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नमाज़ के लिए निषिद्ध समय में कौन-सी सुन्नत की नमाज़ पढ़ना जायज़ हैॽ

प्रश्न: 81978

वह कौन सा समय है जब नमाज़ पढ़ना मकरूह हैॽ क्या किसी व्यक्ति के लिए मकरूह समय में सुन्नत की नमाज़ पढ़ना जायज़ हैॽ

उत्तर का पाठ

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

सर्व प्रथम :

जिन समयों में नमाज़ पढ़ना निषिद्ध है, वे संक्षिप्त रूप से तीन हैं, और विस्तार रूप से पाँच हैं, वे निम्नलिखित हैं :

फज्र उदय होने से सूर्योदय तक।

सूर्योदय से लेकर सूर्य के एक भाले की लंबाई के बराबर ऊंचा होने तक। इस समय का अनुमान बारह मिनट है, और एहतियात (सुरक्षित पक्ष) यह है कि उसे एक चौथाई घंटा (पंद्रह मिनट) कर दिया जाए।

जब सूर्य दोपहर के समय सीधे सिर के ऊपर खड़ा हो जाए, यहाँ तक कि वह आकाश के बीच से ढल जाए।

अस्र की नमाज़ के बाद से सूर्यास्त तक।

जब सूरज डूबने लगे यहाँ तक कि वह पूरी तरह से डूब जाए।

संक्षेप में, वे समय इस तरह हैं:

फज्र से लेकर सूरज के एक भाले के बराबर ऊँचा होने तक।

जब दोपहर के समय सूरज सीधे सिर के ऊपर खड़ा हो जाए यहाँ तक कि वह ढल जाए।

अस्र की नमाज़ से लेकर सूरज के पूरी तरह डूबने तक।

इसका प्रमाण प्रश्न संख्या : (48998) के उत्तर में देखें।

दूसरी बात :

इन समयों के दौरान, स्वैच्छिक नमाज़ पढ़ना निषिद्ध है। जहाँ तक फर्ज़ नमाज़ें पढ़ने या उनकी क़ज़ा करने का संबंध है, तो यह निषेध उस पर लागू नहीं होता है।

"मूल सिद्धांत यह है कि स्वैच्छिक नमाज़ हर समय पढ़ना धर्मसंगत है; क्योंकि अल्लाह तआला के इस कथन का अर्थ सामान्य है :  يا أيها الذين آمنوا اركعوا واسجدوا واعبدوا ربكم وافعلوا الخير لعلكم تفلحون  “ऐ ईमान वालो! रुकू करो तथा सजदा करो और अपने पालनहार की इबादत करो और नेकी करो, ताकि तुम सफल हो जाओ।” [सूरतुल-हज्ज : 77]

तथा उस आदमी के लिए नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के शब्दों का अर्थ सामान्य है, जिसने आपकी आवश्यकता पूरी की थी। नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उससे कहा : "माँगो।" उसने कहा : मैं आपसे स्वर्ग में आपकी संगति माँगता हूँ। तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहा : "क्या कुछ और माँगना हैॽ" उसने कहा : बस वही (अर्थात् मैं आपसे और कुछ नहीं माँगता)। आपने फरमाय : "तो फिर अधिक से अधिक सजदा करके अपने आप पर मेरी मदद करो।”

इसके आधार पर, स्वैच्छिक नमाज़ के संबंध में मूल सिद्धांत यह है कि यह हर समय, निवासी और यात्री सब के लिए शरीयत के अनुकूल है, लेकिन कुछ समय ऐसे हैं जिनके दौरान शरीयत विधाता ने नमाज़ पढ़ने से निषेध किया है, और ये समय पाँच हैं…" शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह की ''अश-शर्ह अल-मुम्ते''' से उद्धरण समाप्त हुआ।

तीसरा :

फुक़हा (धर्मशास्त्रियों) के एक समहू ने कुछ प्रकार की नफ्ल नमाज़ों को इस निषेध से अलग किया है, जिन्हें निषिद्ध समय में पढ़ना जायज़ है, वे निम्नलिखित हैं :

  1. तवाफ़ की दो रकअतें; क्योंकि तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 868), नसई (हदीस संख्या : 2924), अबू दाऊद (हदीस संख्या : 1894) और इब्ने माजा (हदीस संख्या : 1254) ने जुबैर बिन मुतइम रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया :  "ऐ बनू अब्द मनाफ! किसी भी व्यक्ति को दिन या रात में किसी भी समय, इस घर की परिक्रमा करने और नमाज़ पढ़ने से मत रोको।" इस हदीस को अल्बानी ने ''सहीह तिर्मिज़ी'' में सहीह कहा है।
  2. जमाअत की नमाज़ को दोहराना। यदि कोई व्यक्ति अनिवार्य नमाज़ अदा कर चुका है और फिर मस्जिद में आता है और लोगों को जमाअत के साथ नमाज़ पढ़ते हुए पाता है, तो वह उनके साथ नमाज़ पढ़ेगा, भले ही वह निषिद्ध समय हो, और उनके साथ उसकी नमाज़ नफ्ल होगी। इसका प्रमाण वह हदीस है जिसे तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 219) और नसई (हदीस संख्या : 858) ने यज़ीद बिन अल-असवद अल-आमिरी रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने दो आदमियों से, जिन्होंने आपके साथ नमाज़ नहीं पढ़ी थी, क्योंकि वे दोनों अपने डेरे में नमाज़ पढ़ चुके थे, कहा : “यदि तुम अपने डेरे में नमाज़ पढ़ लो, फिर तुम जमाअत की मस्जिद में आओ, तो उनके साथ नमाज़ पढ़ो, क्योंकि यह तुम्हारे लिए नफ्ल होगी।'' इस हदीस को अलबानी ने ''सहीह तिर्मिज़ी'' सहीह कहा है।
  3. मुअक्कदा सुन्नत, यदि वह उससे असावधान हो गया यहाँ तक कि निषिद्ध समय शुरू हो गया। इसी तरह ज़ुहर की नमाज़ के बाद की सुन्नत अगर कोई ज़ुहर को अस्र के साथ जमा कर रहा है। ऐसी स्थिति में उसे अस्र की नमाज़ के बाद पढ़ना जायज़ है। स्वयं नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ज़ुहर की नमाज़ के बाद की सुन्नत से असावधान हो गए थे, तो आपने वह सुन्नत नमाज़ अस्र की नमाज़ के बाद पढ़ी। इसे बुखारी (हदीस संख्या : 1233) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 834) ने रिवायत किया है।
  4. जो व्यक्ति जुमा के दिन मस्जिद में प्रवेश करे और इमाम ख़ुतबा दे रहा हो; तो वह दो हल्की रकअतें पढ़ेगा। क्योंकि बुखारी (हदीस संख्या : 931) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 875) ने जाबिर रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि उन्होंने कहा : एक आदमी जुमा के दिन आया जबकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम खुतबा दे रहे थे। आपने पूछा : "क्या तुमने नमाज़ पढ़ लीॽ" उसने कहा : नहीं। आपने फरमाया : "उठो और दो रकअत नमाज़ पढ़ो।"
  5. विद्वानों की सर्वसहमति के अनुसार, जनाज़ा (अंतिम संस्कार) की नमाज़ निषेध की लंबी अवधि के दौरान पढ़ी जा सकती है; अर्थात् फज्र की नमाज़ के बाद सूरज उगने तक और अस्र की नमाज़ के बाद सूरज डूबने तक।

इब्ने क़ुदामा रहिमहुल्लाह ने कहा : “जहाँ तक फज्र की नमाज़ के बाद सूरज उगने तक और अस्र के बाद सूरज डूबने तक जनाज़े की नमाज़ पढ़ने का संबंध है, तो इसमें विद्वानों की राय में कोई मतभेद नहीं है। इब्नुल-मुंज़िर ने कहा : मुसलमानों की सर्वसहमति यह है कि जनाज़ा की नमाज़ अस्र और फ़ज्र के बाद पढ़ी जा सकती है।

जहाँ तक उक़बा बिन आमिर रज़ियल्लाहु अन्हु की हदीस में वर्णित तीन समयों में जनाज़ा की नमाज़ पढ़ने का संबंध है, तो यह जायज नहीं है।

(तीन समय ऐसे हैं कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हमें उनमें नमाज़ पढ़ने और उनमें अपने मृतकों को दफनाने से मना करते थे।) आपका नमाज़ का उल्लेख दफनाने के साथ करना इस बात का प्रमाण है कि आपकी मुराद जनाज़ा की नमाज़ है। अल-असरम ने कहा : मैंने अबू अब्दुल्लाह (अर्थात् इमाम अहमद) से सूरज उगने के समय जनाज़ा की नमाज़ पढ़ने के बारे में पूछा। तो उन्होंने कहा : जहाँ तक सूरज उगने के समय (ऐसा करने) का सवाल है, तो मुझे यह पसंद नहीं है। फिर उन्होंने उक़बा बिन आमिर की हदीस का उल्लेख किया

इसी तरह के शब्द जाबिर और इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हुम से रिवायत किए गए हैं, और इमाम मालिक ने इसे "अल-मुवत्ता" में इब्ने उमर से उल्लेख किया है। खत्ताबी ने कहा : यह अधिकांश विद्वानों का कथन है।

लेकिन फज्र और अस्र के बाद इसकी अनुमति इसलिए दी गई है क्योंकि उन दोनों की अवधि लंबी होती है, इसलिए इंतजार करने से जनाज़े पर डर है, जबकि ये (अन्य तीन) अवधियाँ छोटी होती हैं।" "अल-मुग़्नी" (1/425) से संक्षेप और संशोधन के साथ उद्धरण समाप्त हुआ।

चौथा :

फ़ुक़हा ने कुछ नफ़्ल नमाज़ों के बारे में मतभेद किया है कि क्या उन्हें निषिद्ध समयों में पढ़ना धर्मसंगत (जायज़) है या नहीं हैॽ उन्हीं में से उनका विशिष्ट कारणों वाली नमाज़ों, जैसे कि तहिय्यतुल मस्जिद और वुज़ू की सुन्नत के बारे में मतभेद करना भी है। उनमें से कुछ ने निषिद्ध समय उनका पढ़ना जायज़ कहा है, जो कि इमाम अश-शाफ़ेई रहिमहुल्लाह का दृष्टिकोण है, और कई विद्वानों ने इसको अपनाया है और यही प्रबल (राजेह) दृष्टिकोण है। और कुछ विद्वानों ने इसकी अनुमति नहीं दी और उन्होंने सामान्य नफ़्ल नमाज़ों और किसी विशिष्ट कारण से पढ़ी जाने वाली नफ़्ल नमाज़ों के बीच अंतर नहीं किया है।

तथा प्रश्न संख्या (306 ) का उत्तर देखें।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

स्रोत

साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर

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