महामारी फैलने या उसके फैलने की आशंका की स्थिति में जुमा (जुमुआ) और जमाअत की नमाज़ में उपस्थित न होने के बारे में रुख़्सत (छूट) का क्या हुक्म हैॽ
महामारी फैलने या उसके फैलने की आशंका की स्थिति में जुमा और जमाअत की नमाज़ में उपस्थित होने का हुक्म
Question: 333514
Praise be to Allah, and peace and blessings be upon the Messenger of Allah and his family.
सऊदी अरब राज्य में वरिष्ठ विद्वानों की परिषद ने दिनांक 16/7/1441 हिजरी को अपना निर्णय संख्या (246) जारी किया, जिसका मूलपाठ निम्नलिखित है :
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान सर्व संसार के पालनहार अल्लाह के लिए है, तथा अल्लाह की दया और शांति अवतरित हो हमारे पैगंबर मुहम्मद और उनके परिवार और साथियों पर। इसके बाद :
वरिष्ठ विद्वानों की परिषद ने बुधवार, 16/7/1441 हिजरी को रियाद में आयोजित अपने चौबीसवें विशेष सत्र में, महामारी फैलने या उसके फैलने की आशंका की स्थिति में जुमा और जमाअत की नमाज़ में उपस्थित न होने की रुख़्सत से संबंधित प्रस्तुत किए गए मुद्दे के बारे में विचार किया। इस्लामी शरीयत के मूलपाठों, उसके उद्देश्यों और नियमों तथा इस मामले के बारे में विद्वानों के वक्तव्यों के अन्वेषण और गहन अध्ययन के बाद, वरिष्ठ विद्वानों की परिषद निम्नलिखित बातों को स्पष्ट करती है :
सर्व प्रथम :
संक्रमित व्यक्ति पर जुमा और जमाअत की नमाज़ में उपस्थित होना हराम (निषिद्ध) है। इसका प्रमाण नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का यह फरमान है : “बीमारी से पीड़ित को स्वस्थ के पास न लाया जाए।” (सहीह बुखारी व सहीह मुस्लिम)
तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का यह कथन : “जब तुम किसी भूमि में ताऊन (प्लेग) के प्रकोप के बारे में सुनो, तो उसमें प्रवेश न करो। लेकिन जब यह महामारी किसी भूमि में फैल जाए और तुम उसी स्थान पर हो, तो वहाँ से बाहर न निकलो।” (सहीह बुखारी व सहीह मुस्लिम)
दूसरी बात :
जिस व्यक्ति के बारे में संबंधित अधिकारियों ने संगरोध या एकांत (अलगाव) में रखे जाने का फैसला किया है, उसके लिए उसका पालन करना तथा जुमा और जमाअत की नमाज़ में उपस्थित न होना अनिवार्य है। वह नमाज़ों को अपने घर में या अपने अलगाव के स्थान पर पढ़ेगा। इसका प्रमाण शरीद बिन सुवैद अस-सक़फ़ी रज़ियल्लाहु अन्हु की यह हदीस है, वह कहते हैं : सक़ीफ़ के प्रतिनिधिमंडल में एक कुष्ठ रोग से पीड़ित व्यक्ति था। तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उसके पास यह संदेश भेजवाया : “तुम वापस लौट जाओ, हम तुमसे बैअत (निष्ठा की प्रतिज्ञा) कर चुके।” इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है।
तीसरा :
जिस व्यक्ति को यह डर हो कि उसे कोई नुक़सान पहुँच सकता है या वह दूसरों को नुक़सान पहुँचा सकता है, तो उसके लिए जुमा और जमाअत की नमाज़ में उपस्थित न होने की रुख्सत (रियायत) है। क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : “किसी को नुक़सान पुहँचाना या (प्रतिशोध में) एक दूसरे को नुक़सान पहुँचाना जायज़ नहीं है।” इसे इब्ने माजा ने रिवायत किया है।
उपर्युक्त सभी मामलों में, यदि वह जुमा की नमाज़ में उपस्थित नहीं होता है, तो वह उसके बजाय चार रकअत ज़ुहर की नमाज़ अदा करेगा।
वरिष्ठ विद्वानों की परिषद, सभी लोगों को संबंधित प्राधिकारियों द्वारा जारी किए गए निर्देशों, विनियमों और दिशा-निर्देशों का पालन करने की सिफारिश करती है। तथा वह सभी को अल्लाह सर्वशक्तिमान से डरने, उस महिमावान की शरण लेने और उसके समक्ष विलापकर इस आपदा को टालने के लिए दुआ करने की सलाह देती है। अल्लाह तआला का फरमान है :
وَإِنْ يَمْسَسْكَ اللَّـهُ بِضُرٍّ فَلَا كَاشِفَ لَهُ إِلَّا هُوَ ۖ وَإِنْ يُرِدْكَ بِخَيْرٍ فَلَا رَادَّ لِفَضْلِهِ ۚ يُصِيبُ بِهِ مَنْ يَشَاءُ مِنْ عِبَادِهِ ۚ وَهُوَ الْغَفُورُ الرَّحِيمُ
سورة يونس : 107
“यदि अल्लाह तुम्हें किसी तकलीफ़ में डाल दे तो उसके सिवा कोई उसे दूर करनेवाला नहीं। और यदि वह तुम्हें कोई भलाई पहुँचाना चाहे, तो कोई उसके अनुग्रह को रोकने वाला नहीं। वह अपने बंदों में से जिसे चाहता अपना अनुग्रह प्रदान करता है, और वह अत्यंत क्षमाशील, दयावान है।" (सूरत यूनुस : 107)
तथा अल्लाह महिमावान का फरमान है :
وقال ربكم ادعوني أستجب لكم
غافر:60
‘‘और तुम्हारे पालनहार ने कह दिया है कि मुझे पुकारो, मैं तुम्हारी दुआ स्वीकार करूँगा।'' (सूरत ग़ाफिर : 60)
अल्लाह हमारे नबी मुहम्मद और उनके परिवार और साथियों पर दया और शांति अवतरित करे।
निम्नलिखित लिंक से समाप्त हुआ :
https://www.spa.gov.sa/2047028
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक जानता है
Source:
साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर