रमज़ान के बाद शव्वाल के छः दिनों का रोज़ा रखने के संबंध में क्या इस बात की शर्त है कि वे निरंतर व लगातार हों या मेरे लिए उन्हें अलग अलग रखना संभव है, क्योंकि मैं उन्हें तीन सत्रों में प्रत्येक सप्ताह के अंत में साप्ताहिक अवकाश में दो दिन रखना चाहता हूँ।
क्या शव्वाल के छः रोज़ों को निरंतर व लगातार रखना शर्त है
प्रश्न: 7858
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
उसके अंदर निरंतरता का होना शर्त नहीं है। यदि उसने अलग अलग दिनों में या लगातार उन दिनों का रोज़ा रख लिया तो इसमें कोई आपत्ति की बात नहीं है, और जितना ही उसमें आदमी पहल करता है बेहतर है। अल्लाह सर्वशक्तिमान ने फरमायाः
فاستبقوا الخيرات
‘‘अतः भलाई के कामों में अग्रसरता दिखाओ।’’ (सूरतुल बक़राः 148)
तथा फरमायाः
وسارعوا إلى مغفرة من ربكم
‘‘और अपने रब की क्षमा की ओर बढ़ो।’’ (सूरत आल इम्रानः 133)
तथा मूसा अलैहिस्सलाम ने फरमायाः
وعجلت إليك رب لترضى
‘‘और मैं जल्दी बढ़कर आया तेरी ओर, ऐ रब! ताकि तू प्रसन्न हो जाए।’’
और इसलिए कि विलंब करने में समस्याएं आ सकती हैं। शाफेईया और कुछ हनाबिला इसी मत की ओर गए हैं। लेकिन इसमें जल्दी न करने में कुछ भी गलत नहीं है। यदि वह इसे महीने के मध्य या अंत तक विलंब कर दे तो कोई बात नहीं है।
नववी रहिमहुल्लाह कहते हैं :
हमारे साथियों का कहना है : इस हदीस के आधार पर शव्वाल के छह दिनों का रोज़ा रखना मुस्तहब है, उनका कहना है : ये रोज़े शव्वाल के शुरू में लगातार रखना मुस्तहब है, यदि उसने उन्हें अलग-अलग दिनों में रख लिया या उन्हें शव्वाल से विलंब कर दिया, तो यह जायज़ है। और (ऐसी स्थिति में) वह इस सुन्नत के मूल अर्थ का पालन करनेवाला होगा, क्योंकि यह हदीस सर्वसामान्य है (यानी वह हदीस के सामान्य दिशानिर्देशों का पालन करनेवाला है)। इसके बारे में हमारे यहाँ कोई मतभेद नहीं है। और यही अहमद और दाऊद का भी विचार है। अल-मजमूओ शर्हुल मुहज़्ज़ब।
स्रोत:
शैख मुहम्मद सालेह अल-मुनज्जिद