विद्वानों ने इस बात पर सहमति जताई है कि दुआ, क्षमा याचना (इस्तिग़फ़ार), दान और हज्ज मृतक तक पहुँचते हैं।
जहाँ तक दुआ और इस्तिग़फ़ार (गुनाहों की माफी के लिए याचना करने) का संबंध है, तो इसके बारे में अल्लाह तआला ने फरमाया है :
وَالَّذِينَ جَاءُوا مِن بَعْدِهِمْ يَقُولُونَ رَبَّنَا اغْفِرْ لَنَا وَلِإِخْوَانِنَا الَّذِينَ سَبَقُونَا بِالْإِيمَانِ
سورة الحشر: 10
“और (उनके लिए) जो उन (मुहाजिरीन एवं अनसार) के बाद आए, वे कहते हैं : ऐ हमारे पालनहार! हमें क्षमा कर दे और हमारे उन भाइयों को भी जो हमसे पहले ईमान ला चुके हैं।” (सूरतुल हश्र : 10)
तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया : “अपने भाई के लिए क्षमा याचना करो और उसके लिए साबित क़दम रहने (सुदृढ़ता) का प्रश्न करो, क्योंकि अब उससे सवाल किया जा रहा है।”
तथा आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "जब तुम मृतक के जनाज़ा की नमाज़ पढ़ो, तो उसके लिए निष्ठापूर्वक दुआ करो।"
रही बात मृतक की ओर से दान करने की, तो सहीहैन में आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा से प्रमाणित है : “एक आदमी ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से कहा : मेरी माँ की अचानक मृत्यु हो गई और वह वसीयत नहीं कर सकीं। लेकिन मेरा ख़्याल है कि अगर उन्हें बोलने का अवसर मिलता, तो वह कुछ न कुछ दान करतीं। अगर मैं उनकी ओर से दान करूँ, तो क्या उनको सवाब मिलेगाॽ नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : हाँ।” इसे बुखारी (हदीस संख्या : 1388) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 1004) ने रिवायत किया है।
तथा बुख़ारी में सअद बिन उबादह रज़ियल्लाहु अन्हु से प्रमाणित है कि : उनकी माँ की मृत्यु हो गई जबकि वह अनुपस्थित थे। तो उन्होंने कहा : ऐ अल्लाह के रसूल, मेरी माँ की मृत्यु हो गई जबकि मैं उनके पास उपस्थित नहीं था। क्या यदि मैं उनकी ओर से दान करूँ, तो इससे उन्हें लाभ होगाॽ” तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : हाँ। उन्होंने कहा : मैं आपको गवाह बनाता हूँ कि मेरा “मिख़राफ़” नामक (खजूर का) बाग उनकी ओर से दान है।” इसे बुखारी (हदीस संख्या : 2756) ने रिवायत किया है।
जहाँ तक मृतक की ओर से हज्ज करने का संबंध है, तो पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उस महिला से, जिसने आपसे हज्ज के बारे में पूछा था, कहा : “तेरा क्या विचार है यदि तेरी माँ पर क़र्ज़ होता, तो क्या तू उसका भुगतान करतीॽ उसने का : हाँ। आपने फरमाया : तो अल्लाह का क़र्ज़ भुगतान किए जाने के अधिक योग्य है।” इसे बुखारी (हदीस संख्या : 6699) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 1148) ने रिवायत किया है।
ऊपर उल्लेख की गई बातों से आपको पता चल गया होगा कि मृतक की ओर से दान करना, उसे लाभ देगा और उसका सवाब उस तक पहुँचेगा।
मृतक की ओर से नमाज़ पढ़ने के बारे में एक ज़ईफ़ (कमज़ोर) हदीस रिवायत की गई है। और इमाम मुस्लिम ने सहीह मुस्लिम के प्राक्कथन में अब्दुल्लाह बिन अल-मुबारक के बारे में उल्लेख किया है कि उन्होंने ने इस हदीस को ज़ईफ़ (कमज़ोर) क़रार दिया है, फिर उनहोंने कहा :
“दान देने (अर्थात् मृतक की ओर से दान देने) के संबंध में कोई मतभेद नहीं है।” उद्धरण समाप्त हुआ।
इमाम नववी ने कहा :
उनके कथन : “दान देने के संबंध में कोई मतभेद नहीं है।” का अर्थ यह है कि इस हदीस को सबूत (प्रमाण) के रूप में नहीं लिया जाएगा। लेकिन जो कोई भी अपने माता-पिता के साथ सद्व्यवहार करना चाहता है, उसे उनकी ओर से दान देना चाहिए। क्योंकि दान मृतक तक पहुँचेगा और वह उससे लाभान्वित होगा। इसके बारे में मुसलमानों के बीच कोई मतभेद नहीं है और यही सही दृष्टिकोण है। जहाँ तक उस बात का संबंध है जिसे शाफेई धर्मशास्त्री महा न्यायधीश अबुल-हसन अल-मावर्दी अल-बसरी ने अपनी किताब ‘अल-हावी’ में कुछ मुतकल्लिमीन से उल्लेख किया है कि मृतक को उसकी मृत्यु के बाद कोई भी सवाब नहीं पहुँचता है, तो वह निश्चित रूप से एक गलत मत और एक स्पष्ट गलती है, जो क़ुरआन और सुन्नत के ग्रंथों (नुसूस) और उम्मत की सर्वसम्मति के विरुद्ध है। इसलिए इस पर कोई ध्यान नहीं दिया जाएगा।
जहाँ तक मृतक की ओर से नमाज़ पढ़ने और रोज़ा रखने का संबंध है, तो शाफ़ेई और जमहूर विद्वानों का मत यह है कि इनका सवाब मृतक को नहीं पहुँचता है। परंतु अगर मृतक पर वह रोज़ा वाजिब हो, फिर उसका वली या वली जिसे अनुमति दे, उसे उसकी ओर से क़ज़ा करे, तो इसके बारे में इमाम शाफेई के दो विचार हैं, जिनमें सबसे प्रसिद्ध यह है कि यह मान्य (सही) नहीं है, तथा बाद के शाफ़ेई विद्वानों में से अनुसंधानकर्ताओं के निकट उनमें सबसे सही राय यह है कि यह मान्य है।
रही बात मृतक की ओर से क़ुरआन पढ़ने की, तो शाफ़ेई मत में प्रसिद्ध दृष्टिकोण यह है कि उसका सवाब मृतक को नहीं पहुँचता है। जबकि उनके कुछ साथियों का कहना है कि उसका सवाब मृतक को पहुँचता है। तथा विद्वानों के कुछ समूहों का विचार यह है कि नमाज़, रोज़ा, क़ुरआन के पाठ आदि… सभी इबादतों का सवाब मृतक को पहुँचता है। फिर नववी ने उल्लेख किया है कि दुआ, दान और हज्ज का सवाब, विद्वानों की सहमति के अनुसार, मृतक को पहुँचता है।” कुछ संशोधन के साथ उद्धरण समाप्त हुआ।
तोहफ़तुल-मुहताज (7/72) में कहते हैं :
“मृतक को उसकी ओर से दान करना लाभ पहुँचाता है। जिसमें मुसहफ (क़ुरआन की प्रतियाँ) आदि का वक़्फ़ करना, कुआँ खोदना और पेड़ लगाना शामिल है। चाहे ये सारी चीज़ें वह अपने जीवनकाल के दौरान स्वयं करे या उसकी मृत्यु के बाद उसकी ओर से किसी और के द्वारा किया जाए।” उद्धरण समाप्त हुआ।
जहाँ तक अपने पिता को लाभ पहुँचाने के सर्वोत्तम तरीक़े का संबंध है, तो आपको उनके लिए अधिक से अधिक दुआ करना चाहिए। अल्लाह तआला ने फरमाया :
وَقُلْ رَّبِّ ارْحَمْهُمَا كَمَا رَبَّيَانِي صَغِيرًا
“और कहते रहो : ऐ मेरे पालनहार! उन दोनों पर दया कर, जिस प्रकार उन्होंने बचपन में मुझे पाला है।” (सुरतुल इस्रा : 24).
तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “जब किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है, तो उसके कार्य का क्रम बाधित हो जाता है, सिवाय तीन चीज़ों के : सदक़ा जारिया (जारी रहने वाला दान), या ऐसा ज्ञान जिससे लाभ उठाया जाए, या नेक संतान जो उसके लिए दुआ करे।” इसे मुस्लिम (हदीस संख्या : 1631) ने रिवायत किया है।
जहाँ तक दान का संबंध है, तो सबसे अच्छी चीज़ों में से जिन पर दान खर्च किया जा सकता है, अल्लाह तआला के मार्ग में जिहाद, मस्जिदों का निर्माण और शरई ज्ञान के छात्रों की, उनके लिए किताबें छापकर या उन्हें वे पैसे देकर, मदद करना है, जिनकी उन्हें ज़रूरत होती है।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।