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जिस व्यक्ति ने प्यास के कारण और विनाश या हानि के डर से रोज़ा तोड़ दिया, क्या उसके लिए खाने की अनुमति हैॽ

प्रश्न: 338146

जिस व्यक्ति ने प्यास के कारण रोज़ा तोड़ दिया, क्या उसके लिए उस दिन में खाना खाने की अनुमति है जिसमें उसने पानी पिया हैॽ

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

जिस व्यक्ति ने अत्यधिक प्यास के कारण अपना रोज़ा तोड़ दिया, क्योंकि उसे डर है कि वह मर जाएगा या उसे गंभीर नुकसान होगा, या वह कष्ट की गंभीरता के कारण रोज़ा पूरा करने में सक्षम नहीं है, तो उसके लिए दिन के शेष भाग में खाने पीने से रुकना अनिवार्य है। उसके लिए जायज़ नहीं है कि वह खाए या पीता रहे। बल्कि वह उतना ही पिएगा, जो नुकसान को दूर कर दे, फिर वह सूर्यास्त तक खाने-पीने से रुका रहेगा। फिर बाद में वह उस दिन की क़ज़ा करेगा।

उन्होंने "कश्शाफ अल-क़िनाअ" (2/310) में कहा : “और अबू बक्र अल-आजुर्री ने कहा : जिस व्यक्ति का काम कठिन है; यदि उसे रोज़े के कारण विनाश का डर है, तो वह रोज़ा तोड़ देगा और क़ज़ा करेगा, यदि काम को छोड़ने से उसे हानि पहुँचती है। लेकिन यदि उसे काम छोड़ देने से नुक़सान नहीं पहुँचता है, तो रोज़ा तोड़ देने से वह गुनाहगार होगा, और उसे वह काम छोड़ देना चाहिए। अन्यथा नहीं, अर्थात् : यदि उस काम के छोड़ने से उसका नुक़सान उठाना बना रहता है, तो ऐसी स्थिति में रोज़ा तोड़ने से उसपर कोई पाप नहीं है; क्योंकि उसके पास वेध उज़्र है।” उद्धरण समाप्त हुआ।

तथा “फतावा अल-लज्नह अद्-दाईमह” (10/233) में आया है : "मुकल्लफ़ व्यक्ति के लिए रमज़ान में दिन के दौरान केवल इस कारण अपना रोज़ा तोड़ना जायज़ नहीं है कि वह एक मज़दूर है। लेकिन यदि उसे भारी कष्ट पहुँचे, जो उसे दिन के दौरान रोज़ा तोड़ने के लिए मजबूर कर दे, तो वह ऐसी चीज़ के साथ रोज़ा तोड़ देगा, जो उसके कष्ट को दूर कर दे। फिर वह सूर्यास्त तक खाने-पीने से रुका रहेगा और लोगों के साथ इफ़तार करेगा, तथा उस दिन की कज़ा करेगा जिस दिन उसने रोज़ा तोड़ दिया है।‘’

शैख इब्ने बाज़ रहिमहुल्लाह से पूछा गया : “कुछ लोग किसी चीज के कारण रोज़ा तोड़ देते हैं; जैसे उदाहरण के लिए बहुत प्यासा होने की वजह से। फिर जब वह रोज़ा तोड़ देता है, तो वह अपना रोज़ा तोड़ना जारी रखता है। चुनाँचे वह खाता और पीता है, तथा खाई जाने वाली चीज़ों को अनुमेय समझता है। तो ऐसी स्थिति में क्या अनिवार्य हैॽ

उत्तर : ऐसा करना उसके लिए जायज़ नहीं है। बल्कि वह रोज़े को उतना ही तोड़ेगा, जितना उसे ज़रूरत है। वह पानी पिएगा, फिर (पीने से) रुक जाएगा,  अगर यह प्यास के कारण था। यदि उसने भूख के कारण रोज़ा तोड़ा है, तो वह इतना खाएगा, जो उसकी जान बचाने के लिए पर्याप्त हो। फिर वह सूर्यास्त तक (खाने से) रुका रहेगा। वह रोज़ा तोड़ने को जारी नहीं रखेगा। उसने केवल ज़रूरत की वजह से खाया और पिया है, फिर वह अपना रोज़ा जारी रखेगा। इसी तरह यदि कोई इनसान किसी व्यक्ति को डूबने या दुश्मन से बचाना चाहता है, और वह रोज़ा तोड़े बिना ऐसा नहीं कर सकता, तो वह रोज़ा तोड़ देगा और अपने भाई की जान बचाएगा। फिर वह सूरज डूबने तक खाने-पीने से रुका रहेगा। फिर बाद में वह केवल उस दिन की क़ज़ा करेगा। क्योंकि उसने ज़रूरत के कारण अपना रोज़ा तोड़ा है। इसलिए कि अपने निर्दोष भाई की जान बचाना अनिवार्य है।”

“फतावा नूरुन अलद्-दर्ब” (16/164) से उद्धरण समाप्त हुआ।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।  

स्रोत

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