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क्या वह अपने रोज़ा रखने और रोज़ा तोड़ने में अपने देश वालों के चाँद देखने का अनुसरण करेगा ?

प्रश्न: 66219

मेरे देश में चाँद दो दिन देरी से देखा गया, यहाँ एक समूह ऐसा है जो सामान्य रूप से चाँद दिखाई देने पर अमल करता है और सऊदी अरब तथा अन्य पड़ोसी देशों के साथ रोज़ा रखता है, तो मैं ने भी इस वर्ष इसी समूह का अनुकरण किया और अपने देश के लोगों से एक दिन पहले रोज़ा रखा, तो क्या मेरे ऊपर क़ज़ा अनिवार्य है – जबकि ज्ञात रहे कि यहाँ चाँद का देखा जाना इसके बाद साबित हुआ – ? और क्या मेरे ऊपर अनिवार्य है कि मैं अपने देश के साथ रोज़ा तोड़ूँ या सामान्य रूप से चाँद के दिखाई देने के साथ ?

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य
है।

प्रश्न संख्या (12660) के उत्तर में यह बात वर्णन की जा
चुकी है कि अगर मुसलमान किसी इस्लामी देश में है तो महीने की शुरूआत और उसके अंत
को साबित करने में चाँद के देखने पर निर्भर करेगा,
अतः उसके ऊपर उस
देश का अनुसरण करना अनिवार्य है,
उसके लिए रोज़ा
रखने या रोज़ा तोड़ने में उसका विरोध करना जायज़ नहीं है।

क्योंकि अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का
फरमान है :
‘‘रोज़ा उस दिन है जिस दिन तुम सब रोज़ा रखते हो और इफतार का
दिन वह जिस दिन तुम सब रोज़ा तोड़ देते हो और क़ुर्बानी का दिन वह है जिस दिन तुम सब
क़ुर्बानी करते हो।” इसे अबू दाऊद (हदीस संख्या :2324) और तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 697) ने रिवायत किया है और अल्बानी ने
सहीह तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 561) में सहीह कहा है।

इमामों ने इस बारे में कि यदि किसी देश में चाँद दिखाई दे
जाए तो क्या सभी मुसलमानों पर रोज़ा रखना अनिवार्य है
?
या कि केवल निकट
के देशों पर अनिवार्य है दूर के देशों पर नहीं
?
या कि केवल उन पर अनिवार्य है जिनके मताले (चाँद के उदय
होने के समय) एक हैं,
उन पर नहीं जिनके मताले (चाँद के उदय होने के
समय) विभिन्न हैं
?
कई कथनों पर
मतभेद किया है।

अतः मुसलमान पर अनिवार्य है कि उसके देश के विद्वान इन
कथनों में से जिस कथन को उनके लिए विदित प्रमाणों के अनुसार राजेह करार देते हैं,
उसका पालन करे,
और वह अकेले
रोज़ा न रखे या रोज़ा न तोड़े।

हम ने इस मुद्दे के बारे में वरिष्ठ विद्वानों की परिषद के
मूलशब्दों को प्रश्न संख्या (50487) के उत्तर में उल्लेख किया है,
और उसमें उनका
यह कथन है :

”वरिष्ठ विद्वानों की परिषद के सदस्यों का विचार यह है कि
इस मामले को वैसे ही बरकरार रखना चाहिए और इस विषय को नहीं उठाना चाहिए,
और यह कि हर
इस्लामी देश को यह अधिकार है कि वह अपने विद्वानों के माध्यम से इस मुद्दे में
इंगित दोनों विचारों में से जिसे उचित समझे उसका चयन कर ले, क्योंकि दोनों में से
प्रत्येक विचार के अपने प्रमाण और आधार हैं।” अंत हुआ।

तथा परिषद की पूरी बात देखनी चाहिए क्योंकि वह महत्वपूर्ण
है।

इस आधार पर,
आपको रोज़ा रखने
और रोज़ा तोड़ने में अपने देश के साथ सहमति रखनी चाहिए जो कि महीने के प्रवेश करने
और उसके अंत को साबित करने में चाँद की दृष्टि पर निर्भर करता है,
और यदि आप ने
ऐसा किया है तो ठीक किया,
और आपके ऊपर क़ज़ा
अनिवार्य नहीं है।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

स्रोत

साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर

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