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हम “ला हौला वला क़ुव्वता इल्ला बिल्लाह” कब कहेंगेॽ

प्रश्न: 7747

कृपया मेरे लिए स्पष्ट करें :

  1. “ला हौला वला क़ुव्वता इल्ला बिल्लाहिल अलिय्यिल अज़ीम” का क्या अर्थ है।
  2. इसपर एक साधारण टिप्पणी।
  3. हम इसे कब कहेंगेॽ

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

“ला हौला वला क़ुव्वता इल्ला बिल्लाह” का अर्थ है :

अल्लाह के सामर्थ्य (तौफ़ीक़) के बिना पाप से बचने की शक्ति और नेकी करने की ताक़त नहीं है। यह बंदे का अल्लाह के सामर्थ्य और समर्थन के बिना किसी भी चीज़ को करने में अपनी अक्षमता व असमर्थता को स्वीकार करना है। जहाँ तक उसकी अपनी शक्ति, गतिविधि और ताक़त की बात है, तो वह कितनी भी महान क्यों न हो, वह अल्लाह की सहायता के बिना बंदे के किसी काम की नहीं है, जो अपनी सारी रचनाओं से ऊपर है, जो सबसे महान है उसके साथ कोई भी चीज़ महान नहीं है। चुनाँचे हर बलवान व्यक्ति अल्लाह की शक्ति के सामने कमज़ोर है, तथा हर महान व्यक्ति उस महिमावान् की महानता के सामने छोटा और कमज़ोर है।

यह वाक्य उस समय कहा जाता है जब किसी व्यक्ति पर कोई गंभीर मामला आ पड़े, जिसे वह करने में सक्षम न हो, या उसके लिए उसे करना बहुत मुश्किल हो। (शैख सअद अल-हुमैयिद)

जिन अवसरों पर इस वाक्य का उच्चारण किया जाता है, उनमें निम्नलिखित हैं :

– जब रात को नींद से जागे :

उबादा बिन सामित रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि उन्होंने कहा : अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “जो व्यक्ति रात को जागे, फिर यह दुआ पढ़े :

لاَ إِلَهَ إِلَّا اللَّهُ وَحْدَهُ لاَ شَرِيكَ لَهُ، لَهُ المُلْكُ وَلَهُ الحَمْدُ، وَهُوَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ، الحَمْدُ لِلَّهِ، وَسُبْحَانَ اللَّهِ، وَلاَ إِلَهَ إِلَّا اللَّهُ، وَاللَّهُ أَكْبَرُ، وَلاَ حَوْلَ وَلاَ قُوَّةَ إِلَّا بِاللَّهِ

”ला इलाहा इल्लल्लाहु वह़दहु ला शरीका लहु, लहुल मुल्कु व लहुल हम्दु, वहुवा अला कुल्लि शैइन क़दीर, अल-हम्दुलिल्लाह, व सुब्ह़ानल्लाह, व ला इलाहा इल्लल्लाहु, वल्लाहु अक्बर, वला हौला वला क़ुव्वता इल्ला बिल्लाह”

''अल्लाह के सिवा कोई वास्तविक माबूद नहीं, वह एकता और अकेला है, उसका कोई साझी नहीं, पूरा राज्य और सत्ता उसी के लिए है और उसी के लिए सब प्रशंसा है, और वह हर चीज़ पर सर्वशक्तिमाम है, सभी प्रशंसाएँ अल्लाह के लिए हैं, अल्लाह पवित्र है, अल्लाह के सिवा कोई सत्य मा’बूद नहीं, और अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह की तौफीक़ के बिना किसी भलाई के करने की ताक़त है न किसी बुराई से बचने का सामर्थ्य है।

फिर वह कहे : अल्लाहुम्मग़-फिर्ली (ऐ अल्लाह! मुझे माफ़ कर दे), या कोई और दुआ माँगे, तो उसकी दुआ स्वीकार की जाएगी, और अगर वुजू करके नमाज़ पढ़े तो उसकी नमाज़ स्वीकार्य होगी।” इसे बुखारी (हदीस संख्याः 1086) ने रिवायत किया है।

– जब मुअज़्ज़िन "ह़य्या अलस्-सलाह (नमाज़ के लिए आओ)" या "ह़य्या अलल्-फलाह (सफलता के लिए आओ)" कहे :

हफ्स बिन आसिम बिन उमर बिन अल-खत्ताब ने अपने पिता से, उन्होंने उनके दादा उमर बिन अल-खत्ताब से रिवायात किया कि उन्होंने कहा : अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "जब मुअज़्ज़िन "अल्लाहु अक्बर, अल्लाहु अक्बर" कहे, तो तुम में से कोई व्यक्ति "अल्लाहु अक्बर, अल्लाहु अक्बर" कहे। फिर जब वह "अश्हदो अन् ला-इलाहा इल्लल्लाह" कहे, तो वह व्यक्ति भी "अश्हदो अन् ला-इलाहा इल्लल्लाह" कहे। फिर वह "अश्हदो अन्ना मुहम्मदन् रसूलुल्लाह" कहे, तो वह व्यक्ति भी "अश्हदो अन्ना मुहम्मदन् रसूलुल्लाह" कहे। फिर वह "ह़य्या अलस्सलाह" कहे तो वह व्यक्ति "ला हौला वला क़ुव्वता इल्ला बिल्लाह" कहे। फिर वह "ह़य्या अलल् फलाह़" कहे, तो वह व्यक्ति "ला हौला वला क़ुव्वता इल्ला बिल्लाह" कहे। फिर वह "अल्लाहु अक्बर, अल्लाहु अक्बर" कहे, तो वह व्यक्ति "अल्लाहु अक्बर, अल्लाहु अक्बर" कहे। फिर वह "ला-इलाहा इल्लल्लाह" कहे, तो वह व्यक्ति भी "ला-इलाहा इल्लल्लाह" अपने दिल से कहे, तो वह स्वर्ग में प्रवेश करेगा।" इसे मुस्लिम ने अपनी सहीह (हदीस संख्याः 385) में रिवायत किया है।

– जब वह अपने घर से निकले

अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्होंने कहा : अल्लाह के पैग़ंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया :

“जो व्यक्ति – अपने घर से निकलते समय – कहे :

باسْمِ اللَّهِ، تَوَكَّلْتُ على اللَّهِ، وَلاَ حَوْلَ وَلاَ قُوَّةَ إِلاَّ باللَّهِ

“बिस्मिल्लाह, तवक्कलतु अलल्लाह, वला हौला वला क़ुव्वता इल्ला बिल्लाह।”

(अल्लाह के नाम के साथ, मैंने अल्लाह पर भरोसा किया, अल्लाह की मदद (सामर्थ्य) के बिना न किसी चीज़ से बचने की ताक़त है और न कुछ करने का साहस).

तो उससे कहा जाता है : तुम (अपने शोक व चिंता के लिए) काफी कर दिए गए, तुम्हें बचा लिया गया और तुम्हारा मार्गदर्शन किया गया। (यह सुनकर) शैतान उससे दूर हट जाता है।” इसे तिर्मिज़ी ने अपनी सुनन (हदीस संख्या : 3426) में रिवायत किया है। तथा अबू ईसा ने कहा : यह हदीस हसन सहीह ग़रीब है, हम इसे केवल इसी इस्नाद के माध्यम से जानते हैं। तथा देखें अल-अल्बानी की “सहीह अल-जामि” (हदीस संख्या : 6419)।

तथा अबू दाऊद ने इसे अपनी सुनन (हदीस संख्या : 5095) में रिवायत किया है, और यह वृद्धि की है : “तो एक अन्य शैतान उससे कहता है : तुम्हारा उस आदमी पर कैसे वश चलेगा जिसे मार्गदर्शन किया गया, किफ़ायत किया गया और बचा लिया गया”

– नमाज़ के बाद

अबू अज़्ज़ुबैर से वर्णित है कि उन्होंने कहा : अब्दुल्लाह बिन अज़्ज़ुबैर (रज़ियल्लाहु अन्हुमा) प्रत्येक नमाज़ से सलाम फेरने के बाद कहा करते थे :

لا إله إلا الله وحده لا شريكَ له، له الملك وله الحمد وهو على كل شيءٍ قديرٌ، لا حولَ ولا قوةَ إلا بالله، لا إله إلا الله، ولا نعبد إلا إيَّاه، له النِّعمة وله الفضل، وله الثَّناء الحَسَن، لا إله إلا الله مخلصين له الدِّين ولو كَرِه الكافرون

(ला इलाहा इल्लल्लाहु वहदहु ला शरीक लहु, लहुल मुल्कु व लहुल हम्दु वहुवा अला कुल्लि शैइन क़दीर, ला हौल वला कुव्वता इल्ला बिल्लाहि, ला इलाहा इल्लल्लाहु, वला ना’बुदु इल्ला इय्याहु, लहुन्ने’मतु व लहुल फज़्लु, व लहुस्सनाउल हसन, ला इलाहा इल्लल्लाहु मुख़लिसीन लहुद्दीन व-लौ करिहल काफिरून)

अर्थात् अल्लाह के सिवा कोई सत्य पूज्य नहीं, वह अकेला है, उसका कोई साझी नहीं, उसी के लिए बादशाहत है और उसी के लिए सभी प्रकार की प्रशंसा है और वह सब कुछ करने में सक्षम है। अल्लाह की तौफीक़ के बिना किसी भलाई के करने की ताक़त है न किसी बुराई से बचने का सामर्थ्य है। अल्लाह के सिवा कोई सच्चा उपास्य नहीं, हम केवल उसी की उपासना करते हैं, उसी की सब नेमतें हैं और उसी का सब पर उपकार है, उसी के लिए समस्त अच्छी प्रशंसाएँ हैं, अल्लाह के सिवा कोई सत्य पूज्य नहीं, हम उसी के लिए धर्म (आज्ञाकारित) को खालिस व विशुद्ध करने वाले हैं, भले ही यह बात काफिरों को बुरी लगे।” तथा उन्होंने कहा : अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) प्रत्येक नमाज़ के बाद इन्हीं शब्दों के द्वारा तहलील (अल्लाह का गुणगान) करते थे।”  – इसे मुस्लिम ने अपनी सहीह (हदीस संख्या : 594) में रिवायत किया है।

स्रोत

शैख मुहम्मद सालेह अल-मुनज्जिद

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