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कौन-सा भिखारी दान दिए जाने का अधिक योग्य हैॽ

प्रश्न: 75406

यदि हम शारीरिक रूप से अक्षम (विकलांग) लोगों में से एक से अधिक भिखारी (माँगने वाले) को पाएँ, तो हमें दान देने में किसे वरीयता देना चाहिएॽ

उत्तर का पाठ

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

सर्व प्रथम :

ज़रूरतमंदों की मदद करना और गरीबों तथा मिसकीनों को दान देना अल्लाह की निकटता प्राप्त करने के सर्वश्रेष्ठ कामों और आज्ञाकारिता के सर्वोत्तम कार्यों में से एक है।

अल्लाह तआला ने फरमाया :

  الَّذِينَ يُنفِقُونَ أَمْوَالَهُم بِاللَّيْلِ وَالنَّهَارِ سِرّاً وَعَلاَنِيَةً فَلَهُمْ أَجْرُهُمْ عِندَ رَبِّهِمْ وَلاَ خَوْفٌ عَلَيْهِمْ وَلاَ هُمْ يَحْزَنُونَ

البقرة : 274

''जो लोग अपने धन को रात और दिन छिपे और खुले (अल्लाह के मार्ग में) खर्च करते हैं, तो उन्हें अपने पालनहार के पास अज्र व सवाब (पुण्य) प्राप्त होगा। तथा न उन्हें कोई भय होगा और न वे शोकग्रस्त होंगे।” (सूरतुल-बक़रा 2: 274).

गरीब व्यक्ति की आवश्यकता जितनी कठोर होगी, उतना ही उसे दान देने का ऐच्छिक होना सुनिश्चित होगा; क्योंकि लोगों की जरूरतों को पूरा करना और उनकी बुराइयों को छिपाना दान को धर्मसंगत बनाए जाने के सबसे महत्वपूर्ण कारणों में से है।

उमर बिन अल-खत्ताब रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "सबसे अच्छा काम मोमिन को खुश करना है : जैसे कि आप उसे कपड़े पहना दें और उसकी भूख मिटा दें, या उसकी कोई आवश्यकता पूरी कर दें।'' इसे तबरानी ने “अल-मोजमुल औसत” (5/202) में रिवायत किया है और अलबानी ने सहीहुत-तर्गीब (हदीस संख्या : 2090) में इसे हसन कहा है।

शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह ने फरमाया :

''यदि यह कहा जाए : इन आठ श्रेणियों में से कौन-सी श्रेणी सबसे अधिक योग्य है कि उसमें ज़कात का भुगतान किया जाएॽ

तो हम कहेंगे कि सबसे अधिक योग्य वह है जिसकी आवश्यकता सबसे अधिक हो। क्योंकि वे सभी (ज़कात के) हक़दार हैं। अतः जिसकी आवश्यकता सबसे अधिक और कठोर है, वह अधिक योग्य है (उसे प्राथमिकता दी जानी चाहिए)। और आमतौर पर गरीबों और मिसकीनों की आवश्यकता सबसे कठोर होती है। इसीलिए अल्लाह तआला ने (ज़कात के हक़दारों में) सबसे पहले उन्हीं का उल्लेख किया है, चुनाँचे फरमाया :

 إِنَّمَا الصَّدَقَاتُ لِلْفُقَرَاءِ وَالْمَسَاكِينِ وَالْعَامِلِينَ عَلَيْهَا وَالْمُؤَلَّفَةِ قُلُوبُهُمْ وَفِي الرِّقَابِ وَالْغَارِمِينَ وَفِي سَبِيلِ اللَّهِ وَاِبْنِ السَّبِيلِ فَرِيضَةً مِنْ اللَّهِ وَاللَّهُ عَلِيمٌ حَكِيمٌ

التوبة : 60

"सदक़े (यानी ज़कात) तो मात्र फक़ीरों, मिसकीनों, उनकी वसूली के कार्य पर नियुक्त कर्मियों और उन लोगों के लिए हैं जिनके दिलों को आकृष्ट करना और परचाना अभीष्ट हो, तथा गर्दनों को छुड़ाने, क़र्ज़दारों के क़र्ज़ चुकाने, अल्लाह के मार्ग (जिहाद) में और (पथिक) मुसाफिर पर खर्च करने के लिए हैं। ये अल्लाह की ओर से निर्धारित किए हुए हैं, और अल्लाह तआला बड़ा जानकार, अत्यंत तत्वदर्शी (हिकमत वाला) है।" (सूरतुत्तौबा : 60)

उद्धरण समाप्त हुआ।

''मजमूओ फतावा इब्ने उसैमीन'' (18 / प्रश्न संख्या : 251).

तथा ''अल-मौसूअतुल फ़िक़हिय्या'' (23/303) में आया है :

''ज़कात के हक़दार लोगों को ज़कात देना प्रतिष्ठा में एक समान नहीं है, बल्कि विभिन्न है। मालिकिय्या ने स्पष्ट रूप से कहा है कि ज़कात देने वाले के लिए सिफारिश की जाती है कि वह दुर्लभ और कठिन स्थिति वाले को दूसरों पर प्राथमिकता दे, इस प्रकार कि वह उसे अन्य श्रेणियों की तुलना में अधिक राशि दे।'' उद्धरण समाप्त हुआ।

यदि गरीब या भिखारी व्यक्ति काम करने में असमर्थ है, बीमारी   और विपत्ति ने उसे काम करने से बाधित कर दिया है, तो उसे सदक़ा (ज़कात) की राशि से देना सुनिश्चित हो जाता है।

अल्लाह तआला ने फरमाया :

  لِلْفُقَرَاء الَّذِينَ أُحصِرُواْ فِي سَبِيلِ اللّهِ لاَ يَسْتَطِيعُونَ ضَرْباً فِي الأَرْضِ يَحْسَبُهُمُ الْجَاهِلُ أَغْنِيَاء مِنَ التَّعَفُّفِ تَعْرِفُهُم بِسِيمَاهُمْ لاَ يَسْأَلُونَ النَّاسَ إِلْحَافاً وَمَا تُنفِقُواْ مِنْ خَيْرٍ فَإِنَّ اللّهَ بِهِ عَلِيمٌ

البقرة: 273

ये (ख़ैरात) उन गरीबों के लिए हैं जो अल्लाह के मार्ग में जिहाद के कारण (यात्रा से) प्रतिबंधित हैं, वे धरती में (जीविकोपार्जन के लिए) कोई दौड़-धूप नहीं कर सकते। उनके न माँगने के कारण अनभिज्ञ व्यक्ति उन्हें धनवान समझता है। आप उन्हें उनके लक्षणों से पहचान सकते हैं। वे लिपटकर लोगों से भीख नहीं माँगते। और जो माल भी तुम ख़र्च करोगे, अल्लाह उसे अच्छी तरह जानता है। (सूरतुल बक़रा : 273).

सईद बिन जुबैर ने कहा :

वे ऐसे लोग हैं जो अल्लाह तआला के मार्ग (जिहाद) में लड़ते हुए घायल हुए थे, चुनाँचे वे स्थायी रूप से बीमार हो गए, इसलिए मुसलमानों के धनों में उनका अधिकार (हिस्सा) ठहराया गया है।

''अद-दुर्रुल मंसूर'' (2/89)

इसका मतलब यह उल्लेख करना है कि भिक्षा में प्राथमिकता अथवा कम या अधिक देने की कसौटी आवश्यकता व दरिद्रता की मात्रा है। यदि आपको लगता है कि एक भिखारी दूसरे की तुलना में अधिक आवश्यकता एवं दरिद्रता वाला है, तो वह आपके दान का अधिक योग्य है।

यदि आप जो राशि दान में देना चाहते हैं, वह दोनों भिखारियों की आवश्यकता को पूरा करने के लिए पर्याप्त है, तो उसे उन दोनों के बीच बाँट दें। लेकिन अगर वह उनमें से केवल एक के लिए पर्याप्त है, तो ऐसी स्थिति में उनमें से किसी को भी देने में आपके लिए कोई आपत्ति की बात नहीं है। लेकिन आप उसे दूसरे से छिपाने की कोशिश करें, ताकि उसके दिल में किसी भी तरह की मलिनता या ईर्ष्या पैदा न हो।

शैख इब्ने बाज़ रहिमहुल्लाह से पूछा गया : अगर कोई आदमी अपने धन की ज़कात निकाले और वह एक छोटी रक़म हो जैसे कि दो सौ रियाल, तो क्या बेहतर यह है कि उसे एक ज़रूरतमंद परिवार को दे दिया जाए या उसे कई जरूरतमंद परिवारों के बीच बाँट दिया जाएॽ

तो उन्होंने जवाब दिया :

''यदि ज़कात की राशि थोड़ी है, तो उसे एक ही ज़रूरतमंद परिवार को देना बेहतर है, क्योंकि थोड़ी राशि होने के बावजूद उसे कई परिवारों के बीच साझा करना, उसके लाभ को कम कर देगा।'' उद्धरण समाप्त हुआ।

''फतावा इब्ने बाज़'' (14/316).

और अल्लाह ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

स्रोत

साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर

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