ईदुल-फित्र में तकबीर कहना कब आरंभ होता है और कब खत्म होता हैॽ
ईदुल-फित्र में तकबीर कहना कब शुरू होगा और कब समाप्त होगाॽ
प्रश्न: 48969
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
रमज़ान के महीने के अंत में अल्लाह तआला ने अपने बंदों के लिए धर्मसंगत किया है कि वे उसकी महानता (बड़ाई) का गान करें (अर्थात अल्लाहु अकबर) कहें। चुनांचे अल्लाह तआला ने फरमायाः
وَلِتُكْمِلُواْ ٱلْعِدَّةَ وَلِتُكَبِّرُواْ ٱللَّهَ عَلَىٰ مَا هَدَاكُمْ وَلَعَلَّكُمْ تَشْكُرُونَ البقرة : 185
“और ताकि तुम गिंती पूरी कर लो, और अल्लाह के प्रदान किए हुए मार्गदर्शन के अनुसार उसकी बड़ाई (महानता) का वर्णन करो और तुम उसके आभारी बनो।” (सूरतुल बक़राः 185)
''अल्लाह की बड़ाई का वर्णन करो'' अर्थात अपने दिल और अपनी ज़बान से उसकी महानता का वर्णन करो, और यह तकबीर के शब्द द्वारा (अर्थात अल्लाहु अकबर कहकर) होगा।
चुनांचे आप कहेंगे : ''अल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर, ला इलाहा इल्लल्लाह, वल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर, व-लिल्लाहिल हम्द'' (अल्लाह तआला सबसे महान है, अल्लाह तआला सबसे महान है, अल्लाह तआला के अलावा कोई सत्य पूज्य नहीं, और अल्लाह तआला सबसे महान है, अल्लाह तआला सबसे महान है, और अल्लाह ही के लिए सभी प्रशंसाएँ हैं)।
या आप ''अल्लाहु अकबर'' को तीन बार कहें, चुनांचे आप इस तरह कहेंगे:
''अल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर, ला इलाहा इल्लल्लाह, वल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर, व-लिल्लाहिल हम्द'' (अल्लाह तआला सबसे महान है, अल्लाह तआला सबसे महान है, अल्लाह तआला सबसे महान है, अल्लाह तआला के अलावा कोई सत्य पूज्य नहीं, और अल्लाह तआला सबसे महान है, अल्लाह तआला सबसे महान है, और अल्लाह ही के लिए सभी प्रशंसाएँ हैं)।
ये सब अनुमेय हैं।
यह तकबीर विद्वानों की बहुमत के निकट सुन्नत है। तथा यह महिला और पुरुष दोनों के लिए, मस्जिदों, घरों और बाजारों में सुन्नत है।
जहाँ तक पुरुषों की बात है तो वे इसे ज़ोर से कहेंगे, परंतु महिलाएँ इसे धीमी स्वर में कहेंगी, ज़ोर से नहीं कहेंगी। क्योंकि महिला को अपनी आवाज़ धीमी रखने का आदेश दिया गया है। इसीलिए नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया है : ''अगर तुम्हें अपनी नमाज़ के दौरान कोई चीज़ पेश आ जाए, तो पुरुषों को 'सुबहान-अल्लाह' कहना चाहिए और महिलाओं को ताली बजानी चाहिए।''
इसलिए महिलाएं को चुपचाप तकबीर कहना चाहिए और पुरुषों को उसे ज़ोर से कहना चाहिए।
तकबीर कहने का समय ईद की रात सूरज डूबने से शुरू होता है यदि सूरज डूबने से पहले नये महीने के शुरू होने का पता चल जाता है जैसे कि अगर लोग रमजान के तीस दिन पूरे कर चुके हों, या उस समय से जब यह सिद्ध हो जाए कि शव्वाल के चाँद को देखा गया है। और इसका समय नमाज़ के साथ समाप्त हो जाता है अर्थात जब लोग ईद की नमाज़ पढ़ना शुरू कर देते हैं, तो तकबीर का समय समाप्त हो जाता है।
''मज्मूओ फतावा इब्ने उसैमीन” (16/269-272).
इमाम शाफ़ेई ने अपनी पुस्तक 'अल-उम्म' में फरमाया :
अल्लाह तआला ने रमज़ान के महीने के बारे में फरमाया है :
وَلِتُكْمِلُواْ ٱلْعِدَّةَ وَلِتُكَبِّرُواْ ٱللَّهَ عَلَىٰ مَا هَدَاكُمْ وَلَعَلَّكُمْ تَشْكُرُونَ البقرة : 185
“और ताकि तुम गिंती पूरी कर लो, और अल्लाह के प्रदान किए हुए मार्गदर्शन के अनुसार उसकी बड़ाई (महानता) का वर्णन करो और तुम उसके आभारी बनो।” (सूरतुल बक़राः 185)
मैंने क़ुरआन का ज्ञान रखने वाले कुछ विद्वानों को जिनसे मैं आश्वस्त हूँ यह कहते हुए सुना :
ताकि तुम रमज़ान के महीने के रोज़े की संख्या को पूरा करो और उसके पूरा करने के समय अल्लाह तआला की महिमा का गान करो इस बात पर कि उसने तुम्हारा मार्गदर्शन किया। और उसको पूरा करना रमज़ान के महीने के आखिरी दिन सूर्य का यास्त होना है।
फिर इमाम शाफ़ेई ने कहा:
जब वे शव्वाल के चाँद को देख लें, तो मुझे पसंद है कि लोग समूह में और अकेले, मस्जिदों, बाजारों, गलियों और घरों में, चाहे वे यात्री हों या गैर-यात्री सभी स्थितियों में और वे जहाँ भी हों, तकबीर कहें। तथा वे खुले तौर पर तकबीर कहें और निरंतर तकबीर कहते रहें यहाँ तक कि वे अगली सुबह नमाज़ के स्थल पर आएँ, और उसके बाद भी तकबीर कहना जारी रखें यहाँ तक कि इमाम नमाज़ के लिए बाहर निकले। फिर तकबीर कहना बंद कर दें . .
फिर उन्होंने सईद इब्नुल-मुसैयिब, उर्वा बिन जुबैर, अबू सलमा और अबू बक्र बिन अब्दुर-रहमान से वर्णन किया है कि वे ईदुल-फित्र की रात (चाँद-रात) को मस्जिद में तकबीर कहते थे और ज़ोर से तकबीर कहते थे।
तथा उर्वा बिन जुबैर और अबू सलमा बिन अब्दुर-रहमान से वर्णित है कि वे दोनों जब सुबह नमाज़-स्थल (ईदगाह) की ओर जाते थे, तो वे ज़ोर से तकबीर पढ़ते थे।
तथा नाफ़े बिन जुबैर से वर्णित है कि जब वह ईद के दिन सुबह ईदगाह के लिए जाते थे तो ज़ोर से तकबीर कहते थे।
तथा इब्ने उमर से यह वर्णन किया गया है कि वह ईदुल-फित्र के दिन जब सूरज उग आता था, तो ईदगाह के लिए निकलते थे और तकबीर पढ़ते रहते थे यहाँ तक कि ईदगाह पहुँच जाते। फिर ईदगाह में तकबीर पढ़ते थे यहाँ तक कि जब इमाम बैठ जाता तो तकबीर कहना बंद कर देते थे।” संक्षेप के साथ समाप्त हुआ।
स्रोत:
साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर