डाउनलोड करें
0 / 0

तरावीह की नमाज़ की फज़ीलत

प्रश्न: 48957

तरावीह की नमाज़ की क्या फज़ीलत है?

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

सर्व प्रथम :

तरावीह की नमाज़ विद्वानों की सहमति के अनुसार एक ऐच्छिक सुन्नत है, और क़ियामुल-लैल (रात की नमाज़) के तहत आती है। अतः क़ियामुल-लैल पर प्रोत्साहित करने और उसकी फ़ज़ीलत का वर्णन करने के बारे में वर्णित क़ुरआन और सुन्नत के प्रमाण तरावीह की नमाज़ को भी शामिल हैं। प्रश्न संख्याः (50070) में उनमें से कुछ प्रमाणों का उल्लेख किया जा चुका है।

दूसरी बात यह है :

रमजान में क़ियाम करना सबसे महान इबादतों में से है, जिसके द्वारा बंदा इस महीने में अपने पालनहार की निकटता प्राप्त कर सकता है।

हाफ़िज़ इब्ने रजब ने कहा : ''यह बात जान लो कि मोमिन के लिए रमज़ान के महीने में उसके नफ़्स के लिए दो जिहाद (संघर्ष) एकत्रित हो जाते हैं : दिन के दौरान रोज़े पर जिहाद (संघर्ष) और रात में क़ियाम की नमाज़ अदा करने पर जिहाद (संघर्ष)। जिसने भी इन दोनों प्रकार के जिहादों को एकत्रित कर लिया, उसे उसका बदला बिना हिसाब के (असीम) दिया जाएगा।'' उद्धरण समाप्त हुआ।

रमजान में क़ियाम करने पर प्रोत्साहित करने और उसकी फ़ज़ीलत का वर्णन करने के बारे में कुछ विशिष्ट हदीसें वर्णित हैं, जिनमें से एक निम्नलिखित हदीस है :

बुखारी (हदीस संख्या : 37) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 759) ने अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : ''जिसने भी ईमान (विश्वास) के साथ और पुण्य की आशा रखते हुए रमज़ान का क़ियाम किया, तो उसके पिछले पाप क्षमा कर दिए जाएंगे।''

''जिसने भी रमज़ान का क़ियाम किया'' अर्थात जिसने उसकी रातों को नमाज़ में बिताया।

''विश्वास के साथ'' अर्थात अल्लाह ने उसपर जिस सवाब का वादा किया है उसपर विश्वास रखते हुए।

''और पुण्य की आशा रखते हुए'' अर्थात अज्र व सवाब चाहते हुए, किसी अन्य उद्देश्य जैसे कि दिखावा आदि के लिए नहीं।

"उसके पिछले पाप क्षमा कर दिए जाएंगे।''

इब्नुल-मुंज़िर ने निश्चित रूप से बयान किया है कि यह छोटे और बड़े दोनों तरह के पाप को शामिल है। लेकिन नववी ने कहा है कि : फुक़हा के बीच जो सर्वज्ञात है वह यह है कि यह केवल छोटे पापों की माफी के साथ विशिष्ट है, बड़े पापों के लिए नहीं। उनमें से कुछ का कहना है : हो सकता है कि इससे बड़े पापों का बोझ कम हो जाए, जबकि छोटे पाप न हों।'' फत्हुल-बारी से समाप्त हुआ।

तीसरा :

मोमिन को अन्य समय की तुलना में रमज़ान की अंतिम दस रातों में इबादत में अधिक संघर्ष करने के लिए उत्सुक होना चाहिए। क्योंकि इन दस रातों में लैलतुल-क़द्र है, जिसके बारे में अल्लाह सर्वशक्तिमान ने फरमाया है :

  لَيْلَةُ الْقَدْرِ خَيْرٌ مِنْ أَلْفِ شَهْرٍ

[سورة القدر:3].

''क़द्र की रात एक हजार महीने से बेहतर है।'' (सूरतुल क़द्रः 3).

तथा इस रात में क़ियाम करने के सवाब के बारे में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का यह फरमान वर्णित है : “जिसने भी ईमान (विश्वास) के साथ और पुण्य की आशा रखते हुए लैलतुल-क़द्र को क़ियाम किया, तो उसके पिछले पाप क्षमा कर दिए जाएंगे।'' इसे बुखारी (हदीस संख्या : 1768) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 1268) ने रिवायत किया है।

इसीलिए ''अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अंतिम दस रातों में इबादत में ऐसी कड़ी मेहनत करते थे जो मेहनत आप अन्य समय में नहीं करते थे।'' इसे मुस्लिम (हदीस संख्या : 1175) ने रिवायत किया है।

बुखारी (हदीस संख्या : 2024) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 1174) ने आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायत किया है कि उन्होंने कहा : ''जब आखिरी दस दिन शुरू होते, तो पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम कमर कस लेते थे, अपनी रात को जागते थे और अपने परिवार को भी जगाते थे।''

''अंतिम दस दिन शुरू होते" अर्थात रमज़ान के अंतिम दस दिन।

''अपनी कमर कस लेते'' कहा गया है कि यह इबादत में कड़ी मेहनत करने को इंगित करता है। या एक कथन के अनुसार अपनी पत्नियों से दूर रहने का संकेतक है, और यह भी हो सकता है कि यह दोनों अर्थ को शामिल हो।

''अपनी रात को जागते थे'' का अर्थ यह है कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम रात को बेदार रहते थे और उसे नेकी के कामों, नमाज़ वग़ैरह में बिताते थे।

''और अपने परिवार को जगाते थे'' अर्थात् आप उन्हें रात में नमाज़ पढ़ने के लिए जगाते थे।

नववी ने कहा:

इस हदीस से ज्ञात होता है किः रमज़ान की आखिरी दस रातों के दौरान अधिक इबादतें करना मुस्तहब है, तथा उसकी रातों को इबादत के कामों में बिताना मुस्तहब है।'' उद्धरण समाप्त हुआ।

चौथा :

हमें रमजान में क़ियामुल-लैल की नमाज़ जमाअत के साथ पढ़ना चाहिए और इमाम के साथ तब तक रहना चाहिए जब तक कि वह नमाज़ ख़त्म न कर दे। क्योंकि इस तरह नमाज़ी को पूरी रात नमाज़ पढ़ने का पुण्य प्राप्त होगा, भले ही उसने नमाज़ में रात का एक छोटा हिस्सा ही बिताया हो। और अल्लाह तआला महान उपकार व अनुकंपा वाला है।

नववी रहिमहुल्लाह ने कहा :

“विद्वान इस बात पर सहमत हैं कि तरावीह की नमाज़ पढ़ना मुस्तहब है, लेकिन उन्होंन इस बारे में मतभैद किया है कि क्या उसे अकेले अपने घर में पढ़ना बेहतर है या मस्जिद में जमाअत के साथ पढ़ना? इमाम शाफ़ेई और उनके साथियों की बहुमत, इमाम अबू हनीफा, इमाम अहमद और कुछ मालिकिय्या और अन्य लोगों का कहना है किः यह नमाज़ जमाअत के साथ पढ़ना बेहतर है, जैसाकि उमर बिन अल-खत्ताब और सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम ने किया है, और इसी पर मुसलमानों का अमल जारी रहा है।” उद्धरण समाप्त हुआ।

तथा तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 806) ने अबू ज़र्र रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि उन्होंने कहा : अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "जिसने भी इमाम के साथ क़ियाम की नमाज़ पढ़ी यहाँ तक कि उसने उसे संपन्न कर लिया तो उसके लिए पूरी रात इबादत में बिताने का पुण्य लिखा जाएगा।" इसे अल्बानी ने ''सहीह तिर्मिज़ी'' में सहीह कहा है।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

स्रोत

साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर

at email

डाक सेवा की सदस्यता लें

साइट की नवीन समाचार और आवधिक अपडेट प्राप्त करने के लिए मेलिंग सूची में शामिल हों

phone

इस्लाम प्रश्न और उत्तर एप्लिकेशन

सामग्री का तेज एवं इंटरनेट के बिना ब्राउज़ करने की क्षमता

download iosdownload android