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उनका इमाम हकला है, जबकि कुछ मुक़तदी इस बात को गुप्त रखते हैं कि वह सबसे अधिक क़रआन का ज्ञान रखते हैं।

प्रश्न: 43737

हमारा इमाम कुछ शब्दों को दूसरे शब्दों से बदल देता है, और हमारे बीच ऐसे व्यक्ति हैं जो क़ुरआन को अच्छी तरह से पढ़ना जानते हैं और उन्हें कुरआन का अच्छा ख़ासा हिस्सा याद भी है।
तो उस वर्णित व्यक्ति की इमामत का क्या हुक्म है? और उस मुक़तदी का क्या हुक्म है जो क़ुरआन को सबसे अच्छा याद रखने वाला और पढ़ने वाला है जबकि वह अपने क़ुरआन का अच्छी तरह पाठ करने और कंठस्थ करने के तथ्य को स्पष्ट नहीं करता है?

उत्तर का पाठ

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

सर्व प्रथम :

यह बात प्रश्न संख्या (50536) के उत्तर में बीत चुकी है कि विद्वानों ने हकलाने वाले (तुतलाने वाले) व्यक्ति (जो कुछ शब्दों को दूसरे शब्दों से बदल देता है) की इमामत के हुक्म के बारे में मतभेद किया है, और यह कि सही बात यह है कि उसकी इमामत सही है, लेकिन बेहतर यह है कि जो व्यक्ति क़ुरआन को शुद्ध रूप से पढ़ता है उसे इमामत के लिए प्राथमिकता दी जाए।

शैख़ मुहम्मद अस्सालेह अल उसैमीन रहिमहुल्लाह फरमाते हैं कि :

''जब कोई अनपढ़ जो सूरतुल फ़ातिहा पढ़ना नहीं जानता है, अपने ही तरह किसी अनपढ़ की इमामत कराए, (और यहाँ अनपढ़ से अभिप्राय वह व्यक्ति है जो अच्छी तरह से सूरतुल फातिहा पढ़ना नहीं जानता है) : तो उसकी नमाज़ सही है, क्योंकि कमी में दोनों लोग समान हैं। और अगर कोई अनपढ़ किसी क़ारी की इमामत कराए (और यहाँ क़ारी से मुराद वह व्यक्ति है जो सूरतुल फातिहा को अच्छी तरह से पढ़ना जानता है) : तो यह सही नहीं है, और यही हनाबिला का भी मत है।

इसका कारण यह है कि : मुक़तदी की स्थिति इमाम से सर्वोच्च है, तो सर्वोच्च व्यक्ति कमतर व्यक्ति की इक्तिदा (अनुसरण) कैसे कर सकता है।

दूसरा कथन – और यह इमाम अहमद से एक रिवायत है कि – : यह है कि अनपढ़ व्यक्ति का क़ारी (पढ़े हुए) का इमाम होना सही है, लेकिन उचित यह है कि हमें इस से बचना चाहिए ; क्योंकि इस में अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के फ़रमान कि : (क़ौम की इमामत वह व्यक्ति कराए जो उन में सब से अधिक कु़रआन का पढ़ने वाला हो) का कुछ विरोध पाया जाता है। तथा इस बारे में पाये जानेवाले मतभेद की रियायत करते हुए भी (हमें ऐसा नहीं करना चाहिए)।

“और यदि वह उसका सुधार करने में सक्षम है, तो उसकी नमाज़ सही नहीं होगी।”

अर्थात: अगर अनपढ़ व्यक्ति उस गलती का सुधार करने में सक्षम है जो अर्थ को बदल देती है, और उसने उसका सुधार नहीं किया : तो उसकी नमाज़ सही नहीं है। और यदि वह उस गलती को सुधारने की क्षमता नहीं रखता है : तो उस की नमाज़ सही है, लेकिन उसकी इमामत सही नहीं है, सिवाय इसके कि वह अपने ही समान लोगों की इमामत कराए।

लेकिन सही बात यह है कि : इस स्थिति में उसकी इमामत सही है, क्योंकि वह सूरतुल् फातिहा को सही ढंग से पढ़ने में असमर्थ होने की वजह से क्षम्य है, और अल्लाह तआला का फरमान है:

فاتقوا الله ما استطعتم        التغابن : 16

‘‘तुम अपनी ताक़त भर अल्लाह से डरो।’’(सूरतुत तगाबुन : 16)

और एक दूसरे स्थान पर अल्लाह तआला ने फरमाया :

لا يُكَلِّفُ اللَّهُ نَفْساً إِلاَّ وُسْعَهَا                البقرة: 286

‘‘अल्लाह तआला किसी प्राणी पर उसकी शक्ति से अधिक भार नहीं डालता।’’ (सूरतुल बक़रा : 286)

तथा कुछ दीहातों-जंगलों में ऐसे लोग भी पाए जाते हैं जो सही ढंग से सूरतुल-फातिहा का उच्चारण नहीं कर सकते, चुनाँचे कभी कभार आप उसे ‘‘अहदिना’’ (अलिफ़ के जबर के साथ) पढ़ते हुए सुनेंगे, और वह केवल वही पढ़ सकता है जिसकी उसे आदत है, और गलतियों को सुधारने में असमर्थ व्यक्ति की नमाज़ सही है। परंतु जो व्यक्ति गलतियों को सुधारने की क्षमता रखता है : उसकी नमाज़ सही नहीं है, यदि उससे शब्द का अर्थ बदल जाता है।“

''अश-शरहुल मुमतिअ'' (4/248-249)

जिस व्यक्ति की क़िराअत अच्छी नहीं है, उस को इमामत के लिए आगे बढ़ाना उचित नहीं है, चाहे वह हाफिज़ ही क्यों न हो, बल्कि इमामत के लिए उसी व्यक्ति को प्राथमिकता दी जाएगी जिसकी क़िराअत अच्छी है, वह इस प्रकार कि वह सारे अक्षरों को उसके निकलने के ठीक स्थानों से निकाले (उच्चारण करे), और इसके साथ ही वह नमाज़ के अहकाम व मसायल का ज्ञान रखने वाला हो।

शैख़ मुहम्मद सालेह अल उसैमीन रहिमहुल्लाह फरमाते हैं कि :

उन का कथन “इमामत का सबसे अधिक योग्य कुरआन का सबसे अधिक पढ़ने वाला नमाज़ के शास्त्र का ज्ञान रखनेवाला है।’’ में सबसे अधिक पढ़ने वाले से अभिप्राय क्या है? क्या इससे मुराद सबसे अच्छी तिलावत करनेवाला है, और वह ऐसा व्यक्ति है जिसकी क़िराअत सम्पूर्ण होती है, वह सारे अक्षरों को उनके निकलने के सही स्थानों से निकालता है, और उन्हें सबसे सम्पूर्ण तरीक़े से अदा करता है, या कि उससे अभिप्राय सबसे ज़्यादा क़िराअत (पाठ) करने वाला है?

इसका उत्तर यह है कि : “इससे मुराद सबसे अच्छी क़िराअत करनेवाला है। अर्थात: जो व्यक्ति उसे तज्वीद (अक्षरों के शुद्ध उच्चारण) के साथ पढ़ता है। लेकिन इस से मुराद वह तज्वीद नहीं है जो आज परिचित है, जिसमें गुन्ना और मद्द आदि होते हैं। कुरआन के पाठ के लिए अच्छी आवाज़ और गुन्ना का होना र्शत नहीं है, अगरचे अच्छी आवाज़ वाला क़ारी है तो बेहतर बात है, लेकिन अच्छी आवाज़ का होना र्शत नहीं है।

और उनका कथन : “नमाज़ के शास्त्र का ज्ञान रखनेवाला हो” अर्थात : जो नमाज़ के अहकाम और प्रावधानों को जानता हो, इस तौर पर कि यदि नमाज़ में कोई सह्व (चूक) आदि हो जाऐ तो उस पर शरई अहकाम लागू कर सके।

यह तो इमामत के आरंभ की बात है, अथार्त: यदि कोई जमाअत (समूह) है, और वे उनमें से किसी एक को इमामत के लिए आगे बढ़ाना चाहते हैं। लेकिन यदि मस्जिद का कोई स्थायी इमाम है तो प्रत्येक स्थिति में वही योग्यतम है जब तक कि उसकी इमामत में कोई रूकावट वाली चीज़ नहीं पाई जाती है।

‘‘अश-शरहुल मुम्तिअ’’ (4/205, 206) संक्षेप के साथ।

दूसरा :

जो व्यक्ति क़ुरआन का अच्छा पाठ कर लेता है, उसके लिए उचित नहीं है कि वह अपने आप को गुप्त रखे और किसी ऐसे व्यक्ति को इमामत के लिए बढ़ाया जाए जो अच्छी तरह से क़ुरआन का पाठ नहीं कर सकता। क्योंकि इस में अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के इस कथन की मुख़ालफ़त है कि : “कौम की इमामत वह कराए जो उन में सब से अच्छा क़ुरआन पढ़ने वाला है . . . ’’ (सही मुस्लिम, हदीस संख्या : 673)

हदीस के शब्द :   يؤم القوم – यउम्मुल क़ौम) अर्थात ''क़ौम की इमामत कराता है'' की व्याख्या में अल्लामा तीबी कहते हैं : यह आदेश के अर्थ में है, अथार्त: (लि-यउम्मोहुम) वह उन की इमामत कराए।

हाफ़िज़ इब्ने हजर रहिमहुल्लाह ‘‘फत्हुल बारी’’ में उल्लेख करते हुए कहते हैं कि : ''यह बात रहस्य नहीं है कि सबसे अच्छा क़ुरआन पढ़ने वाले को प्राथमिकता देने या आगे बढ़ाने का स्थान वहाँ है जब वह नमाज़ के उन अहकाम व मसायल को जानता हो जिनका जानना ज़रूरी है। लेकिन अगर वह उससे अनभिज्ञ है तो सर्वसम्मति के साथ उसे इमामत के लिए आगे नहीं बढ़ाया जायेगा।'' अंत हुआ।

इस्लाम प्रश्न और उत्तर

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