति दयालु है, तू क्षमा करने को पसंद फरमाता है, अतः तू मुझे क्षमा कर दे।) इस हदीस पर शैख़ अल्बानी रहिमहुल्लाह ने सहीह का हुक्म लगाया है। (इब्ने माजा : 3850) फिर शैख़ रहिमहुल्लाह ने “सिलसिला सहीहा” में उल्लेख किया है कि (करीमुन) शब्द किसी प्रतिलिपिकार की ओर से वृद्धि की गई है। क्या सहीह तिर्मिज़ी में (करीमुन) शब्द की वृद्धि शैख़ रहिमहुल्लाह से छूट गई है। या कि यह उनके निकट सही है। यदि यह उनके निकट सिद्ध नहीं है, तो फिर सहीह तिर्मिज़ी में उन्होंने चेतावनी क्यों नहीं दी कि यह एक वृद्धि हैॽमुसलमान की दुआ उसकी वांछित मुराद के साथ या उसके अलावा के साथ स्वीकार की जाती है
क्या किसी व्यक्ति की अपनी धार्मिकता की बेहतरी के लिए दुआ इस दुनिया में निश्चित रूप से परिपूर्ण होती है, अगर वह अपनी दुआ में सच्चा है, जैसे कि वह अल्लाह से यक़ीन (विश्वास) का प्रश्न करेॽ तथा क्या उसकी अपनी आख़िरत की भलाई के लिए दुआ निश्चित रूप से स्वीकार की जाएगी, यदि वह अपनी दुआ में सच्चा है, जैसे कि वह अल्लाह से जन्नतुल-फ़िरदौस का प्रश्न करेॽज़िक्र और दुआ के दौरान आँखें बंद करने का हुक्म
क्या ज़िक्र और दुआ के दौरान दोनों आँखें बंद करना संभव है?क्या उसका अपने पिता के निधन पर अधिक शोक करना धैर्य के विपरीत हैॽ
मेरे पिता का 3 महीने पहले निधन हो गया, अल्लाह उनपर दया करे। मुझे उनकी बहुत याद आती है और मैं बहुत सारे उतार-चढ़ाव से ग्रस्त हूँ। कभी तो मुझे बहुत दुख होता है मानो कि वह अभी कल ही फौत हुए हों, और कभी तो मुझे जीवन में अरूचि का एहसास होता है, तथा कभी मैं शांत होती हूँ मुझे बिल्कुल किसी चीज़ का एहसास नहीं होता है... मैंने उचित मात्रा में शरई ज्ञान प्राप्त किया है तथा मैंने कई धार्मिक किताबें पढ़ी हैं और धार्मिक पाठों और व्याख्यानों में भाग लेती हूँ। मैं सब्र (धैर्य) का अर्थ और उसके प्रतिफल को जानती हूँ। मैं उनके लिए बहुत दुआएँ करती हूँ। अक्सर मैं अपने दिल में दोहराती रहती हूँ यहाँ तक कि सोने से पहले भी, कि ऐ मेरे रब! मैं तेरे फ़ैसले से संतुष्ट (राज़ी) हूँ और तू ही देने वाला और तू ही रोकने वाला है, और केवल तेरा ही आदेश चलता है। मेरे लिए क्षमा कर दे जो मैं जानती हूँ और जो मैं नहीं जानती। मैं अपने मामले के प्रति हैरत (भ्रम) का शिकार हूँ और मेरे दिमाग़ में यह बात आती है कि मैं मुनाफ़िक़ (पाखंडी) हूँ। यदि मैं धैर्यवान हूँ, तो मैं यह दर्द और गंभीर कष्ट कैसे महसूस करती हूँ... क्या मैं जो कुछ महसूस करती हूँ वह धैर्य की वास्तविकता के विरुद्ध है और यदि मैं ऐसी नहीं हूँ तो मैं संतुष्टि कैसे प्राप्त कर सकती हूँ .. .. मैंने अल्लाह के नाम “अस्सलाम” (हर दोष से पाक और हर कमी से मुक्त) का अर्थ पढ़ा है और मैंने इस नाम पर आधारित आयतों पर विचार किया और मैं इसके साथ अपने पिता के लिए दुआ करती हूँ, मैं कहती हूँ : “ऐ अल्लाह! तू सलाम (हर दोष से पाक और हर कमी से मुक्त) है, और तुझ ही से सलामती (सुरक्षा) है, ऐ महिमा और सम्मान वाले! तू बड़ी बरकत वाला और सर्वोच्च है। मैं तुझसे सवाल करती हूँ कि तू मेरे पिता को उनकी क़ब्र में सलामती प्रदान कर और उन्हें उस दिन सलामती प्रदान कर जब वह जीवित उठाए जाएँगे।” तो क्या मेरी यह दुआ सही हैॽकिसी ऐसी चीज़ के बारे में दुआ करना जिसका परिणाम पहले ही निर्धारित किया जा चुका है
किसी ऐसी चीज़ के बारे में दुआ करने का क्या हुक्म है जो (पहले ही) निर्धारित की जा चुकी है और उसका परिणाम संपन्न हो चुका हैॽ मेरे कहने का मतलब यह है कि अगर स्कूल किसी छात्र से संपर्क करता है और उससे कहता है : आओ और अपना परिणाम (रिज़ल्ट) प्राप्त करो। तो क्या उसके लिए रास्ते में इस तरह के शब्दों के साथ दुआ करना जायज़ है : ऐ मेरे पालनहार, परिणाम उच्च अंकों के साथ हो, या इसी के समान अन्य शब्द, जबकि परिणाम (रिज़ल्ट) मुद्रित किया जा चुका है और वितरण के लिए तैयार हैॽशरीयत ने हमें दुआ करने के लिए क्यों प्रोत्साहित किया है, जबकि हो सकता है कि अल्लाह सर्वशक्तिमान दुआ करने वाले की दुआ क़बूल न करेॽ
हदीस में किसी व्यक्ति को दुआ में यह कहने से मना किया गया है : “ऐ अल्लाह! यदि तू चाहे, तो मुझे क्षमा कर दे। ऐ अल्लाह! यदि तू चाहे, तो मुझपर दया कर दे।” क्योंकि कोई भी अल्लाह को मजबूर करने वाला नहीं है। अगर मामला ऐसा है, तो फिर इस्लामी शरीयत ने हमें दुआ करने के लिए क्यों आग्रह किया हैॽ दूसरे शब्दों में : जब अल्लाह हमें कभी जवाब ही नहीं देगा, तो हम दुआ क्यों करेंॽक्या बारिश होते समय दुआ करना मुस्तहब है? तथा बारिश होने और गरज सुनाई देने के समय क्या दुआ पढ़ी जाएगी?
प्रथम : बारिश होने और बिजली देखने और गरज के समय कौन सी दुआ है? दूसरा : वह कौन सी हदीस है जिससे यह पता चलता है कि बारिश होने के समय दुआ क़बूल होती है?क्या वह अपने सज्दे के दौरान ज़ईफ़ हदीस से दुआ कर सकता है..ॽ
मैं जानना चाहता हूँ कि क्या निम्न हदीस और दुआ सही हैंॽ अगर वे सही हैं, तो क्या मैं इस दुआ को सज्दे या तशह्हुद में पढ़ सकता हूँॽ यदि वे सही नहीं हैं, तो क्या तशह्हुद या सज्दे में इस दुआ को पढ़ना बिदअत के अंतर्गत आएगाॽ हदीस यह है : अबू उमामा रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्होंने कहा : अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने बहुत सारी दुआएँ कीं, लेकिन हमें उनमें से कुछ भी याद नहीं रहा। हमने कहा : ए अल्लाह के रसूल! आपने बहुत-सी दुआएँ कीं, लेकिन हम उनमें से कुछ भी याद नहीं रख सके। आपने कहा : “क्या मैं तुम्हें ऐसी चीज़ (दुआ) न बताऊँ, जिसमें वे सब (दुआएँ) समाविष्ट होंॽ तुम कहो : “अल्लाहुम्मा इन्नी अस-अलुका मिन् खैरि मा स-अलका मिन्हु नबिय्युका मुहम्मदुन सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम, व-अऊज़ो बिका मिन् शर्रे मस्तआज़ा मिन्हु नबिय्युका मुहम्मदुन सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम, व-अन्तल मुसतआनो, व-अलैकल बलाग़ो, व-ला हौला व-ला क़ुव्वता इल्ला बिल्लाह” (ऐ अल्लाह! मैं तुझसे वह भलाई माँगता हूँ जो तेरे पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने तुझसे माँगी है। तथा मैं उस बुराई से तेरी शरण चाहता हूँ जिससे तेरे पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने तेरी शरण मांगी। है। तू ही सहायक है, और तेरे ही ज़िम्मे (भलाई एवं बुराई का) पहुँचाना है, तथा अल्लाह की तौफ़ीक़ के बिना बुराई से बचने की शक्ति और भलाई करने का सामर्थ्य नहीं है।)” इसे तिर्मिज़ी ने रिवायत किया है।नमाज़ में दुआ के स्थान
नमाज़ में दुआ के स्थान क्या-क्या हैंॽजीविका और धन प्राप्त करने तथा क़र्ज़ चुकाने की दुआएँ
इन दिनों संयुक्त राज्य अमेरिका जिस बिगड़ती आर्थिक स्थिति से गुजर रहा है, उसके कारण मेरे पिता को काम में परेशानी हो रही है, और हमें पता नहीं कब तक वह अपनी इस नौकरी में रहेंगे। उन्होंने उन्हें छोड़ने की चेतावनी दी है.. और वह हमारे परिवार के लिए एकमात्र कमाने वाले हैं। मैं एक ऐसी दुआ सीखना चाहता हूँ जिसे मैं पढ़ूँ, तो हमारे मामलात आसान हो जाएँ और हमारे धन बढ़ जाएँ। मैंने इंटरनेट पर खोज की और मुझे एक दुआ मिली, लेकिन मुझे उसकी वैधता पर संदेह हुआ क्योंकि इसके लिए एक व्यक्ति को एक बैठक में 12,000 बार पढ़ने की आवश्यकता होती है। मुझे आशा है कि आप मेरी मदद करेंगे। अल्लाह आपको अच्छा प्रतिफल दे।ज़ईफ हदीस में वर्णित शब्दों के साथ दुआ करने का हुक्म
अगर किसी ज़ईफ़ (कमज़ोर) या मौज़ू (मनगढ़ंत) हदीस में कोई दुआ वर्णित है जिसके शब्दों के संबंध में कोई शरई निषेध नहीं है, तो क्या उसके साथ दुआ करना जायज़ हैॽ उसके शब्दों के उपयोग को इबादत का कार्य समझने के तौर पर नहीं, बल्कि उसके शब्दों से लाभान्वित होने के तौर पर।उसने एक मुसलमान पर नरक में जाने की बद्-दुआ की, तो क्या उसके लिए तौबा हैॽ
यदि एक मुसलमान दूसरे मुसलमान पर यह बद्-दुआ करता है कि वह जहन्नम में जाए, तो क्या उसके लिए तौबा हैॽ क्या यह संभव है कि वह व्यक्ति - जिसने यह बद्-दुआ की है - जन्नत में दाखिल होॽ यह देखते हुए कि दुआ उसपर लौट आती है, क्या वह जहन्नम में जाएगाॽवह ईसाई महिला डॉक्टर से बात करते हुए उसके लिए दुआ करती है
मुझे पुरुष डॉक्टर के पास जाना पसंद नहीं है। मैं महिला डॉक्टर को पसंद करती हूँ। एकमात्र कुशल महिला चिकित्सक जिसे मैं जानती हूँ वह एक ईसाई है। उसके मेरे साथ किए गए व्यवहार से मुझे सहज महसूस हुआ, और हमारे बीच बातचीत शुरू हो गई। जब मैं किसी से बात करती हूँ, तो मैं हमेशा उसके लिए यह कहते हुए दुआ करती हूँ : "हमारा पालनहार आपको सम्मान प्रदान करे, हमारा रब आपको इज़्ज़त दे, हमारा रब आपको आशीर्वाद दे।” क्या मेरी यह दुआ सही है या नहींॽवुज़ू के दौरान नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की प्रतिष्ठा के माध्यम से दुआ मांगना
करता हूँ कि वह नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के गौरव व प्रतिष्ठा से मेरे पाँव को (पुल) सिरात पर जमा दे। इसी तरह नमाज़ में उदाहरण के तौर पर मैं दुआ करता हूँ : रब्बिग-फिर ली वर्-हमनी व सामेहनी बि-जाहि नबिय्यिका अलैहिस्सलातो वस्सलाम’’ (मेरे पालनहार, अपने नबी की प्रतिष्ठा से मुझे क्षमा कर दे, मुझ पर दया कर और मुझे माफ़ कर दे)। तो क्या इस तरह की दुआ करना जायज़ है या नहीं? ज्ञात रहे कि इस तरीक़े से दुआ करने की मेरी आदत बन गई है, क्योंकि मैं यह आस्था रखता हूँ कि अल्लाह सर्व शक्तिमान अपने प्यारे पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के वसीला से मांगने वाले की दुआ को अस्वीकार नहीं करेगा। हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है। अल्लाह तआला से यह दुआ करना कि वह अपने बंदे के पैर को सिरात पर स्थिर रखे, एक अच्छी दुआ है, उसमें कोई आपत्ति की बात नहीं है। हम अल्लाह तआला से दुआ करते हैं कि वह हम सभी के पाँवों को स्थिर कर दे।संतान पर बद्दुआ (अभिशाप) करने का हुक्म
क्या पिता की अपने बेटे पर बद्दुआ (श्राप) स्वीकार की जाएगी जबकि पिता गल्ती पर है और बच्चा सही हैॽजुमा के दिन दुआ की स्वीकृति की घड़ी का निर्धारण
मैंने सुना है कि जुमा (शुक्रवार) के ख़ुत्बा के दौरान दुआ क़बूल की जाती है। क्योंकि उसमें दुआ के क़बूल होने की एक निश्चित (विशिष्ट) घड़ी है, जो इस दुआ से मेल खा सकती है... लेकिन हमारे लिए ख़तीब की बात सुनने के लिए खामोश रहना और ख़ुत्बे पर ध्यान देना ज़रूरी है। तो हम यह कैसे करेॽ कृपया उत्तर देंॽ मैं अल्लाह से प्रार्थना करता हूँ कि आपको शक्ति प्रदान करे।क्या अरफा के दिन हाजी के अलावा दूसरे लोगों के लिए भी दुआ करने की फज़ीलत है?
क्या अरफा के दिन हाजी के अलावा अन्य लोगों की भी दुआ क़बूल होती है?