जो लड़की अभी तक बालिग़ नहीं हुई हैं, उसके लिए पैंट और नग्न कपड़े पहनने का क्या हुक्म हैॽ
लड़की का छोटे और नग्न कपड़े पहनना
प्रश्न: 43485
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
छोटे बच्चे एवं बच्ची के गुप्तांगों (शरीर के वे भाग जिनका छिपाना आवश्यक है) की सीमा के बारे में क़ुरआन या सुन्नत से स्पष्ट प्रमाण नहीं आए हैं। ज़्यादातर फ़ुक़हा का मत यह है कि जब लड़की इच्छा के बिंदु पर पहुँच जाए, अर्थात् वह शुद्ध प्रकृति के लोगों के निकट वांछित हो जाए, तो उसका गुप्तांग (सत्र) एक वयस्क (बालिग़) महिला की तरह है। लेकिन अगर वह इच्छा के स्तर तक नहीं पहुँची है, तो उसके हिजाब के बारे में रियायत देना जायज़ है यहाँ तक कि वह इस सीमा तक पहुँच जाए।
शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह ने फरमाया : “छोटी बच्ची के सत्र का कोई हुक्म नहीं है और वह अपना चेहरा, गर्दन, हाथ और पैर को ढंकने के लिए बाध्य नहीं है, और लड़की को ऐसा करने के लिए बाध्य नहीं किया जाना चाहिए। लेकिन जब कोई लड़की उस सीमा को पहुँच जाए जब पुरुष उसकी ओर आकर्षित हो सकते हैं और उसकी इच्छा कर सकते हैं, तो उसे फ़ित्ना और बुराई को दूर करने के लिए परदा करना चाहिए। और यह अलग-अलग महिलाओं के अनुसार भिन्न होता है, क्योंकि उनमें से कुछ तेजी से बढ़ती हैं और अच्छे यौवन वाली (आकर्षक) होती हैं, और उनमें से कुछ इसके विपरीत होती हैं।”
जहाँ तक उसे नंगे कपड़े पहनाने की बात है, तो बेहतर यह है कि छोटी लड़की को ऐसे कपड़ों की आदत न डाली जाए। क्योंकि यह बात महत्वपूर्ण है कि लड़की प्रतिष्ठा (मर्यादा) प्रेम पर पल-बढ़े ताकि वह इसका अभ्यस्त हो जाए। इसीलिए इस्लाम ने बच्चों के लिए एक प्रारंभिक चरण बनाया है, ताकि वे उसमें नमाज़ पढ़ना सीखें। और इसे उनपर अचानक अनिवार्य नहीं किया है; क्योंकि इसके लिए आदत डालने और प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है।
जब लड़की नौ साल की हो जाए, तो उसे प्रशिक्षित किया जाना चाहिए और सिखाया जाना चाहिए कि उसपर बालिग़ होन से पहले क्या अनिवार्य है।
यह उचित नहीं है कि गुप्तांगों (सत्र) को ढकने और छोड़ने के बीच की सीमा वह रात हो जब लड़की मासिक धर्म के द्वारा महिलाओं के स्तर तक पहुँच जाए… ऐसा नहीं होना चाहिए।
शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह ने कहा : “मैं समझता हूँ कि एक व्यक्ति को अपनी बेटी को, जब वह छोटी हो, यह पोशाक नहीं पहनाना चाहिए। क्योंकि अगर उसे इसकी आदत हो गई, तो वह इसे पहनना जारी रखेगी और वह इस मामले को हल्के में लेगी। लेकिन अगर उसे कम उम्र ही से शालीनता की आदत हो गई, तो वह बड़ी होकर उसी स्थिति पर बनी रहेगी। मैं अपनी मुसलमान बहनों को सलाह देता हूँ कि वे इस्लाम के दुश्मन विदेशियों के कपड़ों को त्याग दें और अपनी बेटियों को बा-परदा (ढकने वाले) कपड़े पहनने की और शालीनता की आदत डालें, क्योंकि यह ईमान का हिस्सा है।”
“अद-दावा” पत्रिका, अंक :1709, पृष्ठ : 35, में शैख इब्ने उसैमीन के फतावा से।
यह बात सर्वज्ञात है कि सात वर्ष से कम उम्र के बच्चों के सत्र (गुप्तांगों) का कोई हुक्म (प्रावधान) नहीं है, लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं कि बच्चों को इन छोटे अभद्र कपड़ों के पहनने की आदत डालना उनके लिए भविष्य में अपने गुप्तांगों (सत्र) को उजागर करना आसान बना देगा। बल्कि, हो सकता है कि एक व्यक्ति को अपनी जाँघ को उजागर करने में शर्म न आए, क्योंकि जब वह छोटा था तब वह उसे उजागर किया करता था और उसकी परवाह नहीं करता था।
इसलिए हमें बच्चों को, भले ही वे छोटे हों, ऐसे कपड़े पहनने से रोकना चाहिए।
स्रोत:
साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर