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जमरात को कंकड़ी मारते समय होने वाली गलतियाँ

प्रश्न: 34420

जमरात को कंकड़ी मारने के दौरान कुछ हाजियों से होने वाली गलतियाँ क्या हैं?

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से प्रमाणित है कि आप ने क़ुर्बानी के दिन चाश्त के समय जमरतुल अक़बा को जो अल-जमरतुल क़ुसवा है जो कि मक्का के क़रीब है सात कंकड़ियाँ मारीं, आप प्रत्येक कंकड़ी के साथ अल्लाहु अकबर कहते थे, वह कंकड़ी चने से कुछ बड़ी थी। 

इब्ने माजा (हदीस संख्या : 3029) ने इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा से रिवायत किया है कि उन्होंने कहाः अक़बा की सुबह अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने जबकि आप अपनी सवारी पर खड़े हुए थे मुझसे कहाः “मेरे लिए कंकड़ियाँ चुन कर लाओ।” वह कहते हैः तो मैं आपके लिए कंकड़ियाँ चुन कर लाया जो खज़फ की कंकड़ियाँ थीं। तो आप ने उन्हें अपने हाथ में रख लिया और फरमायाः “इन्हीं के समान कंकड़ियों के द्वारा कंकड़ी मारो . . ., और अतिशयोक्ति करने से बचो। क्योंकि तुमसे पहले के लोग धर्म में अतिश्योक्ति करने के कारण नष्ट हो गए।” अल्बानी ने सहीह इब्ने माजा (हदीस संख्या : 2455) में इसे सही करार दिया है।

अहमद और अबू दाऊद ने आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायत किया है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः “अल्लाह के घर काबा का तवाफ, सफा व मर्वा का चक्कर लगाना और जमरात को कंकड़ी मारना अल्लाह तआला के स्मरण (याद) को स्थापित करने के लिए निर्धारित किया गया है।” जमरात को कंकड़ी मारने की यही हिकमत (तत्वदर्शिता) है।

जमरात को कंकड़ी मारने में कुछ हाजियों से होना वाली गलतियाँ कई रूप से होती हैं :

पहली :

कुछ लोग यह समझते हैं कि कंकड़ी मारना उसी समय सही होता है जब कंकड़ियाँ मुज़दलिफा से चुनी गई हों। इसीलिए आप उन्हें पाएंगे कि वे मिना जाने से पहले, मुज़दलिफा से कंकड़ियाँ चुनने में बहुत कष्ट उठाते हैं। यह एक गलत धारणा है। क्योंकि कंकड़ियाँ कहीं से भी ली जा सकती हैं, मुज़दलिफ़ा से, मिना से, किसी भी स्थान से ली जाएं, मतलब यह है कि वह कंकड़ी होनी चाहिए।

नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के बारे में यह कहीं भी वर्णित नहीं है कि आप ने मुज़दलिफा से कंकड़िया चुनी हैं कि हम यह कहें किः यह सुन्नत है। अतः यह सुनन्त अथवा वाजिब (अनिवार्य) नहीं है कि मनुष्य मिना से कंकड़ी चुने; क्योंकि सुन्नत तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का कथन या आपका कर्म या आपका इक़रार (स्वीकृति) होता है। और मुज़दलिफा से कंकड़ी उठाने में ये सब चीज़ें नहीं पाई जाती हैं।

दूसरी:

कुछ लोग जब कंकड़ी चुनते हैं, तो उसे धोते हैं, या तो इस डर के कारण सावधानी अपनाते हुए कि किसी ने उसपर पेशाब न किया हो, और या तो उन कंकड़ियों को साफ करने के लिए; यह समझते हुए कि उसका साफ व स्वच्छ होना बेहतर है। बहरहाल, जमरात की कंकड़ियों को धोना एक बिदअत है। क्योंकि अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने ऐसा नहीं किया है। और किसी ऐसी चीज़ के द्वारा उपासना करना जिसे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने नहीं किया है एक बिदअत (विधर्म) है। यदि आदमी उसे उपासना के इरादे के बिना ही करता है तो यह मूर्खता और समय की बर्बादी है।

तीसरी:

कुछ लोग यह समझते हैं कि ये जमरात शैतान हैं, और वे (वास्तव में) शैतानों को कंकड़ी मार रहे हैं। चुनांचे आप उन में से किसी को पाएंगे कि वह बहुत हिंसा और क्रोध के साथ और अति भावुक होकर आता है, मानो कि शैतान उसके सामने खड़ा है, फिर वह इन जमरात को कंकड़ी मारता है। इससे महान खराबियाँ उत्पन्न होती हैं :

1- यह एक गलत धारणा है, क्योंकि हम इन जमरात को अल्लाह सर्वशक्तिमान की याद को क़ायम करने के लिए और अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का अनुसरण करते हुए और उपासना करने के लिए कंकड़ी मारते हैं। क्योंकि अगर मनुष्य कोई आज्ञाकारिता का काम करे और वह उसका लाभ न जानता हो, बल्कि वह उसे मात्र अल्लाह की उपासना करने के लिए करे, तो यह उसके अल्लाह सर्वशक्तिमान के प्रति पूर्ण विनम्रता और आज्ञापालन का अधिक संकेतक होगा।

2. आदमी गहन भावना, क्रोध, गुस्सा, शक्ति और आवेग के साथ आता है, चुनांचे आप उसे पाएंगे कि वह लोगों को काफी नुकसान पहुंचाता है, यहाँ तक कि ऐसा लगता है कि लोग उसके सामने कीड़े मकोड़े की तरह हैं जिनकी वह परवाह नहीं करता है और न तो उनमें से कमज़ोर को देखता है, बल्कि वह एक उत्तेजित (उग्र) ऊंट की तरह आगे बढ़ता है।

3. आदमी को यह याद नहीं रहता है कि वह अल्लाह सर्वशक्तिमान की इबादत कर रहा है अथवा इस कंकड़ी मारने के द्वारा वह अल्लाह सर्वशक्तिमान की उपासना कर रहा है। इसीलिए वह धर्मसंगत ज़िक्र से उपेक्षा कर अवैध ज़िक्र कहने लगता है। चुनाँचे आप पाएंगे कि वह कंकड़ी मारते हुए कहता हैः अल्लाहुम्मा गज़बन अलश्शैतान व रिज़न लिर्रहमान (अर्थात ऐ अल्लाह शैतान पर गुस्सा होते हुए और रहमान की प्रसन्नता के लिए कंकड़ी मार रहा हूँ)। हालांकि जमरह को कंकड़ी मारते समय ऐसा कहना धर्मसंगत नहीं है, बल्कि धर्मसंगत यह है कि वह उसी तरह तक्बीर कहे जैसे कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने किया।

4- इस भ्रष्ट धारणा के आधार पर आप उसे पांएगे कि वह बड़े–बड़े पत्थर लेकर जमरात को मारता है, क्योंकि उसका गुमान यह होता है कि जितना ही बड़ा पत्थर होगा, उतना ही अधिक शैतान पर प्रभाव और उससे सख्त बदला होगा। आप उसे पाएंगे कि वह चप्पल, लकड़ी और इसी तरह की चीज़ों से मारता है जिनके द्वारा जमरात को मारना वैध नहीं है।

तो : जब हमने यह कहा कि : यह विश्वास भ्रष्ट है, तो हमें जमरात को कंकड़ी मारने में क्या विश्वास रखना चाहिएॽ हम जमरात को कंकड़ी मारने में यह विश्वास रखेंगे कि हम अल्लाह सर्वशक्तिमान के सम्मान में, उसकी आराधना करते हुए और अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सुन्नत का पालन करते हुए जमरात को कंकड़ी मारते हैं।

चौथी:

कुछ लोग लापरवाही करते हैं और इस पर ध्यान नहीं देते कि कंकड़ी लक्ष्य (जमरात के हौज़ यानी गड्ढे) में गिरी है या नहींॽ

अगर कंकड़ी हौज़ में नहीं गिरी है, तो कंकड़ी मारना सही नहीं है। इतना पर्याप्त है कि उसे प्रबल गुमान हो जाए कि कंकड़ी हौज़ में गिरी है, उसके लिए निश्चितता की शर्त नहीं है, क्योंकि इस मामले में निश्चितता संभव नहीं हो सकती, और जब निश्चितता दुर्लभ हो जाए तो सबसे अधिक संभावना पर अमल किया जाएगा। क्योंकि शरीअत ने मनुष्य को प्रबल गुमान की ओर लौटाया है यदि उसे अपनी नमाज़ में संदेह हो जाएः कि उसने कितनी नमाज़ पढ़ी है, तीन रकअत या चारॽ पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायः ''उसे चाहिए कि वह सही बात को तलाश करे फिर उसी पर पूरा करे।'' इसे अबू दाऊद (हदीस संख्या : 1020) ने रिवायत किया है।

इससे पता चलता है कि उपासना के मामलों में गुमान की प्रबलता पर्याप्त है, और यह अल्लाह सर्वशक्तिमान की ओर से आसानी (सुविधा) है, क्योंकि कभी कभी यक़ीन (निश्चितता) दुर्लभ हो जाता है।

जब कंकड़ी हौज़ में गिर जाए, तो उससे ज़िम्मेदारी समाप्त हो जाती (कर्तव्य पूरा हो जाता) है, चाहे वह हौज़ में स्थिर रहे या उससे लुढ़क कर बाहर चली जाए।

पांचवी:

कुछ लोग यह समझते हैं कि कंकड़ी का हौज़ में उपस्थित स्तंभ को लगना ज़रूरी है, यह एक गलत सोच (धारणा) है। क्योंकि कंकड़ी मारने के सही होने के लिए यह आवश्यक नहीं है कि कंकड़ी उस स्तंभ को लगे। क्यंकि यह स्तंभ उस लक्ष्य के लिए एक निशान (चिह्न) के रूप में निर्धारित किया गया है जिसमें कंकड़ी गिरती है। अगर कंकड़ी हौज़ में गिर गई तो यह पर्याप्त है चाहे वह स्तंभ को लगे या न लगे।

छठी:

यह बड़ी गंभीर गलतियों में से है कि कुछ लोग कंकड़ी मारने में लापरवाही करते हैं। चुनांचे वह किसी को अपनी ओर से कंकड़ी मारने के लिए प्रतिनिधि बना देता है जबकि वह स्वयं उसमें सक्षम होता है। यह एक बड़ी गलती है, क्योंकि कंकड़ी मारना हज्ज के अनुष्ठानों और उसके कार्यों में से है। और अल्लाह सर्वशक्तिमान का कथन है :

( وأتموا الحج والعمرة لله ) [البقرة: 196]

''और अल्लाह के लिए हज्ज और उम्रा को पूरा करो।'' (सूरतुल बक़राः 196)

और इसमें हज्ज को उसके सभी अनुष्ठानों के साथ पूरा करना शामिल है; अतः एक व्यक्ति को इसे स्वयं करना चाहिए, इसमें किसी अन्य को प्रतिनिधि नहीं बनाना चाहिए।

कुछ लोग कहते हैं : भीड़ बहुत है, और यह मेरे लिए कठिन है। तो हम उससे कहते हैं : यदि पहले पहल जब लोग मुज़दलिफ़ा से मिना के लिए आते हैं तो भीड़ बहुत होती है, तो दिन के अंतिम भाग में भीड़ अधिक नहीं होगी, इसी तरह रात में भीड़ अधिक नहीं होगी। यदि आप से दिन में कंकड़ी मारना छूट जाए तो आप रात के समय कंकड़ी मार लें, क्योंकि रात (भी) कंकड़ी मारने का समय है, अगरचे दिन बेहतर है। लेकिन आदमी रात के समय स्थिरता, शांति और विनम्रता के साथ कंकड़ी मारने कि लिए जाए यह दिन के समय इस स्थिति में आने की तुलना में बेहतर है कि वह भीड़, तंगी और कठिनाई के कारण मृत्यु से जूझ रहा हो, और संभव है कि वह कंकड़ी मारे और कंकड़ी लक्ष्य (हौज़) में न गिरे। महत्वपूर्ण यह है कि जो व्यक्ति भीड़ को बहाना बनाता है उससे हम कहेंगे किः अल्लाह ने मामले में विस्तार रखा है। अतः आप रात में कंकड़ी मार सकते हैं।

इसी तरह महिला भी अगर वह लोगों के साथ कंकड़ी मारने में किसी चीज़ से डरती है, तो उसे रात तक कंकड़ी मारने को विलंब कर देना चाहिए। इसीलिए नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपने परिवार में से कमज़ोरों – जैसे सौदा बिन्त ज़मअह और उनके समान पत्नियों – को यह रुख्सत (छूट) नहीं प्रदान की वे कंकड़ी मारना छोड़ दें और अपनी ओर से कंकड़ी मारने के लिए किसी को प्रतिनिधि बना दें – यदि ऐसा करना जायज़ होता – बल्कि उन्हें इस बात की अनुमति प्रदान की कि वे रात के अंत ही में मुज़दलिफ़ा से रवाना हो जाएं, ताकि सामान्य लोगों के कंकड़ी मारने से पूर्व ही कंकड़ी मार लें। यह इस बात का सबसे बड़ा सबूत है कि महिला मात्र इस कारण किसी को प्रतिनिधि नहीं बनाएगी कि वह एक महिला है।

हाँ, यदि मान लिया जाए कि आदमी अक्षम व असहाय है, और वह स्वयं कंकड़ी नहीं मार सकता, न तो दिन में और न ही रात के समय। तो यहाँ प्रतिनिधि बनाने की वैधता का कथन उचित है, क्योंकि वह असमर्थ है। सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम से वर्णित है कि वे अपने बच्चों की ओर से कंकड़ी मारते थे, क्योंकि बच्चे कंकड़ी मारने में असमर्थ थे।

बहरहाल, इस मामले में – अर्थात जमरात को कंकड़ी मारने में बिना ऐसे कारण के जिसके होते हुए हाजी कंकड़ी मारने में सक्षम न हो प्रतिनिधि बनाने में – लापरवाही करना एक बड़ी गलती है, क्योंकि यह इबादत में लापरवाही और कर्तव्य को पूरा करने से पीछे हटना है।

स्रोत

साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर

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