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तवाफ करते समय होने वाली गलतियां

प्रश्न: 34644

हम देखते हैं कि कुछ लोग तवाफ के दौरान मताफ के शुरु में खड़े होते हैं और ज़ोर से तवाफ करने की नीयत बोलते हैं। इसी तरह हम यह भी देखते हैं कि उनमें से कुछ लोग हज्रे अस्वद तक पहुंचने के लिए धक्का देते, और कभी कभी उसके लिए लड़ तक जाते हैं। तो इन कार्यों के बारे में आपकी राय क्या हैॽ

उत्तर का पाठ

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

ये वह गलतियां हैं जो तवाफ़ के दौरान होती हैं, और वे विभिन्न प्रकार की हैं :

पहलीः

तवाफ़ करने का इरादा करते समय नीयत का उच्चारण करना अर्थात ज़ुबान से नीयत करना। चुनांचे आप हाजी को पाएंगे कि जब वह तवाफ़ करना चाहता है तो हज्रे अस्वद की ओर मुंह करके खड़ा होता है और कहता हैः “ऐ अल्लाह, मैं उम्रा के लिए सात चक्कर तवाफ करने की नीयत करता हूं।” या “ मैं हज्ज के लिए सात चक्कर तवाफ़ करने की नीयत करता हूं।” या “ ऐ अल्लाह, मैं तेरी निकटता प्राप्त करने के लिए सात चक्कर तवाफ़ करने की नीयत करता हूं।”

ज़ुबान से नीयत करना (नीयत का उच्चारण करना) एक बिद्अत (नवाचार) है, क्योंकि अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने ऐसा नहीं किया है और न ही आप ने अपनी उम्मत को ऐसा करने का आदेश दिया है। और जो भी व्यक्ति अल्लाह की उपासना ऐसी चीज़ के साथ करता है, जिसके साथ अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उपासना नहीं की है और न ही अपनी उम्मत को उसका आदेश दिया है, तो उसने अल्लाह के धर्म में ऐसी बात अविष्कार की जो उसका हिस्सा नहीं है। अतः तवाफ करते समय ज़ुबान से नीयत का उच्चारण करना एक गलती और बिद्अत (नवाचार) है। तथा जिस तरह वह शरीयत के दृष्टिकोण से गलत है, उसी तरह वह तर्क और बुद्धि के दृष्टिकोण से भी गलत है। चुनांचे ज़ुबान से नीयत करने की क्या आवश्यकता है जबकि नीयत आपके और आपके पालनहार के बीच का मामला है, और अल्लाह तआला जानता है कि लोगों के दिलों में क्या है और वह जानता है कि आप यह तवाफ़ करने वाले हैं। जब अल्लाह तआला उसे जानता है तो उसे अल्लाह के बंदो के लिए प्रकट करने की ज़रूरत नहीं है।

हालांकि पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने आप से पहले तवाफ़ किया, परंतु अपने तवाफ़ के समय ज़ुबान से नीयत का उच्चारण नहीं किया। इसी तरह सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम ने आप से पहले तवाफ किया, लेकिन उन्होंने तवाफ करते समय, या किसी अन्य इबादत के समय, ज़ुबान से नीयत का उच्चारण नहीं किया; अतः यह एक गलती है।

दूसरीः

कुछ तवाफ़ करने वाले लोग हज्रे अस्वद और यमनी कोने को छूते समय बहुत धक्का देते और प्रतिरोध करते हैं, ऐसा प्रितरोध जिससे वे स्वयं कष्ट उठाते हैं और दूसरे को भी कष्ट पहुँचाते हैं। यह प्रतिरोध कभी किसी महिला के साथ होता है, और हो सकता है कि वह शैतान की ओर से उकसाहट का शिकार हो जाए और इस संकीर्ण जगह में इस महिला को धक्का देते समय उसके दिल में वासना पैदा हो जाए। और इंसान एक मनुष्य ही है, हो सकता है उसके ऊपर बुराई करने के लिए प्रेरित करने वाली आत्मा हावी हो जाए, तो वह अल्लाह सर्वशक्तिमान के घर के नीचे इस बुराई में पड़ जाए। यह एक ऐसा मामला है जो उसके स्थान के एतिबार से बड़ा और गंभीर हो जाता है, हालांकि यह किसी भी स्थान पर एक फित्ना है।

हज्रे अस्वद या यमनी कोने को छूते समय धक्का देना और तीव्र प्रतिरोध करना धर्मसंगत नहीं है। बल्कि यदि आपके लिए शांति से ऐसा करना आसान है, तो ऐसा करना अपेक्षित है, और यदि आपके लिए यह आसान नहीं है, तो आपको सिर्फ हज्रे अस्वद की ओर संकेत करना चाहिए।

जहाँ तक यमनी कोने की बात है तो पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से यह वर्णित नहीं है कि आप ने उसकी ओर संकेत किया है। तथा उसे हज्रे अस्वद पर क़यास करना संभव नहीं है, क्योंकि हज्रे अस्वद उससे अधिक महान है, और पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से यह साबित है कि आप ने हज्रे अस्वद की ओर इशारा किया है।

तथा जिस तरह इस स्थिति में धक्का देना अवैध है, और जिस तरह यदि यह प्रतिरोध किसी महिला के साथ है तो उसमें फित्ना का डर है, उसी तरह यह दिल और सोच में भ्रम की स्थिति पैदा करता है, क्योंकि भीड़ की परिस्थिति में एक व्यक्ति अनिवार्य रूप से उन शब्दों को सुनता है जिन्हें वह नापसंद करता है। चुनांचे आप उसे पाएंगे कि जब वह इस जगह को छोड़ देता है तो वह अपने आप पर नाराज़ और क्रोधित महसूस करता है।

जो व्यक्ति तवाफ कर रहा है उसे हमेशा शांति और स्थिरता व संतुष्टि की स्थिति में रहना चाहिए, ताकि वह अल्लाह की जिस आज्ञाकारिता में लगा हुआ है उसे मन में उपस्थिति रख सके। क्योंकि पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया है : “अल्लाह के घर (काबा) का तवाफ, सफा व मर्वा का चक्कर लगाना और जमरात को कंकड़ी मारना अल्लाह तआला के स्मरण (ज़िक्र) को स्थापित करने के लिए निर्धारित किया गया है।”

तीसरीः

कुछ लोग यह सोचते हैं कि हज्रे अस्वद को चुंबन किए बिना तवाफ सही (मान्य) नहीं होता और यह कि हज्रे अस्वद (काले पत्थर) को चूमना तवाफ के सही होने के लिए शर्त (अनिवार्य) है, तथा हज्ज या उम्रा के सही होने के लिए भी। हालांकि यह एक गलत धारणा है। हज्रे अस्वद को चुंबन करना सुन्नत है, और यह एक स्थायी सुन्नत नहीं है, बल्कि यह तवाफ़ करने वाले व्यक्ति के लिए सुन्नत है। मुझे नहीं पता कि हज्रे अस्वद को चुंबन करना तवाफ़ के अलावा भी सुन्नत है। इस आधार पर,  जब हज्रे अस्वद को चुंबन करना सुन्नत है, वह अनिवार्य और शर्त नहीं है, तो जिस व्यक्ति ने हज्रे अस्वद को नहीं चूमा है तो हम यह नहीं कहते कि उसका तवाफ सही नहीं है या उसके तवाफ में इतनी कमी है जिसकी वजह से वह पापी होगा। बल्कि उसका तवाफ सही है और यदि बहुत भीड़ है तो (हज्रे अस्वद की ओर) संकेत करना छूने से बेहतर है, क्योंकि यही वह कार्य है जिसे पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने भीड़ की स्थिति में किया था, और इसलिए कि इंसान इसके द्वारा उस नुकसान से बचता है जो उससे दूसरे को पहुंचता है, या दूसरे से उसे पहुंचता है।

अगर कोई पूछने वाला हमसे पूछे और कहे : मताफ (तवाफ़ की जगह) में बहुत भीड़ है, तो आप का क्या विचार हैः क्या धक्का देकर हज्रे अस्वद को छूना और चूमना बेहतर है या कि यह बेहतर है कि मैं उसकी तरफ़ इशारा करूंॽ

हम उत्तर देंगेः बेहतर यह है कि तुम उसकी ओर इशारा करो, क्योंकि अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से यही सुन्नत वर्णित है और सबसे बेहतरीन तरीक़ा मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का तरीक़ा है।

चौथीः

यमनी कोने को चूमना। अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से यमनी कोने को चूमना प्रमाणित (साबित) नहीं है, और अगर इबादत अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से साबित न हो तो वह बिद्अत है, निकटता (नेकी) का कार्य नहीं है। इस आधार पर,  इंसान के लिए यमनी कोने को चूमना धर्मसंगत नहीं है। क्योंकि यह अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से साबित नहीं है। बल्कि वास्तविकता यह है कि इसके बारे में एक ज़ईफ़ हदीस वर्णित हुई है जिससे तर्क स्थापित नहीं होता है।

पांचवीः

कुछ लोग जब हज्रे अस्वद या यमनी कोने को छूते हैं तो उसे अपने बाएं हाथ से लापरवाही करने वाले की तरह स्पर्श करते हैं। यह एक गलती है, क्योंकि दायां हाथ बाएं हाथ से अशरफ़ (अधिक प्रतिष्ठित) है, और बाएं हाथ का उपयोग केवल अशुद्ध चीजों के लिए किया जाता है जैसे इस्तिंजा करना, ढीले या पत्थर द्वारा पवित्रता हासिल करना, नाक को साफ करना और इसी तरह की चीज़ें। लेकिन चुंबन और सम्मान के मामलों में दाहिने हाथ का इस्तेमाल किया जाना चाहिए।

छठी  :

लोग सोचते हैं कि हज्रे अस्वद और यमनी कोने को छूना बरकत प्राप्त करने के लिए है उपासना के तौर पर नहीं है। चुनांचे वे उसे बरकत हासिल करने के लिए छूते (हाथ फेरते) हैं। यह निःसंदेह शरीयत के उद्देश्य के विपरीत है। क्योंकि हज्रे अस्वद पर हाथ फेरने या उसे छूने और चुंबन करने का उद्देश्य अल्लाह सर्वशक्तिमान का सम्मान करना है। इसीलिए जब पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हज्रे अस्वद को चुंबन या स्पर्श करते थे तो कहते थे : "अल्लाहु अकबर" (अल्लाह सबसे महान है), जो इस बात की ओर संकेत है कि इसका उद्देश्य अल्लाह का सम्मान करना है, इस पत्थर को छूकर बरकत प्राप्त करना नहीं है। इसीलिए अमीरुल मूमिनीन उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने काले पत्थर को चूमते या छूते समय फरमाया : "अल्लाह की क़सम, मुझे पता है कि तू सिर्फ एक पत्थर है, तू न नुकसान पहुंचा सकता है और न ही लाभ पहुंचा सकता है। यदि मैंने अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को तुझे चूमते हुए न देखा होता तो तुझे न चूमता।

कुछ लोगों की यह गलत धारणा – अर्थात उनका यह समझना कि यमनी कोने और काले पत्थर को छूने का उद्देश्य बरकत की प्राप्ति है – उनमें से कुछ लोगों को इस बात पर प्रेरित किया कि वे अपने छोटे बच्चों को लाते हैं और यमनी कोने या काले पत्थर को अपने हाथों से छूते हैं, फिर अपने बच्चे पर अपना वह हाथ फेरते हैं जिससे हज्रे अस्वद या यमनी कोने को छुआ था। यह एक भ्रष्ट आस्था है जिससे रोका जाना चाहिए। तथा लोगों को समझाया जाना चाहिए कि इस तरह के पत्थर न तो नुकसान पहुंचा सकते हैं और न ही लाभ दे सकते हैं और उन्हें छूने का उद्देश्य अल्लाह की महिमा करना, उसका स्मरण (ज़िक्र) स्थापित करना और उसके पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का अनुसरण करना है।

ये सभी चीज़ें और इसी तरह की अन्य चीज़ जो धर्मसंगत नहीं हैं, बल्कि वह एक बिदअत है जो उसके करने वाले को कुछ भी लाभ नहीं देती; लेकिन अगर ऐसा करने वाला अज्ञानी है और उसके दिल में यह बात नहीं आई कि वह बिदआत में से है, तो उम्मीद है कि उसे क्षमा कर दिया जाए। लेकिन अगर वह जानता है (कि यह बिदआत में से है) या वह लापरवाह है जो अपने धर्म के बारे में नहीं पूछता है, तो वह दोषी (गुनाहगार) है।

सातवीं :

कुछ लोग तवाफ़ के प्रत्येक चक्कर में एक विशिष्ट दुआ पढ़ते हैं। यह एक प्रकार की बिदअत है जो अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और आपके सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम से वर्णित नहीं है। चुनांचे पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम प्रत्येक चक्कर में कोई विशिष्ट दुआ नहीं पढ़ते थे, और न ही आपके सहाबा ने ऐसा किया। इसके बारे में ज़्यादा से ज़्यादा यह प्रमाणित है कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम यमनी कोने और हज्रे अस्वद के बीच यह कहा करते थे :

ربنا آتنا في الدنيا حسنة وفي الآخرة حسنة وقنا عذاب النار

“रब्बना आतिना फिद्दुन्या हसनतन व फिल-आख़िरति हसनतन, व-क़िना अज़ाबन्नार”

"हे हमारे पालनहार! हमें दुनिया में भलाई प्रदान कर और आख़िरत में भी भलाई प्रदान करे और हमें नरक की यातना से सुरक्षित रख।” (सूरतुल बक़रा : 201) तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “अल्लाह के घर (काबा) का तवाफ, सफा व मर्वा का चक्कर लगाना और जमरात को कंकड़ी मारना अल्लाह तआला के स्मरण (ज़िक्र) को स्थापित करने के लिए निर्धारित किया गया है।”

यह बिद्अत उस समय और भी गलत हो जाती है, जब तवाफ़ करने वाला व्यक्ति एक पुस्तिका उठाए होता है जिसमें प्रत्येक चक्कर के लिए दुआ लिखी होती है। वह इस पुस्तिका को पढ़ता है और यह नहीं जानता कि वह क्या कह रहा है; या तो इसिलए कि वह अरबी भाषा नहीं जानता और उसके अर्थ को नहीं समझता है, और या तो इसलिए कि वह अरब है और अरबी भाषा बोलता है परंतु वह नहीं जानता कि वह क्या कह रहा है। यहाँ तक कि हम उनमें से कुछ को सुनते हैं कि वह ऐसी दुआएं करता है जो वास्तव में स्पष्ट रूप से विकृत होती हैं। उदाहरण के लिए, हमने किसी को यह कहते हुए सुनाः “अल्लाहुम्मा अग़्निनी  बि-जलालिका अन हरामिक” जबकि शुद्ध उच्चारणः “बि-हलालिका अन हरामिक” है।

इसी तरह हम इस पुस्तिका को पढ़ने वाले कुछ लोगों को देखते हैं कि जब एक चक्कर की दुआ खत्म हो जाती है तो वह रुक जाता है और उस चक्कर के शेष हिस्से में दुआ नहीं करता है। जबकि अगर मताफ में भीड़ नहीं होती है औ दुआ खत्म होने से पहले चक्कर पूरा हो जाता है, तो वह दुआ को काट देता है।

इसका समाधान यह है कि हम हाजियों के लिए इस बात को स्पष्ट कर दें (और उन्हें समझा दें) कि इंसान तवाफ के दौरान जो भी चाहे और जो भी पसंद हो दुआ करे, और जिस चीज़ के साथ भी चाहे अल्लाह का ज़िक्र करे। अगर लोगों को यह समझा दिया जाए तो समस्या समाप्त हो जाएगी।

इन बिदअतों (नवाचारों) में पड़ने वाले व्यक्ति का हुक्मः

इन कार्यों के करने के संबंध में लोग :

– या तो पूरी तरह से अज्ञानी हैं उनके दिल में यह बात नहीं आती कि यह हराम है। तो ऐसे व्यक्ति के मामले में आशा है कि उस पर कोई दोष नहीं होगा।

– और या तो वह जानता है और जानबूझ कर ऐसा कर रहा है ताकि वह पथभ्रष्ट हो और लोगों को भी पथभ्रष्ट करे। तो ऐसा व्यक्ति निःसंदेह एक दोषी है और जो भी व्यक्ति उसका अनुसरण और उसके उदाहरण का पालन करने वाला है उसके पाप का बोझ इसी के ऊपर होगा।

– और या तो वह एक अज्ञानी आदमी है और ज्ञानियों से प्रश्न करने में लापरवाही करने वाला है, तो ऐसे व्यक्ति के बारे में डर है कि वह लापरवाही करने और उसके बारे में न पूछने के कारण गुनाहगार होगा।

ये त्रुटियां जिनका हमने तवाफ़ के दौरान उल्लेख किया है, हमें उम्मीद है कि अल्लाह हमारे मुसलमान भाइयों को इनका सुधार करने के लिए मार्गदर्शन करेगा, ताकि उनका तवाफ अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सुन्नत के अनुसार हो। क्योंकि सबसे अच्छा मार्गदर्शन मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का मार्गदर्शन है। और धर्म को भावनाओं और प्रवृत्तियों के आधार पर नहीं प्राप्त किया जाता है, बल्कि यह अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के माध्यम से लिया जाता है।

स्रोत

शैख इब्न उसैमीन रहिमहुल्लाह की पुस्तिका “दलील अल-अख्ता अल्लती यक़ओ फीहा अल-हाज्ज वल-मोतमिर” से अंत हुआ।

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