कृपया मुझे सूचित करें कि क्या अपने एक रिश्तेदार व्यक्ति को जो कि सक्षम लोगों में से है रोज़ा इफ्तार कराना इस हदीस के अंतर्गत आता है कि : ‘‘जिसने किसी रोज़ेदार को इफतार कराया …” हदीस के अंत तक
मालदार रिश्तेदार को रोज़ा इफतार कराने से रोज़ेदार को इफतार कराने का सवाब मिलता है
प्रश्न: 50047
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्यहै।
इस हदीस को तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 807) ने ज़ैद बिन खालिदअल-जोहनी से रिवायत किया है कि उन्हों ने कहा : अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहिव सल्लम ने फरमाया : “जिस व्यक्ति नेकिसी रोज़ेदार को रोज़ा इफ्तार कराया उसके लिए उसी के समान अज्र व सवाब है, परंतु रोज़ेदार केअज्र में कोई कमी न होगी।’’ इसे अल्बानी ने सहीहुल जामे (हदीस संख्या : 6415) में सहीहकहा है।
और यह हदीस हर रोज़ेदार के बारे में सर्वसामान्य है चाहे वहगरीब हो या मालदार, तथा यह रिश्तेदार और उसके अलावा को भी शामिल है।
देखिए : मुनावी की ‘‘फैज़ुल क़दीर’’शरह हदीस संख्या (8890).
बल्कि कभी कभी रिश्तेदार रोज़ेदार को रोज़ा इफ्तार कराना अधिकअज्र व सवाब वाला होता है क्योंकि इसकी वजह से वह रोज़ेदार को इफ्तार कराने औरसिला-रेहमी करने (रिश्तेदारी निभाने) के अज्र व सवाब को भी प्राप्त कर लेता है, जब तक किगैर-रिश्तेदार गरीब न हो और उसके पास इफ्तार करने के लिए कुछ भी न हो, अन्यथा इसे (यानीगैर-रिश्तेदार गरीब को) रोज़ा इफ्तार कराना सबसे अधिक अज्र व सवाब वाला होगा,क्योंकि इसमें उसकी ज़रूरत को पूरा करना पाया जाता है।
इसी तरह गरीब रिश्तेदार पर सदक़ा व खैरात करना गैर रिश्तेदारगरीब पर सदक़ा करने से बेहतर है।
तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 658) और इब्ने माजा (हदीस संख्या :1844) ने सलमान बिन आमिर अज़-ज़ब्बी से रिवायत किया है कि उन्हों ने कहा : अल्लाहके पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : ‘‘मिस्कीन (गरीब) पर सदक़ा करना एक सदक़ा है और रिश्तेदार परसदक़ा करना दो है : एक सदक़ा और एक सिला-रेहमी (रिश्तेदारी निभाना)।” इसे अल्बानी ने सहीह इब्ने माजा में सहीह कहा है।
तथा हाफिज़ इब्न हजर ने ‘‘फत्हुलबारी’’में फरमाया :
‘‘यह आवश्यक नहीं हैकि रिश्तेदार को देना सामान्य रूप से (यानी सभी हालतों में) सर्वश्रेष्ठ हो,क्योंकि इस बात की संभावना है कि मिसकीन ज़रूरतमंद हो और इसके द्वारा उसे लाभपहुँचाना असीमित और व्यापक हो, जबकि दूसरा इसके विपरीत हो।’’ परिवर्तन के साथसमाप्त हुआ।
सारांश यह कि :
रिश्तेदार रोज़ेदार को इफ्तार कराना नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के फरमान : “जिस व्यक्ति ने किसी रोज़ेदार को रोज़ा इफ्तार कराया उसके लिएउसी के समान अज्र व सवाब है।”में दाखिल है।
और कभी कभी उसको इफ्तार कराना गैर रिश्तेदार को इफ्तारकराने से अधिक अज्र व सवाब वाला होता है,और कभी मामला इसके विपरीत होता है, उन दोनों में सेहर एक की ज़रूरत के एतिबार से और उसको इफतार कराने पर निष्कर्षित होने वाले हितोंके एतिबार से।
स्रोत:
साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर