रोज़े की सुन्नतें क्या हैं ॽ
रोज़े की कुछ सुन्नतें
प्रश्न: 39462
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।
रोज़े की सुन्नतें बहुत हैं, उनमें से कुछ निम्लिखित हैं :
सर्व प्रथम :
रोज़ेदार के लिए मसनून है कि यदि कोई उसे गाली दे या उससे लड़ाई झगड़ा करे तो उसकी बुराई का बदला अच्छाई से दे और कहे कि : मैं रोज़े से हूँ, क्योंकि बुखारी और मुस्लिम ने अबू हुरैरा – रज़ियल्लाहु अन्हु – से रिवायत किया है कि अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : ‘‘रोज़ा ढाल है, अतः वह (यानी रेज़ेदार रोज़े की हालत में) अश्लील व अशिष्ट बातें न करे और अज्ञानता और मूर्खता के काम न करे, और अगर कोई व्यक्ति उससे लड़ाई झगड़ा करे, या उससे गाली गलूज करे, तो उसे कहना चाहिए कि : मैं रोज़े से हूँ, मैं रोज़े से हूँ। उस अस्तित्व की क़सम ! जिसके हाथ में मेरी जान है, रोज़ेदार के मुँह की बू अल्लाह के निकट कस्तूरी की सुगंध से अधिकतर अच्छी है, वह अपना खाना, पानी और कामवासना मेरी वजह से त्याग कर देता है, रोज़ा मेरे लिए है और मैं ही इसका बदला दूँगा, और नेकी उसके दस गुना के बराबर हो जाती है।’’ (बुखारी, हदीस संख्या : 1894, मुस्लिम, हदीस संख्या : 1151).
दूसरी :
रोज़ेदार के लिए सेहरी करना मसनून है, क्योंकि सहीह बुखारी व सहीह मुस्लिम में अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहु अन्हु से प्रमाणित है कि उन्हों ने कहा कि : नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : ‘‘सेहरी करो क्योंकि सेहरी में बरकत है।’’ इसे बुखारी (हदीस संख्या : 1923) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 1095) ने रिवायत किया है।
तीसरी :
सेहरी में विलंब करना सुन्नत है, क्योंकि बुखारी ने अनस से, उन्हों ने ज़ैद बिन साबित रज़ियल्लाहु अन्हुम से रिवायत किया है कि उन्हों ने कहा : ‘‘हम ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ सेहरी की फिर आप नमाज़ के लिए खड़े हुए, मैं ने कहा: अज़ान और सेहरी के बीच कितना अंतर था ॽ उन्हों ने कहा : पचास आयत पढ़ने के बराबर।” इसे बुखारी (हदीस संख्या : 1921) ने रिवायत किया है।
चौथी :
इफ्तार में जल्दी करना सुन्नत है, क्योंकि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : ‘‘लोग निरंतर भलाई में रहेंगे जबतक इफ्तार करने में जल्दी करते रहेंगे।’’ इसे बुखारी (हदीस संख्या : 1957) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 1098) ने रिवायत किया है, प्रश्न संख्या (49716) का उत्तर देखिए।
पाँचवी :
मसनून तरीक़ा यह है कि रूतब (पके हुए ताज़ा खजूर) पर रोज़ा इफ्तार किया जाए, यदि वह न मिले तो (सूखे) खजूर पर यदि वह भी न मिले तो पानी पर, क्योंकि अनस रज़ियल्लाहु अन्हु की हदीस है कि उन्हों ने कहा : ‘‘अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम नमाज़ पढ़ने से पहले कुछ रूतब पर इफ्तार करते थे, यदि वह न होती थीं तो चंद खजूरों पर, यदि वह भी उपलब्ध ने होती तो चंद घूँट पानी पी लेते थे।’’ इसे अबू दाऊद (हदीस संख्या : 2356), तिर्मिज़ी (हदीस संख्या :696) ने रिवायत किया है, और अल्बानी ने इर्वाउल-गलील (4/45) में इसे हसन कहा है।
छठी :
रोज़ा इफ्तार करते समय वर्णित दुआ पढ़ना सुन्नत है, और जो दुआ वर्णित है वह बिस्मिल्लाह कहना है, और शुद्ध मत के अनुसार वह वाजिब है, क्योंकि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उसका आदेश दिया है, तथा ‘‘अल्लाहुम्मा लका सुम्तो व अला रिज़क़िका अफ्तरतो, अल्लाहुम्मा तक़ब्बल मिन्नी इन्नका अंतस्समीउल अलीम’’ वर्णित है, लेकिन वह ज़ईफ (कमज़ोर) है जैसाकि इब्नुल क़ैयिम ने ज़ादुल मआद (2/51) में कहा है, तथा ‘‘ज़हा-बज़्ज़मा-ओ वब्ब-तल्लतिल उरूक़ो व सबा-तल अज्रो इन-शा-अल्लाह’’ वर्णित है, इसे अबू दाऊद (हदीस संख्या : 2357)और बैहक़ी (4/239) ने रिवायत किया है और अल्बानी ने इर्वाउल गलील (4/39) में हसन कहा है।
तथा रोज़ेदार की दुआ की फज़ीलत (विशेषता) में कई हदीसें वर्णित हैं जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं:
1- अनस रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “तीन दुआयें अस्वीकार नहीं की जाती हैं : पिता की दुआ, रोज़ेदार की दुआ और मुसाफिर की दुआ।” इसे बैहक़ी (3/345) ने रिवायत किया है और अल्बानी ने सिलसिला सहीहा (हदीस संख्या : 1797) में सहीह कहा है।
2- अबू उमामा से मरफूअन रिवायत है कि : ‘‘हर रोज़ा इफ्तार के समय अल्लाह के कुछ जहन्नम से आज़ाद किए हुए बंदे होते हैं।’’ (यानी कुछ लोगों को अल्लाह तआला रोज़ा खोलने के समय आज़ाद कर देता है) इसे अहमद (हदीस संख्या : 21698) ने रिवायत किया है और अल्बानी ने सहीहुत् तरगीब (1/491) में इसे सहीह कहा है।
3- अबू सईद अल-खुदरी रज़ियल्लाहु अन्हु से मरफूअन रिवायत है कि : ‘‘हर दिन और रात में – यानी रमज़ान के महीने में – अल्लाह तबारका व तआला के कुछ जहन्नम से मुक्त किए हुए बंदे होते हैं, और हर मुसलमान के लिए प्रति दिन रात में एक मक़बूल (स्वीकृत) दुआ होती है।’’ इसे बज़्ज़ार ने रिवायत किया है, और अल्बानी ने सहीहुत तरगीब (1/491) में सहीह कहा है।
स्रोत:
साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर
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