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6,82128/रमजान/1434 , 5/अगस्त/2013

क्या ईसवी तिथि के अनुसार तिथि डालना काफिरों से दोस्ती समझी जायेगी

سوال: 49021

क्या ईसवी तिथि के अनुसार तिथि अंकित करना काफिरों से दोस्ती रखने में से समझा जायेगा?

جواب کا متن

اللہ کی حمد، اور رسول اللہ اور ان کے پریوار پر سلام اور برکت ہو۔

उसे काफिरों से दोस्ती रखना नहीं समझा जायेगा,किंतु उसे उनकी समानता और छवि अपनाना समझा जायेगा।

सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम के समय काल में ईसवी तिथि विद्यमान थी, किंतु उन्हों ने उसे प्रयोग नहीं किया,बल्कि उस से उपेक्षा करते हुए हिजरी तिथि का प्रयोग किया। उन्हों ने हिजरी तिथि का अविष्कार किय, ईसवी तिथि का प्रयोग नहीं किया जबकि वह उनके समय काल में मौजूद थी। यह इस बात का प्रमाण है कि मुसलमानों के लिए आवश्यक है कि वे काफिरों (नास्तिकों) की रीति-रिवाज, परंपरा और संस्कार (धर्मकांड) से हट कर अपनी एक स्थायी पहचान बनायें,विशेषकर ईसवी तिथि (केलेंडर) उनके धर्म का प्रतीक है ;क्योंकि यह मसीह अलैहिस्सलाम के जन्म का आदर व सम्मान करने और वर्षगांठ पर उसका उत्सव मनाने को संकेतिक करता है,और यह एक बिद्अत (नवाचार) है जिसे ईसाईयों ने अविष्कार कर लिया है। अतः हम इस चीज़ में उनका साथ नहीं देंगे और न ही इस चीज़ पर उनको प्रोत्साहित करेंगे। यदि हम उनकी तितिथ के अनुसार तिथि अंकित करते हैं तो इसका मतलब यह हुआ कि हम उनकी नक़ल और अनुकरण करते हैं।

अल्लाह की सर्व प्रशंसा और गुण्गान है कि हमारे पास हिजरी तारीख (हिजरी केलेंडर) है जिसे हमारे लिए अमीरूल मोमिनीन खलीफा-ए-राशिद उमर बिन खत्ताब रज़ियल्लाहु अन्हु ने मुहाजिरीन और अंसार सहाबा की उपस्थिति में निर्धारित किया था,और यह हमें अन्य तिथियों (केलेंडर) से बेनियाज़ कर देता है।"

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