मेरे पति ने कभी ज़कात नहीं दी। उन्होंने 2009 में काम करना शुरू किया और उनका वेतन 2,500 से 3,000 के बीच था। वह अपना वेतन बैंक में रखते थे और प्रत्येक अवधि उसी से फ्लैट की तैयारी पर खर्च करते थे। चुनाँचे उन्हें उस राशि की मात्रा की जानकारी नहीं थी जिसपर साल गुज़रना होता है, और क्या वह निसाब [ज़कात के अनिवार्य होने की न्यूनतम सीमा] तक पहुँचा था या नहींॽ लेकिन उसके बाद, हमने शादी करने के बाद, 2019 के रमज़ान के महीने में ज़कात का भुगतान किया। क्योंकि वर्ष 2018 के रमज़ान से हमारे पास एक राशि एकत्र हो गई थी। हमें पिछले वर्षों के बारे में क्या करना चाहिए और हम उसकी गणना कैसे करेंॽ खासकर जब उन्हें अपनी रक़म के बारे में कुछ भी याद नहीं है, और वह कब निसाब तक पहुँची, और वह उससे किस तरह खर्च करते थे और कबॽ लेकिन मुझे इतना पता है कि लगभग शादी के समय, रमज़ान 2017 के आसपास, उनके पास लगभग 80,000 थे। मैं सटीक राशि के बारे में सुनिश्चित नहीं हूँ, लेकिन वह इसी आंकड़े के आसपास थी। अतः मैं आशा करती हूँ कि आप हमें इस बात से अवगत कराएँगे कि छूटे हुए वर्षों की ज़कात निकालने के संबंध में हमें क्या करना चाहिए। क्या उसे अंतराल पर निकालने की अनुमति हैॽ ध्यान रहे कि 2017 के अंत में वेतन में वृद्धि हुई थी। तथा क्या ज़कात बैंक में जमा की गई मूल राशि पर होगी या ब्याज सहित कुल राशि पर होगीॽ
उसने दस वर्षों से जकात नहीं दी है और इन वर्षों में धन की मात्रा से अनभिज्ञ है
प्रश्न: 337528
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सर्व प्रथम : कागजी धन (पेपर मनी) के निसाब का अनुमान
कागज़ी धन या कागज के पैसे में निसाब का अनुमान, सोने और चाँदी के निसाबों में से सबसे कम के साथ लगाया जाएगा।
चाँदी का निसाब 595 ग्राम और सोने का निसाब 85 ग्राम है।
मुस्लिम वर्ल्ड लीग की फ़िक़्ह काउंसिल द्वारा जारी निर्णय और सऊदी अरब की वरिष्ठ विद्वानों की परिषद द्वारा जारी निर्णय में इसी बात का उल्लेख किया गया है। इसी तरह इफ़्ता की स्थायी समिति तथा शैख़ इब्ने बाज़ रहिमहुल्लाह और अन्य लोगों ने इसी को पसंद किया है।
तथा प्रश्न संख्या : (2795 ) और प्रश्न
अतः जो व्यक्ति निसाब का मालिक है, उसपर ज़कात अनिवार्य है, चाहे उसने उसे अपार्टमेंट तैयार करने के लिए, या शादी करने, या हज्ज करने या किसी अन्य काम के लिए बचाकर रखा हो।
दूसरा : सूदी बैंक में रखे गए धन में ज़कात केवल मूल राशि पर है
यदि धन को रिबा-आधारित (सूदी) बैंक में रखा गया है, तो ज़कात केवल उसकी मूल राशि पर है। ब्याज पर कोई ज़कात नहीं है। क्योंकि वह एक दूषित (भ्रष्ट) और निषिद्ध धन है। और अल्लाह पवित्र (अच्छा) है और केवल वही स्वीकार करता है जो पवित्र (अच्छा) हो। उसके लिए अनिवार्य यह है कि ब्याज-आधारित बैंक से पैसे निकाल ले, या उसे चालू खाते में डाल दे।
जहाँ तक प्राप्त ब्याज का संबंध है : तो यह मूल रूप से पैसे के मालिक के स्वामित्व में नहीं आएगा, और उसे इससे छुटकारा हासिल करना चाहिए।
तीसरा : ज़कात छोड़ देना और उसका भुगतान न करना, समय बीतने से समाप्त नहीं होता
जिस व्यक्ति ने कई वर्षों तक ज़कात नहीं नकाली, उसके लिए अभी भी उसे निकलाना अनिवार्य है। समय बीतने से ज़कात समाप्त (माफ़) नहीं होती है।
शैख मुहम्मद बिन सालेह अल-उसैमीन रहिमहुल्लाह से पूछा गया : “एक व्यक्ति ने चार साल से ज़कात नहीं निकाली है। अब उसे क्या करना चाहिएॽ
तो उन्होंने उत्तर दिया : यह व्यक्ति ज़कात में देरी करने के कारण गुनाहगार है। क्योंकि आदमी को ज़कात के अनिवार्य होते ही उसका भुगतान करना चाहिए, और उसे विलंबित नहीं करना चाहिए। इसलिए कि कर्तव्यों (अनिवार्य चीज़ों) के बारे में मूल सिद्धांत यह है कि उन्हें तुरंत अंजाम देना ज़रूरी है। इस व्यक्ति को इस पाप के लिए सर्वशक्तिमान अल्लाह से पश्चाताप करना चाहिए, तथा उसे पिछले सभी वर्षों की ज़कात देने में जल्दी करनी चाहिए। उस ज़कात में से कुछ भी समाप्त (माफ़) नहीं होगा। बल्कि उसे चाहिए कि तौबा करे और ज़कात निकालने में जल्दी करे ताकि वह और देरी करने से और अधिक गुनाहगार न हो।”
“मजमूओ फतावा अश-शैख इब्ने उसैमीन” (18/295) से उद्धरण समाप्त हुआ।
चौथा :
आपके पति को चाहिए कि यह जानने का प्रयास करें कि उनके पास हर साल कितना पैसा होता था। अगर वह निसाब तक पहुँचता है, तो उन्हें उसकी ज़कात अदा करनी चाहिए। यदि वह धन की मात्रा के बारे में सुनिश्चित नहीं हैं, तो उन्हें सावधानी (एहतियात) का पहलू अपनाना चाहिए। वह बैंक में जाकर अपने खाते का विवरण निकलवा सकते हैं और फिर यदि कोई ब्याज है, तो उसकी कटौती करके, हर साल की शेष राशि का पता लगा सकते हैं।
पाँचवाँ :
ज़कात को तुरंत निकालना अनिवार्य है। तथा उसे अंतराल पर (अर्थात् कई बार में) निकालने की अनुमति नहीं है, सिवाय इसके कि कोई उज़्र (वैध बहाना) पाया जाता हो, जैसे कि नकदी उपलब्ध नहीं है। ऐसी स्थिति में उसके उपलब्ध होने तक इंतज़ार कर सकता है।
छठा:
उसे इतनी अवधि तक ज़कात न देने के लिए अल्लाह सर्वशक्तिमान से पश्चाताप (तौबा) करना चाहिए।
और अल्लाह ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।
स्रोत:
साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर
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