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वह इस्लाम में प्रवेश करना चाहता है और वह अपने नए जीवन के लिए मार्गदर्शन चाहता है

प्रश्न: 373188

मैं एक ग़ैर-मुस्लिम व्यक्ति हूँ, और मैं एक सुंदर इस्लामी समाज में एक नया जीवन शुरू करने के लिए इस्लाम में प्रवेश करना चाहता हूँ, तो क्या मुझे कुछ ऐसी जानकारी मिल सकती है जो मेरी मदद करे और मेरा मार्गदर्शन करेॽ

उत्तर का पाठ

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

हमारे लिए कितनी खुशी की बात है कि ऐ अल्लाह के बंदे! आपने हमारी वेबसाइट पर संदेश भेज रहे हैं, जबकि आपके दिल पर प्रकाश चमकने लगा है और आपका दिल खुलने और विस्तृत होने लगा है, ताकि उस नई रोशनी को प्राप्त करे, जिसे अल्लाह ने अपने बंदों के लिए परसंद किया है कि वे उससे रोशनी प्राप्त करें।

यह आपके पूरे जीवन का निर्णायक क्षण है, केवल इस नश्वर सांसारिक जीवन का नहीं; बल्कि यहाँ आपकी स्थिति का परिणाम, परलोक में आपके अनन्त जीवन पर भी पड़ेगा;

या तो आप अल्लाह के स्वर्ग में होंगे, जैसा कि अल्लाह अपने बंदो के लिए पसंद करता है और जैसा कि हम आपके लिए आशा करते हैं, जिसमें हमेशा के लिए रहेंगे, उसके बगीचों में नेमतों का आनंद उठाने वाले होंगे, न कभी दुखी होंगे, न थकेंगे, न मरेंगे, न बूढ़े होंगे, न शोक करेंगे, न चिंता करेंगे; बल्कि सदा-सर्वदा के लिए सौभाग्यशाली होंगे…

या जहन्नम की आग में, – अल्लाह हमें और आपको इससे बचाए – उसमें हमेशा के लिए रहना होगा, उसमें प्रवेश करने वाला कभी मरेगा नहीं, कि वह राहत पा जाए, और न ही कभी आराम और सुख का जीवन जिएगा,  बल्कि उसके वासियों को अपमानजनक यातना का सामना करना पड़ेगा, जिसमें वे हमेशा हमेशा के लिए रहेंगे, वे उससे कभी नहीं निकलेंगे।

वह क्षण जिसमें आप हमसे “इस्लाम में प्रवेश करने की अपनी इच्छा” के बारे में बात कर रहे हैं : यह आपके सीने के तंगी के बाद खुलने (विस्तृत होने) और अँधेरे के बाद उसके प्रकाशमान होने के सबसे महान क्षणों में से है। अल्लाह तआला ने फरमाया :

(فَمَن يُرِدِ اللَّهُ أَن يَهْدِيَهُ يَشْرَحْ صَدْرَهُ لِلْإِسْلَامِ ۖ وَمَن يُرِدْ أَن يُضِلَّهُ يَجْعَلْ صَدْرَهُ ضَيِّقًا حَرَجًا كَأَنَّمَا يَصَّعَّدُ فِي السَّمَاءِ ۚ كَذَٰلِكَ يَجْعَلُ اللَّهُ الرِّجْسَ عَلَى الَّذِينَ لَا يُؤْمِنُونَ

الأنعام:125

“तो वह व्यक्ति जिसे अल्लाह मार्गदर्शन प्रदान करना चाहता है, उसका सीना इस्लाम के लिए खोल देता है। और जिसे वह पथभ्रष्ट करना चाहता है, तो उसके सीने को तंग और और संकुचित कर देता है। मानो वह कठिनाई से आकाश में चढ़ रहा है। इसी तरह अल्लाह उन लोगों पर गंदगी डाल देता है, जो ईमान नहीं लाते।” (सूरतुल अन्आम : 125)

इसलिए ऐ अल्लाह के बंदे!  इस क्षण का लाभ उठाएँ, विलंब और देरी न करें, और इसका लाभ उठाने से पीछे न रहें।

इस खिड़की को बंद न करें, जबकि आपके दिल पर भोर की हवाओं और एक नई सुबह के सूर्योदय के साथ खोल दी खुल गई है… क्योंकि अगर आपने इसे बंद कर दिया – और अल्लाह आपको इससे बचाए – तो आपका दिल जल्द ही मृत हो जाएगा, परम दयालु (अल्लाह) की ओर से सांस के बिना, जो इसे जीवन प्रदान करे।

अपने दिल पर चलने वाली इस हवा को अंदर लेने में देर न करें; क्योंकि अगर आप सुबह की इस ठंडी हवा का लाभ उठाने में देर करेंगे, तो जल्द ही सूरज की गर्मी आपको झुलसा देगी और उसकी लपटें आपको जला देंगी …

ऐ अल्लाह बंदे! जल्दी करो। क्योंकि यदि यह अवसर चला गया, तो शायद फिर न आए। अल्लाह तआला ने फरमाया :

 وَنُقَلِّبُ أَفْئِدَتَهُمْ وَأَبْصَارَهُمْ كَمَا لَمْ يُؤْمِنُوا بِهِ أَوَّلَ مَرَّةٍ وَنَذَرُهُمْ فِي طُغْيَانِهِمْ يَعْمَهُونَ 

الأنعام/110

"और हम उनके दिलों और उनकी आँखों को फेर देंगे, जैसे वे उसपर पहली बार ईमान नहीं लाए। और हम उन्हें छोड़ देंगे, अपनी सरकशी में भटकते फिरेंगे।" [सूरतुल-अनआम : ११०]।

ऐ अल्लाह बंदे! इस अवसर का इसी क्षण में लाभ उठाने के लिए जल्दी करें। क्योंकि कई लोगों ने इस अवसर को खो दिया, फिर कामना की कि वह वापस आ जाए, लेकिन जब अवसर चला जाता है और समय बीत जाता है : तो वापस नहीं आता। अल्लाह तआला ने फरमाया :

 الر تِلْكَ آيَاتُ الْكِتَابِ وَقُرْآنٍ مُبِينٍ * رُبَمَا يَوَدُّ الَّذِينَ كَفَرُوا لَوْ كَانُوا مُسْلِمِينَ * ذَرْهُمْ يَأْكُلُوا وَيَتَمَتَّعُوا وَيُلْهِهِمُ الْأَمَلُ فَسَوْفَ يَعْلَمُونَ 

الحجر/1-3 

“अलिफ़, लाम, रा। ये किताब और स्पष्ट क़ुरआन की आयतें हैं। (एक समय आएगा कि) काफ़िर चाहेंगे कि काश वे (दुनिया में) मुसलमान होते! (ऐ नबी!) आप उन्हें छोड़ दें। वे खाएँ और लाभ उठाएँ, तथा (लंबी) आशा उन्हें ग़ाफ़िल रखे, फिर शीघ्र ही जान लेंगे।” (सूरतुल-हिज्र : १-३)

ऐ अल्लाह के बंदे! जल्दी करें; क्योंकि यह मामला आसान है; यह उस व्यक्ति के लिए बहुत आसान है, जिसके लिए अल्लाह इसे आसान बना दे और उसे इसका सामर्थ्य प्रदान कर दे :

मुआज़ बिन जबल रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्होंने कहा : मैं एक यात्रा में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ था। एक दिन जब हम चल रहे थे, तो मैं आपके बहुत क़रीब हो गया। तो मैंने कहा : ऐ अल्लाह के रसूल! मुझे एक ऐसा काम बताएँ जो मुझे जन्नत में दाखिल करे और मुझे जहन्नम से दूर रखे!

आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "तुमने मुझसे एक महान चीज़ के बारे में पूछा है। लेकिन निश्चय यह उसके लिए आसान है जिसके लिए अल्लाह इसे आसान बना दे।

तुम अल्लाह की इबादत करो और उसके साथ किसी भी चीज़ को साझी न ठहराओ, नमाज़ क़ायम करो, ज़कात दो, रमज़ान के रोज़े रखो और अल्लाह के घर [काबा] का हज्ज करो।”

फिर आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “क्या मैं तुम्हें भलाई के द्वार (रास्ते) न बताऊँॽ रोज़ा एक ढाल है। दान पाप को ऐसे बुझा (मिटा) देता है, जैसे जल आग को बुझाता है। तथा रात के दौरान आदमी का नमाज़ (तहज्जुद) पढ़ना।” फिर आपने यह आयत तिलावत की:

 تَتَجَافَى جُنُوبُهُمْ عَنِ الْمَضَاجِعِ يَدْعُونَ رَبَّهُمْ خَوْفًا وَطَمَعًا وَمِمَّا رَزَقْنَاهُمْ يُنْفِقُونَ * فَلَا تَعْلَمُ نَفْسٌ مَا أُخْفِيَ لَهُمْ مِنْ قُرَّةِ أَعْيُنٍ جَزَاءً بِمَا كَانُوا يَعْمَلُونَ

السجدة: 16- 17 

“उनके पहलू बिस्तरों से अलग रहते हैं। वे अपने पालनहार को भय तथा आशा के साथ पुकारते हैं। तथा हमने जो कुछ उन्हें प्रदान किया है, उसमें से खर्च करते हैं। तो कोई प्राणी नहीं जानता कि उनके लिए आँखों की ठंढक में से क्या कुछ छिपा कर रखा गया है, उसके बदले के तौर पर, जो वे (दुनिया में) किया करते थे।” (सूरतुस-सजदा : 16-17).

फिर आपने फरमाया : “क्या मैं तुम्हें पूरे मामले के प्रमुख (मूल), उसके स्तंभ और उसके शिखर के विषय में न बताऊँॽ”

मैंने कहा : क्यों नहीं, ऐ अल्लाह के रसूल (अवश्य बताएँ)। आपने फरमाया : “पूरे मामले का प्रमुख (मूल) इस्लाम है, उसका स्तंभ नमाज़ है और उसका शिखर जिहाद है।”

फिर आपने फरमाया : “क्या मैं तुमहें उस चीज़ के बार में न बता बताऊँ जिससे यह सब चीज़ें पूरी और मुकम्मल होती हैंॽ”

मैंने कहा : जी हाँ, ऐ अल्लाह के नबी।

आपने अपनी जीभ पकड़ ली और फरमाया : “इसे अपने नियंत्रण में रखो!!”

तो मैंने कहा : ऐ अल्लाह के पैग़ंबर! क्या हम जो कुछ बोलते हैं, उसपर हमारी पकड़ होगीॽ

आपने फरमाया : ‘‘ऐ मुआज़! तुम्हारी माँ तुम्हें गुम पाए, लोगों को उनके चेहरों के बल या उनकी नाक के बल जहन्नम में उनकी ज़बानों की कमाइयों ही की वजह से तो डाला जाएगाॽ”

इसे तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 2616) ने रिवायत किया और कहा : यह एक हसन, सहीह हदीस है। तथा इसे अहमद वग़ैरह ने भी रिवायत किया है और अल्बानी ने सहीह तिर्मिज़ी में इसे सहीह कहा है।

आपको “बपतिस्मा” देने के लिए किसी पादरी की आवश्यकता नहीं है, न आपके लिए मध्यस्थता करने के लिए किसी मध्यस्थ की आवश्यकता है, और न ही किसी अन्य व्यक्ति की आवश्यकता है जो उसकी ओर आपका मार्गदर्शन करे, क्योंकि वह महिमावान स्वयं मार्गदर्शक है और उसने अपनी वह़्य में और अपने रसूलों की ज़बानी आपको अपना परिचय प्रस्तुत किया है। सो आप उसकी ओर मुतवज्जेह हों। क्योंकि वह बहुत निकट है, वह आपके उससे भी अधिक निकट है जितना आप सोचते हैं या कल्पना करते हैं :

 وَإِذَا سَأَلَكَ عِبَادِي عَنِّي فَإِنِّي قَرِيبٌ أُجِيبُ دَعْوَةَ الدَّاعِ إِذَا دَعَانِ فَلْيَسْتَجِيبُوا لِي وَلْيُؤْمِنُوا بِي لَعَلَّهُمْ يَرْشُدُونَ 

البقرة:186 

“और (ऐ नबी!) जब मेरे बंदे आपसे मेरे बारे में पूछें, तो निश्चय मैं (उनसे) क़रीब हूँ। मैं पुकारने वाले की दुआ क़बूल करता हूँ जब वह मुझे पुकारता है। तो उन्हें चाहिए कि वे मेरी बात मानें तथा मुझपर ईमान लाएँ, ताकि वे मार्गदर्शन पाएँ।” (सूरतुल बक़रा : 186)

आपको रात या दिन के उस समय या घंटे के बारे में पूछने की ज़रूरत नहीं है, जिसमें आप अपने पालनहार पर प्रवेश करें और उसमें आप अपने नए जीवन की शुरूआत करे। क्योंकि सभी घंटे उसके लिए समय हैं :

अबू मूसा अल-अशअरी रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया :

"अल्लाह सर्वशक्तिमान रात के समय अपने हाथ को फैलाता है ताकि दिन के समय पाप करने वाला तौबा (पश्चाताप) कर ले। तथा वह दिन के समय अपने हाथ को फैलाता है ताकि रात के समय पाप करने वाला तौबा (पश्चाताप) कर ले, यहाँ तक कि सूरज पश्चिम से निकल आए।" इसे मुस्लिम (हदीस संख्या: 2759) ने रिवायत किया है।

इस बात से सावधान रहें कि शैतान आपको अल्लाह के धर्म से रोक दे और आपके और आपके पालनहार के बीच रुकावट बन जाए, किसी पाप के कारण जो आपने किया हो, या एक अंधेरे अतीत की वजह से जिसमें आप लिप्त थे; अतः यह सब अपनी पीठ के पीछे छोड़ दें और एक नया पृष्ठ शुरू करें, जो उज्ज्वल और स्वच्छ हो, अपने पालनहार के साथ एक नई प्रतिज्ञा, तथा कुफ़्र और जो कुछ उसमें था उससे तौबा (पश्चाताप) के साथ, चाहे कुफ़्र के समय में जो बीत गया कुछ भी रहा हो :

 قُلْ يَاعِبَادِيَ الَّذِينَ أَسْرَفُوا عَلَى أَنْفُسِهِمْ لَا تَقْنَطُوا مِنْ رَحْمَةِ اللَّهِ إِنَّ اللَّهَ يَغْفِرُ الذُّنُوبَ جَمِيعًا إِنَّهُ هُوَ الْغَفُورُ الرَّحِيمُ (53) وَأَنِيبُوا إِلَى رَبِّكُمْ وَأَسْلِمُوا لَهُ مِنْ قَبْلِ أَنْ يَأْتِيَكُمُ الْعَذَابُ ثُمَّ لَا تُنْصَرُونَ (54) وَاتَّبِعُوا أَحْسَنَ مَا أُنْزِلَ إِلَيْكُمْ مِنْ رَبِّكُمْ مِنْ قَبْلِ أَنْ يَأْتِيَكُمُ الْعَذَابُ بَغْتَةً وَأَنْتُمْ لَا تَشْعُرُونَ (55) أَنْ تَقُولَ نَفْسٌ يَاحَسْرَتَا عَلَى مَا فَرَّطْتُ فِي جَنْبِ اللَّهِ وَإِنْ كُنْتُ لَمِنَ السَّاخِرِينَ (56) أَوْ تَقُولَ لَوْ أَنَّ اللَّهَ هَدَانِي لَكُنْتُ مِنَ الْمُتَّقِينَ (57) أَوْ تَقُولَ حِينَ تَرَى الْعَذَابَ لَوْ أَنَّ لِي كَرَّةً فَأَكُونَ مِنَ الْمُحْسِنِينَ (58) بَلَى قَدْ جَاءَتْكَ آيَاتِي فَكَذَّبْتَ بِهَا وَاسْتَكْبَرْتَ وَكُنْتَ مِنَ الْكَافِرِينَ (59) وَيَوْمَ الْقِيَامَةِ تَرَى الَّذِينَ كَذَبُوا عَلَى اللَّهِ وُجُوهُهُمْ مُسْوَدَّةٌ أَلَيْسَ فِي جَهَنَّمَ مَثْوًى لِلْمُتَكَبِّرِينَ (60) وَيُنَجِّي اللَّهُ الَّذِينَ اتَّقَوْا بِمَفَازَتِهِمْ لَا يَمَسُّهُمُ السُّوءُ وَلَا هُمْ يَحْزَنُونَ 

الزمر:53-61  

(ऐ नबी) आप मेरे उन बंदों से कह दें, जिन्होंने अपने ऊपर अत्याचार किए हैं : तुम अल्लाह की दया से निराश न हो। निःसंदेह अल्लाह सब पापों को क्षमा कर देता है। निश्चय ही वह बड़ा क्षमाशील, अत्यंत दयावान् है। तथा अपने पालनहार की ओर पलट आओ और उसके आज्ञाकारी बन जाओ, इससे पहले कि तुमपर यातना आ जाए, फिर तुम्हारी सहायता न की जाए। तथा उस सबसे उत्तम वाणी का पालन करो, जो तुम्हारे पालनहार की ओर से तुम्हारी तरफ़ उतारी गई है, इससे पूर्व कि तुमपर अचानक यातना आ पड़े और तुम्हें एहसास तक न हो। (ऐसा न हो कि) कोई व्यक्ति कहे कि अफ़सोस है उस कोताही पर, जो मैंने अल्लाह के हक़ में की और निश्चय ही मैं तो उपहास करने वालों में से था। या वह कहे कि यदि अल्लाह मुझे सीधा रास्ता दिखाता, तो मैं अवश्य डरने वालों में से होता। या जब वह यातना को देख ले, तो कहने लगे कि अगर मुझे एक बार फिर (संसार की ओर) वापस जाने का अवसर मिले, तो मैं सदाचारियों में से हो जाऊँ। क्यों नहीं, मेरी आयतें तेरे पास आ चुकी थीं। पर तूने उन्हें झुठला दिया और अभिमान किया, तथा तू काफ़िरों में से था। और क़ियामत के दिन आप उन लोगों को देखेंगे, जिन्होंने अल्लाह पर झूठ बोला कि उनके चेहरे काले होंगे। तो क्या अभिमानियों का ठिकाना जहन्नम में नहीं हैॽ तथा अल्लाह उन लोगों को जिन्होंने तक़्वा (अल्लाह का डर) अपनाया, उनकी सफलता के साथ बचा लेगा। न उन्हें बुराई छुएगी और न वे दुःखी होंगे। (सुरतूज़-ज़ुमर : 53-61)

ऐ अल्लाह के बंदे! निश्चय इस्लाम, उससे पहले जो कुछ भी शिर्क (अल्लाह के साथ किसी दूसरे को साझी ठहराना), शिर्क का कार्य, शिर्क की स्थिति और शिर्क का अनुबंध था, उसे मिटा देता है; सो इन बोझों को जिन्होंने आपको बोझल कर दिया है, अपने कंधे से उतार दें, और सर्व संसार के पालनहार के साथ अपना शुद्ध एवं स्वच्छ जीवन आरंभ करें, और उस पर प्रवेश करें और उसकी ओर भागें!!

जी हाँ, इस दुनिया और परलोक में आपकी खुशी (सौभाग्य), आराम और संतोष, केवल उसके कारण है जो आपके लिए यह इस्लाम का दरवाज़ा खोला गया है और आपके लिए नई रोशनी प्रकाशित की गई है :

 إِنَّ فِي ذَلِكَ لَآيَةً لِمَنْ خَافَ عَذَابَ الْآخِرَةِ ذَلِكَ يَوْمٌ مَجْمُوعٌ لَهُ النَّاسُ وَذَلِكَ يَوْمٌ مَشْهُودٌ * وَمَا نُؤَخِّرُهُ إِلَّا لِأَجَلٍ مَعْدُودٍ * يَوْمَ يَأْتِ لَا تَكَلَّمُ نَفْسٌ إِلَّا بِإِذْنِهِ فَمِنْهُمْ شَقِيٌّ وَسَعِيدٌ * فَأَمَّا الَّذِينَ شَقُوا فَفِي النَّارِ لَهُمْ فِيهَا زَفِيرٌ وَشَهِيقٌ * خَالِدِينَ فِيهَا مَا دَامَتِ السَّمَاوَاتُ وَالْأَرْضُ إِلَّا مَا شَاءَ رَبُّكَ إِنَّ رَبَّكَ فَعَّالٌ لِمَا يُرِيدُ * وَأَمَّا الَّذِينَ سُعِدُوا فَفِي الْجَنَّةِ خَالِدِينَ فِيهَا مَا دَامَتِ السَّمَاوَاتُ وَالْأَرْضُ إِلَّا مَا شَاءَ رَبُّكَ عَطَاءً غَيْرَ مَجْذُوذٍ 

هود/103-108

“निश्चय ही इसमें उसके लिए एक निशानी है, जो आख़िरत की यातना से डरे। वह ऐसा दिन होगा, जिसके लिए सभी लोग एकत्रित किए जाएँगे तथा उस दिन सभी लोग उपस्थित होंगे। और हम उसे केवल एक निर्धारित अवधि के लिए पीछे कर रहे हैं। जिस दिन वह आ जाएगा, तो अल्लाह की अनुमति के बिना कोई प्राणी बात नहीं कर सकेगा, फिर उनमें से कुछ अभागे होंगे और कुछ भाग्यशाली होंगे। चुनाँचे जो लोग अभागे होंगे, वे नरक में होंगे, उसमें उन्हें चीखना और चिल्लाना होगा। वे उसमें हमेशा रहेंगे, जब तक आकाश तथा धरती अवस्थित हैं। परंतु यह कि आपका पालनहार कुछ और चाहे। निःसंदेह आपका पालनहार जो चाहे, करने वाला है। लेकिन जो भाग्यशाली हैं, तो (वे) स्वर्ग में होंगे, वे उसमें सदैव रहेंगे जब तक आकाश तथा धरती विद्यमान् हैं। परंतु यह कि आपका पालनहार कुछ और चाहे। यह एक अनंत प्रदान है।” (सूरत हूद : 103-108)

अब आपको इससे अधिक किसी शर्त या प्रतिबंध की आवश्यकता नहीं है कि आप अपने पिछले धर्म को छोड़ दें और यह पढ़ते हुए इस्लाम में प्रवेश करें :

“अश-हदु अन् ला इलाहा इल्लल्लाह व अन्ना मुहम्मदन रसूलुल्लाह” (मैं गवाही देता हूँ कि अल्लाह के अलावा कोई पूजा के योग्य नहीं और मुहम्मद – सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम – अल्लाह के रसूल हैं)।

तथा आप जान लें कि इसके द्वारा आपने अपने पहले विश्वासों (मान्यताओं) और लोगों के सभी धर्मों को त्याग दिया, और सर्व संसार के पालनहार के सिवा आपके लिए न कोई रब है, जिसकी आप पूजा करें और न कोई पूज्य है, जिसपर आप ईमान लाएँ।

तथा इस्लाम के पैग़ंबर मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के अलावा आपके पास कोई रसूल नहीं, जिसका आप अनुसरण करें।

इस्लाम धर्म के अलावा, आपके लिए न कोई धर्म है और न कोई शरीयत, जिसका आप पालन करें। अल्लाह तआला ने फरमाया :

 وَمَنْ يَبْتَغِ غَيْرَ الْإِسْلَامِ دِينًا فَلَنْ يُقْبَلَ مِنْهُ وَهُوَ فِي الْآخِرَةِ مِنَ الْخَاسِرِينَ

آل عمران :85 

“और जो व्यक्ति इस्लाम के सिवा कोई अन्य धर्म तलाश करे, तो वह (धर्म) उससे स्वीकार नहीं किया जाएगा, और आखिरत में वह घाटा उठाने वालों में से होगा।” (सूरत आल-इमरान : 85)

हम आपके लिए पसंद करते हैं कि आप जल्दी करें और अभी स्नान करें, ताकि आप बाहरी और आंतरिक दोनों तरह से स्वच्छ और शुद्ध होकर अपने जीवन का नया पृष्ठ शुरू करें।

तथा जिस घड़ी आप इस्लाम में प्रवेश करें और सर्व संसार के पालनहार के साथ अपने नए युग की शुरूआत करें, तो हम आपकी ओर से प्राप्त होने वाले हर प्रश्न से खुश होंगे, जिसमें आप अपने धर्म के बारे में, तथा अपनी इबादतों और अपने मामलों से संबंधित आवश्यक चीज़ों के विषय में पूछते हैं। अतः आप हमसे पूछने, और आपको पेश आने वाले मुद्दों और समस्याओं को भेजने में संकोच न करें।

यदि आपके आस-पास कोई इस्लामिक सेंटर है, तो बेहतर है कि आप उनके संपर्क में रहें और उनके साथ घुल-मिल जाएँ। क्योंकि इससे आपको अपने धार्मिक मामलों में मदद मिलेगी और आपको वहाँ एक नया माहौल मिलेगा, जो आपको उस धर्म का पालन करने में मदद करेगा जिसे आपने अपनाया है।

हम अल्लाह से प्रार्थना करते हैं कि इस्लाम के लिए आपका सीना खोल दे, आपके दिल का मार्गदर्शन करे और आपको वह कुछ करने का सामर्थ्य प्रदान करे, जिससे वह प्यार करता और उससे प्रसन्न होता है।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है। 

स्रोत

साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर

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