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मज़ी का उत्सर्जन रोज़ा को ख़राब (अमान्य) नहीं करता है

السؤال: 37715

मैं ऐसी वासना से पीड़ित हूँ, जो हमेशा तुच्छ कारणों से भी उत्तेजित हो जाती है। जैसे कि जब मैं सड़क पर चलता हूँ और किसी महिला को देखता हूँ, तो मैं तुरंत अपनी निगाहें नीची कर लेता हूँ। लेकिन (तब भी) ऐसा होता है कि कुछ उत्सर्जित हो जाता है। या जब मैं बैठा होता हूँ तो मेरे दिमाग में कुछ विचार आते हैं जिन्हें मैं तुरंत रोकने की कोशिश करता हूँ, लेकिन ऐसा होता है कि कुछ उत्सर्जित हो जाता है। यह सब मेरी इच्छा के खिलाफ होता है। तो क्या इससे रोज़ा खराब (अमान्य) हो जाएगाॽ

الجواب

الحمد لله والصلاة والسلام على رسول الله وآله وبعد.

मज़ी (चुंबन या फोरप्ले के कारण मूत्रमार्ग से निकलने वाला पतला पानी) के उत्सर्जन से रोज़ा ख़राब (अमान्य) नहीं होता है, चाहे वह सोचने से हो, या आदमी के अपनी पत्नी को चुंबन करने या किसी अन्य कारण से हो। यही इमाम शाफ़ेई का मत है। देखिए : नववी की “अल-मजमूअ” (6/323)

शैखुल इस्लाम रहिमहुल्लाह ने “अल-इख्तियारत” (पृष्ठ : 193) में फरमाया :

“मज़ी के कारण रोज़ा नहीं टूटेगा, चाहे वह चुंबन करने, या छूने, या बार-बार देखने की वजह से (उत्सर्जित हुआ) हो। यही अबू हनीफा, शाफ़ेई और हमारे कुछ साथियों का कथन है।” उद्धरण समाप्त हुआ।

इसी को शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह ने भी अपनाया है, जैसाकि “अश-शर्हुल-मुम्ते” (6/390) में है, उन्होंने कहा :

“इसका प्रमाण यह है कि इसके द्वारा रोज़ा के ख़राब होने पर कोई सबूत (प्रमाण) नहीं है। क्योंकि रोज़ा एक ऐसी इबादत है, जिसे इनसान ने एक शरई तरीक़े पर शुरू किया है। इसलिए यह संभव नहीं है कि हम इस इबादत को बिना किसी प्रमाण के ख़राब कर दें।” कुछ संशोधन के साथ उद्धरण समाप्त हुआ।

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