एक महिला यमन से उम्रा करने के इरादे से आई थी, लेकिन मीक़ात तक पहुँचने से पहले उसने मासिक धर्म का खून देखा। इसलिए वह जद्दा चली गई और वहाँ एक सप्ताह तक रही। अब वह उम्रा करना चाहती है। क्या वह जद्दा से एहराम बाँधेगी या यलमलम की मीक़ात पर जाएगी और वहाँ से एहराम बाँधेगीॽ
मीक़ात पर पहुँचने से पहले उसका मासिक धर्म आ गया, तो वह जद्दा चली गई। फिर उसने उम्रा करने का इरादा किया, तो वह कहाँ से एहराम बाँधेगीॽ
السؤال: 38870
الحمد لله والصلاة والسلام على رسول الله وآله وبعد.
यह ज्ञात होना चाहिए कि एहराम की स्थिति में प्रवेश करने के लिए पवित्रता शर्त नहीं है। इसलिए मासिक धर्म वाली महिला उम्रा या हज्ज के लिए एहराम में प्रवेश कर सकती है और वह सब कुछ कर सकती है जो अन्य हाजी करते हैं, सिवाय इसके कि वह का’बा का तवाफ़ (परिक्रमा) नहीं करेगी। क्योंकि आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा की हदीस में वर्णित है कि उन्होंने कहा : “अस्मा बिन्त उमैस ने (ज़ुल-हुलैफ़ा में) ‘शजरह’ (पेड़) के स्थान पर मुहम्मद बिन अबू बक्र को जन्म दिया, तो अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अबू बक्र को आदेश दिया कि उसे ग़ुस्ल करने और फिर तल्बियह पुकारने के लिए कहो।” इसे मुस्लिम (हदीस संख्या : 1209) ने रिवायत किया है। और मासिक धर्म वाली महिला और प्रसूता महिला (दोनों) एक ही नियम (हुक्म) के तहत आते हैं। तथा इसलिए कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा को आदेश दिया, जब वह मासिक धर्म की अवस्था में आई थीं, कि वह उसी तरह करें, जिस तरह कि एक हाजी करता है, सिवाय इसके कि वह का’बा का तवाफ़ न करें। इसे बुखारी (हदीस संख्या : 1516) ने रिवायत किया है।
यदि इस स्त्री ने मासिक धर्म आने पर उम्रा के लिए एहराम में प्रवेश नहीं किया और उम्रा करने का इरादा न रखते हुए मीक़ात पार की। फिर जब वह जद्दा पहुँची तो उसने उम्रा करने का निश्चय किया, तो इसमें उसपर कोई हर्ज नहीं है और वह जद्दा में अपने स्थान से एहराम में प्रवेश करेगी; क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : “और जो व्यक्ति उसके अंदर है, तो वह वहाँ से एहराम में प्रवेश करेगा, जहाँ से उसने इरादा किया है।” इसे बुखारी (हदीस संख्या : 1524) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 1181) ने रिवायत किया है। यानी जो मीक़ात के अंदर है, वह अपनी जगह से एहराम में दाखिल होने की नीयत करेगा और एहराम बाँधेगा।
लेकिन अगर वह मीक़ात या उसके बराबर से गुज़रते समय उम्रा करने का इरादा रखती थी और उसने वहाँ से एहराम में प्रवेश नहीं किया, तो उसके लिए अनिवार्य है कि वापस जाए और मीक़ात से एहराम बाँधे। यदि वह ऐसा न करे और जद्दा ही से एहराम बाँधे, तो उसपर एक दम (क़ुर्बानी) अनिवार्य है। अतः वह मक्का में एक बकरी जबह करेगी और उसे हरम के ग़रीबों और मिसकीनों में बाँट देगी।
इब्ने क़ुदामा रहिमहुल्लाह ने कहा : ”सारांश यह कि जो भी व्यक्ति (हज्ज या उम्रा के) अनुष्ठान का इरादा रखते हुए एहराम के बिना मीक़ात को पार करता है, तो उसे वापस जाना चाहिए और वहाँ से एहराम बाँधना चाहिए, यदि वह ऐसा कर सकता है, चाहे उसने उसे जानबूझकर पार किया हो या अनजाने में, उसे उसके हराम होने का ज्ञान हो या वह उससे अनभिज्ञ हो। यदि वह मीक़ात पर जाकर वहाँ से एहराम में प्रवेश करे, तो उसपर कुछ भी अनिवार्य नहीं है। हम इसके विषय में कोई मतभेद नहीं जानते। यही जाबिर बिन ज़ैद, अल-हसन, सईद बिन जुबैर, सौरी, शाफ़ेई और अन्य लोगों का दृष्टिकोण है; क्योंकि उसने उसी मीक़ात से एहराम में प्रवेश किया है, जहाँ से उसे एहराम में प्रवेश करने का आदेश दिया गया है। इसलिए उसपर कुछ भी अनिवार्य नहीं है, जैसे कि उसने उसे पार ही न किया हो। लेकिन अगर वह मीक़ात के भीतर ही से एहराम बाँधे, तो उसपर एक दम (क़ुर्बानी) अनिवार्य है।”
“अल-मुग़्नी (3/115) से उद्धरण समाप्त हुआ।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।
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साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर