क़िस्मत (भाग्य) का चाहना यह हुआ कि रमज़ान का पहला सप्ताह मेरी शादी का सप्ताह है और मेरा पति अपनी इच्छाओं (कामवासना) पर नियंत्रण रखने पर सक्षम नहीं है, और मैं रोज़ा नहीं तोड़ना चाहती हूँ। मेरा पति मुझसे कहता है कि यदि मैं एक दिन रोज़ा तोड़कर उसे बाद में क़ज़ा का लूँ तो इसमे कोई हानि की बात नहीं है।
वह अपनी पत्नी से चाहता है कि वह बिना किसी कारण के रोज़ा तोड़ दे और बाद में क़ज़ा कर ले
प्रश्न: 49615
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।
सर्व प्रथम :
‘क़िस्मत (भाग्य) ने चाहा’ कहना सही नहीं है, क्योंकि जो चाहता है वह अकेला सब पर प्रभुत्व वाला सर्वशक्तिमान अल्लाह है।
प्रश्न संख्या (8621) के उत्तर में इसका उल्लेख किया जा चुका है।
दूसरा:
रमज़ान में अकारण (बिना उज़्र के) रोज़ा तोड़ देना सबसे बड़े गुनाहों में से है, और ऐसा करनेवाला फासिक़ (अवहेलना करनेवाला) है, उसके ऊपर अनिवार्य है कि इस बड़े पाप से अल्लाह के समक्ष तौबा (पश्चाताप) करे।
जो आदमी बिना किसी कारण के रमज़ान में रोज़ा तोड़ दे (रोज़ा न रखे), तो उसके बारे में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से सख्त धमकी (कड़ी चेतावनी) आई है।
हाकिम ने रिवायत किया है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने रमज़ान में बिना किसी कारण (उज़्र) के रोज़ा तोड़ देने वालों की यातना को देखा तो फरमाया :
तो मैं ने कुछ लोगों को देखा जो अपनी कूंचों के बल लटके हुए थे और उनके जबड़े फटे हुए थे, जिनसे खून बह रहे थे। मैं ने कहा : ये कौन लोग हैं! उन्हों ने कहा : ये ऐसे लोग हैं जो अपने रोज़ों के पूरे होने से पहले (रोज़ा खोलने के समय से पहले) रोज़ा तोड़ देते थे।’’ इसे अल्बानी से अस्सिलसिला अस्सहीहा (हदीस संख्या : 3951) में सहीह कहा है।
इस आधार पर इस पति को चहिए कि अल्लाह से डरे और रोज़े के मामले में लापरवाही न करे। क्योंकि मामला खतरनाक और गंभीर है।
और आपको चाहिए कि इस मामले में उसकी बात न मानें। क्योंकि सृष्टा की अवहेलना में किसी सृष्टि का आज्ञापालन जायज़ नहीं है।
रमज़ान में रोज़ा तोड़ना और बाद में रोज़े की क़ज़ा करना केवल उनके लिए धर्मसंगत है जो किसी उज़्र (शरई कारण) जैसे बीमारी या यात्रा, या इसके समान चीज़ों के आधार पर रोज़ा तोड़ दें। जहाँ तक मुसलमान के बिना उज़्र के रोज़ा तोड़ने का मामला है, तो वह अपने आपको अल्लाह तआला के क्रोध और यातना से दोचार कर रहा है। हम अल्लाह तआला से इससे बचाव और रक्षा का प्रश्न करते हैं।
प्रश्न संख्या : (38747) देखिए।
तीसरा :
संभोग करना रोज़े को खराब और नष्ट करने वाली चीज़ों में से है, बल्कि सबसे बड़े गुनाह का काम है, इसी कारण इसमें कफ्फारा (परायश्चित) अनिवार्य है।
शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह ने फतावा अस्सियाम (पृष्ठ: 337) में फरमरया :
रमज़ान के दिन में संभोग करनेवाला जबकि वह निवासी हो (यात्रा पर न हो) उसके ऊपर सख्त क़िस्म का (कठोर) कफ्फारा अनिवार्य है, और वह एक गुलाम आज़ाद करना, अगर वह न मिले तो लगातार दो महीने रोज़ा रखना, अगर इसकी ताक़त न हो तो साठ मिसकीनों को खाना खिलाना है। तथा महिला पर भी इसी के समान कफ्फारा अनिवार्य है यदि वह इससे सहमत थी। और यदि वह मजबूर थी तो उसके ऊपर कुछ भी अनिवार्य नहीं है। और यदि वे दोनों मुसाफिर थे तो कोई गुनाह नहीं है, न कफ्फारा है और न ही दिन के अवशेष हिस्से में खाने पीने से रूकना ज़रूरी है। उन दोनों के ऊपर केवल उस दिन की क़ज़ा अनिवार्य है, क्योंकि (यात्रा पर होने की वजह से) उन दोनों के लिए रोज़ अनिवार्य नहीं है।
जो रोज़ेदार व्यक्ति अपने देश में (रमज़ान के दिन में) संभोग कर ले और रोज़ा उस पर वाजिब हो तो उस पर पाँच चीज़ें निष्कर्षित होती हैं:
पहला : पाप।
दूसरा : रोज़े का फासिद (खराब) होना।
तीसरा : अवशेष दिन खाने पीने से रूक जाना।
चौथा : कज़ा का अनिवार्य होना।
पाँचवा : कफ्फारा अनिवार्य होना। कफ्फारा के अनिवार्य होने का प्रमाण अबू हुरैरह रज़ियल्लाहु अन्हु की हदीस है, वह कहते हैं : हम नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास बैठे हुए थे कि एक व्यक्ति नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आया और कहा : ऐ अल्लाह के रसूल मेरा सर्वनाश होगया, आप ने पूछा : ‘‘तेरा क्या सर्वनाश हो गया?’’ उसने उत्तर दिया : मैं ने रोज़े की हालत में अपनी पत्नी से सम्भोग कर लिया, तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहा क्या तुम्हारे पास आज़ाद करने के लिए एक गु़लाम (दास या दासी) है? तो उसने कहा कि नहीं। आप ने कहा कि क्या तुम निरंतर दो महीने का रोज़ा रख सकते हो? उसने कहा कि नहीं। तो आप ने कहा क्या तुम साठ मिस्कीनों को भोजन करा सकते हो? तो उसने कहा कि नहीं। फिर आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ठहरे रहे। हम इसी हालत में थे कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास खजूर की एक टोकरी आई, तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहा कि प्रश्न करनेवाला कहाँ है? तो उसनके कहा कि मैं हूँ। तो आप ने उससे कहा : ‘‘इसे लेजाकर दान कर दो।’’ तो इस पर उस व्यक्ति ने कहा : क्या अपने से भी अधिक दरिद्र पर दान कर दूँ? अल्लाह की क़सम! मदीना की दोनों पहाड़ियों (यानी दोनों हर्रों) के बीच मुझसे अधिक निर्धन कोई घराना नहीं है। इस पर नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हंस पड़े यहाँ तक कि आप के केंचुली के दांत स्पष्ट हो गए, फिर आप ने फरमाया : ‘‘इसे ले जाकर अपने घर वालों को खिला दो।’’इसे बुखारी (हदीस संख्या : 1936) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 1111) ने रिवायत किया है।
यह आदमी अगर रोज़े रखने की ताक़त रखता है न खाना खिलाने की ताक़त रखता है तो उससे कफ्फारा समाप्त हो जायेगा ; क्योंकि अल्लाह तआला किसी प्राणी पर उसके सामर्थ्य से अधिक भार नहीं डालता है। और असमर्थता के साथ अनिवार्य बाक़ी नहीं रहता। तथा उससे वीर्य का उत्सर्जन होता है या नहीं होता है इसमें कोई अंतर नहीं है जबकि संभोग हो चुका है। इसके विपरीत यदि बिना संभोग के वीर्य पात हो जाए तो उसमें कोई कफ्फारा नहीं है। उसमें मात्र गुनाह, अवशेष दिन खाने पीने से रूक जाना और क़ज़ा अनिवार्य है।‘‘ अंत हुआ।
तथा आप से यह भी प्रश्न किया गया कि : एक आदमी अपनी पत्नी को रमज़ान के दिन में संभोग करने पर बाध्य करता है?
तो उन्हों ने उत्तर दिया :
इस अवस्था में उसके ऊपर अपने पति की बात मानना या उसे ऐसा करने पर सक्षम करना हराम है। क्योंकि वह एक फर्ज़ रोज़े में है और उसके ऊपर अनिवार्य है कि जहाँ तक हो सके उसे रोके। तथा उसके पति पर हराम है कि इस अवस्था में उसके साथ संभोग करे। यदि वह (पत्नी) उससे छुटकारा पाने पर सक्षम नहीं है तो उसके ऊपर कोई चीज़ अनिवार्य नहीं है, न तो रोज़ा क़ज़ा करना और न कफ्फारा ; क्योंकि वह मजबूर है।’’ अंत हुआ।फतावा अस्सियाम (पृष्ठ : 339).
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।
स्रोत:
साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर
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